अर्थव्यवस्था और कोविड-19 महामारी को लेकर RBI गवर्नर शक्तिकांत दास ने दिया बड़ा बयान

Coronavirus (Covid-19): डिप्टी गवर्नर माइकल देबव्रत पात्रा ने कहा कि कोरोना महामारी के कारण उत्पादन का जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई करने में कई साल लग सकते हैं. नवगठित एमपीसी की 7 से 9 अक्टूबर के बीच हुई बैठक में ये विचार व्यक्त किये गये थे.

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Dhirendra Kumar
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RBI Chief Shaktikanta Das

RBI Governor Shaktikanta Das( Photo Credit : IANS )

Coronavirus (Covid-19): भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास (RBI Governor Shaktikanta Das) ने कहा है कि कोविड-19 महामारी (Coronavirus Epidemic) अगर दोबारा से फैलती है तो उससे अर्थव्यवस्था में जो सुधार की शुरुआत दिख रही है उस पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है. वहीं, डिप्टी गवर्नर माइकल देबव्रत पात्रा ने कहा कि कोरोना महामारी के कारण उत्पादन का जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई करने में कई साल लग सकते हैं. नवगठित मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की 7 से 9 अक्टूबर के बीच हुई बैठक में ये विचार व्यक्त किये गये थे. समिति में नवनियुक्त स्वतंत्र सदस्य शशांक भिडे ने कहा कि कोविड-19 महामारी से संबंधित अनिश्चितताओं का अगले दो से तीन तिमाहियों में वृद्धि दर और मुद्रास्फीति परिदृश्य पर प्रभाव बना रहेगा.

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जून 2020 से 6 प्रतिशत से ऊपर बनी हुई है मुद्रास्फीति 
आरबीआई द्वारा मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक के जारी ब्योरे के अनुसार दास ने यह भी कहा कि नीतिगत दर में कटौती की गुंजाइश है, लेकिन इस दिशा में आगे कदम मुद्रास्फीति के मोर्चे पर उभरती स्थिति पर निर्भर करेगा जो फिलहाल केंद्रीय बैंक के संतोषजनक स्तर से ऊपर चल रही है. उन्होंने कहा कि मेरा यह मानना है कि अगर मुद्रास्फीति हमारी उम्मीदों के अनुरूप रहती हैं, तो भविष्य में नीतिगत दर में कटौती की गुंजाइश होगी. इस गुंजाइश का उपयोग आर्थिक वृद्धि में सुधार को संबल देने के लिये सोच-समझकर करने की जरूरत है. रिजर्व बैंक के अनुसार सकल मुद्रास्फीति चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में नरम पड़ेगी. अगले वित्त वर्ष की पहली तिमाही में इसमें और कमी आने का अनुमान है. मुद्रास्फीति जून 2020 से 6 प्रतिशत से ऊपर बनी हुई है. सरकार ने आरबीआई को महंगाई दर 2 प्रतिशत घट-बढ़ के साथ 4 प्रतिशत के स्तर पर रखने की जिम्मेदारी दी हुई है. वृद्धि के बारे में दास ने कहा कि हालांकि, कुछ अनिश्चितताएं भी हैं, जो शुरूआती पुनरूद्धार के पहिये को रोक सकती हैं. उसमें मुख्य रूप से कोविड-19 के मामलों में फिर से बढ़ोतरी की आशंका है.

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पहली तिमाही में जीडीपी में 23.9 प्रतिशत की गिरावट
घरेलू वित्तीय स्थिति में सुधार के बावजूद निजी निवेश गतिविधियां नरम रह सकती हैं. हालांकि, घरेलू वित्तीय स्थिति बेहतर हुई है. चालू वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में देश के जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में 23.9 प्रतिशत की गिरावट आयी है. डिप्टी गवर्नर पात्रा ने कहा कि भारत इस साल की पहली तिमाही में तकनीकी रूप से मंदी की स्थिति में पहुंचा है. यह देश के इतिहास में पहली बार हुआ है. उन्होंने कहा कि अगर अनुमान सही बैठता है, जीडीपी में 2020-21 में कोविड- पूर्व स्तर के मुकाबले करीब 6 प्रतिशत की कमी आएगी और उत्पादन के स्तर पर जो नुकसान हुआ है, उसे पाप्त करने में कई वर्ष लग सकते हैं. आरबीआई के कार्यकारी निदेशक मृदुल सागर ने नीतिगत दर को यथावत रखने के पक्ष में वोट करते हुए इस बात पर चिंता जतायी कि अगर मौजूदा नकारात्मक वास्तविक ब्याज दर और नीचे जाती है, इससे विकृतियां उत्पन्न हो सकती है जिससे सकल बचत, चालू खाता और मध्यम अवधि में वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है. 

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उन्होंने कहा कि खुदरा मियादी जमा दर एक साल की अवधि के लिये 4.90 से 5.50 प्रतिशत के बीच है, जबकि सकल मुद्रास्फीति कुछ महीनों से इससे ऊपर है। भविष्य में मुद्रास्फीति नीचे आने की उम्मीद है और इससे नीतिगत दर में कमी की गुंजाइश होगी. ऐसे में फिलहाल नीतिगत दर को यथावत रखना युक्तिसंगत होगा. एमपीसी के सभी सदस्य .. शक्तिकांत दास, माइकल देबव्रत पात्रा, मृदुल के सागर, शशांक भिडे, आशिमा गोयल जयंत आर वर्मा...ने नीतिगत दर यथावत रखने के पक्ष में मत दिये. समिति ने मुद्रास्फीति को लक्ष्य के दायरे में लाने के के साथ आर्थिक वृद्धि को गति देने के लिये जबतक जरूरी हो, मौद्रिक नीति के मामले में उदार रुख रखने का भी समर्थन किया. अक्टूबर 2020 की पहले पखवाड़े में जारी मौद्रिक नीति समीक्षा में नीतिगत दर रेपो को 4 प्रतिशत पर बरकरार रखा गया. इसके साथ ही अन्य दरों में भी कोई बदलाव नहीं किया गया.

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