शेयर बाजार में विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) की लगतार बिकवाली और कमोडिटी की कीमतों में तेजी के कारण भारतीय मुद्रा पर आने वाले समय में दबाव बना रहेगा।
अगर यह स्थिति आगे भी रही तो देश का चालू खाता घाटा वित्त वर्ष 22 की दूसरी तिमाही के 9.6 अरब डॉलर से बढ़कर वित्त वर्ष 22 की तीसरी तिमाही में 20 अरब डॉलर से भी अधिक हो जायेगा।
रूस और यूक्रेन की बीच जारी भीषण युद्ध के कारण अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, कोयला, निकेल, तांबा, अल्यूमिनीयम,टाइटेनियम और पैलेडियम के दाम बढ़ गये हैं। भारत इनका बहुत बड़ा आयातक है, इसी कारण बढ़ी कीमतों की वजह से भारत का आयात बिल भी काफी तेजी से बढ़ेगा।
कमोडिटी की ऊंची कीमत के कारण महंगाई भी बढ़ेगी, जिस पर काबू पाने के भारतीय रिजर्व बैंक को अपनी मौद्रिक नीति में बदलाव करना पड़ सकता है। मौद्रिक नीति के सख्त होने से एफआईआई की बिकवाली और अधिक बढ़ जायेगी।
एडेलविज सिक्योरिटी के फोरेक्ट एंड रेट विभाग के प्रमुख सजल गुप्ता ने कहा कि रुपया आगे भी नरम रहेगा। हालांकि अगर मामले में थोड़ा सुधार आता है तो इससे रुपये को मजबूती मिलेगी।
उन्होंने कहा कि भारत में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक इस साल करीब 13 अरब डॉलर बाजार से निकाल चुके हैं , जिससे रुपये पर अधिक दबाव आ गया है।
शुक्रवार को भारतीय मुद्रा 76.59 रुपये प्रति डॉलर पर बंद हुई। कुछ दिन पहले रुपया रिकॉर्ड निचले स्तर 77 रुपये प्रति डॉलर पर बंद हुआ था। हालांकि, भारतीय रिजर्व बैंक रुपये की गिरावट को संभालने के लिये उपाय कर सकती है, जिससे इसकी नरमी थमेगी।
आरबीआई डॉलर की खरीद और बिक्री करके रुपये का संतुलन बनाये रखता है।
मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशिल सर्विसेज के विश्लेषक गौरांग सौमैया ने कहा कि उनका अनुमान है कि रुपये पर दबाव बना रहेगा लेकिन आरबीआई के सक्रिय भागीदारी से रुपये की गिरावट थम सकती है।
--आईएनएस
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Source : IANS