रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर उर्जित पटेल ने जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में आई वृद्धि दर में सुस्ती को नोटबंदी से न जोड़ने की अपील की है।
उन्होंने कहा है कि यह सुस्ती वित्त वर्ष की पहली तिमाही से ही नजर आने लगी थी। उर्जित पटेल के मुताबिक, 'केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) द्वारा जारी नए आंकड़ों से किसी नतीजे पर पहुंचने के पहले सावधानीपूर्वक विश्लेषण की जरूरत है। इसमें औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) और थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) के नई सीरीज के आंकड़े जोड़े गए हैं।'
रिज़र्व बैंक गवर्नर ने कहा, 'उस अर्थ में, यह अर्थव्यवस्था की बेहतर तस्वीर प्रस्तुत करता है। इन आंकड़ों से पता चलता है कि नोटबंदी से पहले से ही वित्त वर्ष 2016-17 की पहली तिमाही से ही अर्थव्यवस्था में मंदी छानी शुरू हो गई है। इनमें कृषि और खनन क्षेत्र जो मुख्य रूप से नकदी पर निर्भर हैं, उनमें नोटबंदी का असर नहीं हुआ है। ग्रामीण मजदूरी की वृद्धि दर भी जारी है। वहीं, दूसरी छमाही के दौरान उत्पादन, परिवहन और संचार क्षेत्र में नरमी रही।'
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आरबीई गवर्नर के मुताबिक नोटबंदी से निर्माण क्षेत्र प्रभावित हुआ है, लेकिन इसका अनुमान पहले से ही था, क्योंकि इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर काले धन का इस्तेमाल होता है। उन्होंने कहा, 'वास्तविकता में निजी खपत तीसरी तिमाही में बढ़ी है और चौथी तिमाही में नरमी रही है।'
उर्जित पटेल ने कहा कि जीडीपी में मंदी का मुख्य कारण पूंजी के गठन में हुई कमी है। उन्होंने कहा, 'जीडीपी में कमी का मुख्य कारण पहली, दूसरी और तीसरी तिमाही में पूंजी निर्माण में आई मंदी है, जो चौथी तिमाही में और घट गई। इन सभी कारकों को अलग रखना मुश्किल है।'
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बुधवार को मौद्रिक नीति समीक्षा के बाद आरबीआई गवर्नर ने यह बातें कहीं। रिजर्व आरबीआई के डिप्टी गवर्नर बी.पी. कानूनगो ने भी कहा है कि अब नकदी की कोई कमी नहीं है और 82.6 फीसदी अर्थव्यवस्था का पुर्नमुद्रीकरण कर दिया गया है।
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Source : IANS