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...जब टाटा और साइरस मिस्त्री के बीच हुआ था विवाद, जानें कानूनी लड़ाई की पूरी टाइमलाइन

मिस्त्री को अक्टूबर 2016 में पद से हटा दिया गया था. उस दौरान टाटा संस ने कहना था कि साइरस मिस्त्री के कामकाज का तरीका टाटा ग्रुप के काम करने के तरीके से मेल नहीं खा रहा था.

Updated on: 04 Sep 2022, 05:29 PM

दिल्ली:

साइरस मिस्त्री (Cyrus Mistry) और रतन टाटा (Ratan Tata) के बीच कानूनी लड़ाई (legal dispute) भारत में सबसे हाई-प्रोफाइल कॉरपोरेट झगड़ों में से एक रही है. जिस समय यह विवाद हुआ उत्पन्न हुआ था उस समय टाटा ट्रस्ट्स, जिसकी टाटा संस में 66 प्रतिशत हिस्सेदारी है, के अध्यक्ष रतन टाटा थे. उस समय कंपनी में मिस्त्री परिवार की 18.4 फीसदी हिस्सेदारी थी. साइप्रस मिस्त्री टाटा संस के छठे अध्यक्ष थे. रतन टाटा द्वारा सेवानिवृत्ति की घोषणा के बाद उन्होंने दिसंबर 2012 में अध्यक्ष के रूप में पदभार संभाला था. मिस्त्री को अक्टूबर 2016 में पद से हटा दिया गया था. उस दौरान टाटा संस ने कहना था कि साइरस मिस्त्री के कामकाज का तरीका टाटा ग्रुप के काम करने के तरीके से मेल नहीं खा रहा था. जिस वजह से बोर्ड के सदस्यों का मिस्त्री पर से भरोसा उठ गया था.

ऐसे बढ़ता चला गया कानूनी विवाद

वर्ष 24 अक्टूबर 2016 को टाटा संस के चेयरमैन पद से सायरस मिस्त्री को हटा दिया गया. पद से हटाने के बाद मिस्त्री ने दिसंबर 2016 में कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) में इसके खिलाफ याचिका दायर की. हालांकि जुलाई 2018 में NCLT ने मिस्त्री की याचिका खारिज कर दी और टाटा संस के फैसले को सही करार दिया. इसके खिलाफ मिस्त्री कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (NCLAT) गए. दिसंबर 2019 में NCLAT ने मिस्त्री को दोबारा टाटा संस का चेयरमैन बनाने का आदेश दिया. इसके खिलाफ टाटा संस ने जनवरी 2020 में सुप्रीम कोर्ट में अपील की. आइए जानते हैं कि कैसे रतन टाटा और साइप्रस मिस्त्री के बीच कानूनी विवाद बढ़ता गया और आखिर में कैसे टाटा संस को इस पूरे मामले में जीत मिली. 

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कानूनी लड़ाई में घटनाओं की टाइमलाइन:

दिसंबर 2012: साइरस मिस्त्री को टाटा संस लिमिटेड का अध्यक्ष नियुक्त किया गया.

अक्टूबर 2016: अधिकांश निदेशक मंडल ने उन्हें पद से बर्खास्त कर दिया.

12 जनवरी, 2017: टाटा संस ने  तत्कालीन टीसीएस के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और प्रबंध निदेशक एन. चंद्रशेखरन को अध्यक्ष के रूप में नामित किया. 

6 फरवरी: मिस्त्री को टाटा समूह की फर्मों की होल्डिंग कंपनी टाटा संस के बोर्ड में निदेशक के पद से हटाया गया.

फरवरी 2017:  शेयरधारकों ने एक आम बैठक के दौरान मिस्त्री को टाटा संस के बोर्ड से हटाने के लिए वोट किया. मिस्त्री ने बाद में कंपनी अधिनियम, 2013 की विभिन्न धाराओं के तहत टाटा संस में उत्पीड़न और कुप्रबंधन का आरोप लगाते हुए एक मुकदमा दायर किया. 

जुलाई 2018: नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) की मुंबई बेंच ने टाटा संस के खिलाफ मिस्त्री की याचिका खारिज कर दी. उनके आरोपों को खारिज करते हुए एनसीएलटी का नियम है कि निदेशक मंडल उन्हें अध्यक्ष पद से हटाने के लिए पर्याप्त सक्षम है. ट्रिब्यूनल ने यह भी कहा कि टाटा संस में कुप्रबंधन पर तर्कों में उसे कोई योग्यता नहीं मिली.

दिसंबर 2019: नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (एनसीएलएटी) ने एनसीएलटी के फैसले को पलट दिया और कहा कि मिस्त्री को टाटा संस के अध्यक्ष के रूप में हटाना अवैध था.

जनवरी 2020: टाटा संस और रतन टाटा ने एनसीएलएटी के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. इसके बाद, सुप्रीम कोर्ट ने मिस्त्री को टाटा संस के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में बहाल करने के NCLAT के फैसले पर रोक लगा दी.

फरवरी 2020: मिस्त्री ने एनसीएलएटी के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में क्रॉस-अपील दायर की. उनका कहना है कि उनके परिवार-शापूरजी पल्लोनजी-ट्रिब्यूनल से अधिक राहत के हकदार थे.

सितंबर 2020: सुप्रीम कोर्ट ने फंड जुटाने के लिए मिस्त्री के शापूरजी पल्लोनजी ग्रुप को टाटा संस में अपने शेयर गिरवी रखने से रोका.

दिसंबर 2020: मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायाधीशों वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ के समक्ष अंतिम सुनवाई शुरू हुई.

26 मार्च, 2020: सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया और टाटा समूह की अपील की अनुमति दी. सुप्रीम कोर्ट ने समूह के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में मिस्त्री को बहाल करने के एनसीएलएटी के आदेश को रद्द कर दिया.