रेल परिचालन के दौरान, मवेशियों के पटरी पर कटने से रेलवे को करोड़ों का नुकसान उठाना पड़ता है। जिसके एवज में यात्रियों को सफर के दौरान 100 से 200 रुपये तक भुगतान करना पड़ता है।
पंजाब के रूपनगर में गुरुद्वारा पाठा साहिब के पास रविवार रात ही एक ताजा मामला सामने आया। रेलवे ट्रैक पर रात के अंधेरे में आवारा मवेशियों का झुंड आ गया। ऐसे में मवेशियों को बचाने के लिए ड्राइवर ने इमरजेंसी ब्रेक लगाए, तो अनियंत्रित होकर मालगाड़ी के 16 डिब्बे पटरी से उतर गए। वहीं आरटीआई में मिली एक जानकारी के मुताबिक अगर डीजल से चलने वाली पैसेंजर ट्रेन एक मिनट रुकती है, तो उससे 20,401 रुपये का नुकसान होता है। वहीं इलेक्ट्रिक ट्रेन को 20,459 रुपये का नुकसान होता है। इसी तरह डीजल से चलने वाली गुड्स ट्रेन को एक मिनट रुकने पर 13,334 रुपये और इलेक्ट्रिक ट्रेन को 13,392 रुपये का नुकसान होता है। यह वो नुकसान है जो सीधे तौर पर रेलवे को होता है। अब ट्रेन में बैठे यात्रियों को कितना नुकसान उठाना पड़ता होगा। इसका अनुमान लगाया जा सकता है।
रेलवे से जुड़े जानकारों के अनुसार अगर कहीं पर बिना वजह एक ट्रेन रुक जाती है तो सुरक्षा और ट्रैफिक को देखते हुए पीछे आने वाली कई दूसरी ट्रेनों पर भी इसका असर पड़ता है। उन्हें भी एहतियातन रोक दिया जाता है। अब ऐसे में अगर वो ट्रेन लेट होती हैं जहां रेलवे हर यात्री को 100 या 200 रुपये का भुगतान करता है तो नुकसान और बढ़ जाएगा।
आरटीआई के अनुसार ट्रेन से पशुओं के कटने की घटनाएं उत्तरप्रदेश, पंजाब और पश्चिम बंगाल के कई इलाकों में बहुत होती हैं। नॉर्थ-ईस्ट में तो ट्रेन से टकराकर हाथी भी मर रहे हैं। उत्तरप्रदेश के केवल एक मुरादाबाद मंडल में 2016 से लेकर 2019 तक चार साल में 3,090 ट्रेन पशु के कटने के बाद 15 मिनट तक लेट हो गई थी।
हाल ही में पशुपालन और डेयरी विभाग ने एक रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट के मुताबिक 20वीं पशुधन गणना से पता चला है कि 50.21 लाख छुट्टा गोपशु देश की सड़कों पर घूम रहे हैं। इसमे पहले नंबर पर राजस्थान 12.72 लाख तो दूसरे नंबर पर यूपी में 11.84 लाख गोपशु सड़कों पर आवारा घूम रहे हैं। आंकड़ों के मताबिक देश के 50 फीसद गोपशु तो सिर्फ यूपी और राजस्थान की सड़कों पर ही घूम रहे हैं।
वहीं रेलवे के अनुसार पिछले एक साल में आवारा मवेशियों ने 26,000 से अधिक मामलों ने ट्रेन संचालन प्रभावित किया। भारतीय रेलवे द्वारा तैयार किए गए नवीनतम आंतरिक आंकड़ों के अनुसार, आवारा मवेशियों की बढ़ती संख्या के फलस्वरूप, अधिक संख्या में गाय, भैंस और बैल रेल की पटरियों पर भटकते हुए और तेज गति वाली ट्रेनों के नीचे आ रहे हैं। 19 फरवरी 2022 तक, 2021-22 के दौरान रेल पटरियों पर कुल 26,142 मवेशी भागे (सीआरओ) मामले थे, जबकि इसी अवधि के लिए मानव रन-ओवर (एचआरओ) के 10,919 मामले थे।
उत्तरी क्षेत्र और उत्तर मध्य क्षेत्र, जिसमें ज्यादातर उत्तर भारत शामिल हैं, इस इलाके में साल 2021-22 में क्रमश: 6,816 और 6,130 सीआरओ मामलों के साथ अधिकतम ऐसी घटनाओं की सूचना सामने आये हैं। जबकि रेलवे ने 2020-21 की अवधि में कुल 19,949 सीआरओ मामले और 7,185 एचआरओ मामले देखे। चलती ट्रेन के नीचे आने वाले मवेशियों की संख्या 2014-15 में लगभग 2,000-3,000 से बढ़कर 2017-18 में 14,000 से अधिक हो गई है। 2019-20 में, कुल 27,046 ऐसी घटनाओं में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
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Source : IANS