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OPS vs NPS: रघुराम राजन की चेतावनी- अर्थव्यवस्था के लिए घातक है पुरानी पेंशन स्कीम

OPS vs NPS: देश के मशहूर अर्थशास्त्री और आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने पुरानी पेंशन योजना को देश और अर्थव्यवस्था दोनों के लिए घातक बताया है.

Updated on: 20 Jan 2023, 11:19 AM

New Delhi:

OPS vs NPS: देश में ओल्ड पेंशन स्कीम (OPS) और नई पेंशन स्कीम (NPS) को लेकर नया विवाद खड़ा हो गया है. भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास और योजना आयोग के उपाध्यक्ष रहे मोंटेक सिंह अहलूवालिया के बाद अब देश के मशहूर अर्थशास्त्री और आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने पुरानी पेंशन योजना को देश और अर्थव्यवस्था दोनों के लिए घातक बताया है. उन्होंने कहा कि ओपीएस को उसको लेकर बढ़ रही देनदारियों के वजह से ही बंद किया गया था. अब चूकिं कई राज्यों में इसको फिर से शुरू करने का प्रयास किया जा रहा है, ऐसे में ओपीएस को लेकर भविष्य के लिए देनदारियों बढ़ जाएंगी. 

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क्या है OPS vs NPS विवाद

आपको बता दें कि हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस सरकार ने नेशनल पेंशन सिस्‍टम (NPS) के स्थान पर पुरानी पेंशन योजना  (OPS) को लागू करने की घोषणा की है. जिसके बाद कई राज्यों में ओपीएस लागू करने के मांगें जोर पकड़ती जा रही हैं. और तो और अब केन्द्र सरकार के कर्मचारी भी OPS का लाभ दिए जाने की मांग कर रहे हैं. यह मांग कुछ इसलिए भी तेज हो गई है कि क्योंकि हिमाचल प्रदेश के साथ ही कांग्रेस शासित राज्य राजस्थान व छत्तीसगढ़ में भी पुरान पेंशन योजना को लागू कर दिया गया है. इस बीच स्विट्ज़रलैंड के दावोस में चल रहे वर्ल्‍ड इकोनॉमिक फोरम (World Economic Forum) समिट में भाग लेने गए रघुराम राजन ने जहां ओपीएस को देश की अर्थव्यवस्था के लिए खतरनाक और एनपीएस को हित में बताया.  उन्होंने कहा कि ओपीएस खामियों से भरी हुई है. जिन राज्यों ने ओपीएस को लागू किया है, उनको भविष्य में बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है. उन्होंने कहा कि राज्यों के लिए इस तरह की आकर्षक योजना को शुरू करना तो सरल है, लेकिन जारी रखना उतना ही मुश्किल है. 

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कई अर्थशास्त्री दे चुके हैं चेतावनी

आपको बता दें कि रघुराम राजन से पहले योजना आयोग के उपाध्यक्ष रहे मोंटेक सिंह अहलूवालिया और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर शक्तिकांत दास ने भी राज्य सरकारों को पुरानी पेंशन योजना को लेकर चेताया था. उन्होंने का था कि पुरानी पेंशन योजना के लिए पैसा जुटाने में राज्यों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ेगा और आखिर में इसका बोझ केन्द्र सरकार पर आएगा, जिसके चलते देश की अर्थ व्यवस्था का गणित बिगड़ जाएगा.