Indian Currency Weak: 1 डॉलर = 1 रुपया है संभव, अगर नहीं तो क्या कारण है?

1 डॉलर को 1 रुपया बनाने की मांग अक्सर सुनाई देती है, लेकिन आर्थिक रूप से यह व्यावहारिक नहीं है. रुपये की कीमत देश की कमाई, व्यापार और भरोसे से तय होती है. विशेषज्ञों के अनुसार व्यापार घाटा, विदेशी पूंजी का बाहर जाना और वैश्विक हालात रुपये की कमजोरी के प्रमुख कारण हैं.

1 डॉलर को 1 रुपया बनाने की मांग अक्सर सुनाई देती है, लेकिन आर्थिक रूप से यह व्यावहारिक नहीं है. रुपये की कीमत देश की कमाई, व्यापार और भरोसे से तय होती है. विशेषज्ञों के अनुसार व्यापार घाटा, विदेशी पूंजी का बाहर जाना और वैश्विक हालात रुपये की कमजोरी के प्रमुख कारण हैं.

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Ravi Prashant
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एक रुपये बराबार एक डॉलर हो सकता है? Photograph: (Grok AI)

अक्सर यह सवाल उठता है कि क्या भारत में कभी 1 डॉलर को 1 रुपया बनाया जा सकता है. सुनने में यह काफी सही लगता है, लेकिन आर्थिक हकीकत इससे बिल्कुल अलग है. मुद्रा की कीमत किसी सरकार की इच्छा से नहीं, बल्कि देश की आर्थिक ताकत, कमाई, उत्पादन और वैश्विक भरोसे से तय होती है. आज स्थिति यह है कि 1 डॉलर के बदले कई रुपये चुकाने पड़ते हैं. अगर 1 डॉलर को 1 रुपया बनाना हो, तो इसका सीधा अर्थ होगा कि भारत की अर्थव्यवस्था, कमाई और वैश्विक प्रभाव अमेरिका से कई गुना अधिक हो. वर्तमान परिस्थितियों में यह व्यावहारिक नहीं है.

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आसान उदाहरण से समझिए

मान लीजिए एक गांव में दो घर हैं. एक घर भारत है और दूसरा अमेरिका. अमेरिका का घर बड़ा है, उसके पास ज्यादा संसाधन, ज्यादा उद्योग और ज्यादा वैश्विक कारोबार है. पूरी दुनिया तेल, सोना, मशीन और टेक्नोलॉजी जैसी चीजें डॉलर में खरीदती और बेचती है. ऐसे में यह कहना कि रुपया और डॉलर बराबर हो जाएं, वैसा ही है जैसे कम संसाधनों वाले घर की तुलना बहुत बड़े घर से करना. आज की तारीख में 1 डॉलर बराबर 90 रुपया है तो इसका मतलब है कि भारत को 90 गुणा ताकतवर होना होगा, जो प्रैक्टिकली संभव नहीं है. 

आखिर भारत ऐसा क्यों नहीं कर सकता है? 

अगर किसी घर की मासिक कमाई 10 हजार रुपये हो और खर्च 15 हजार रुपये, तो उसे उधार लेना पड़ेगा. जितना ज्यादा उधार, उतनी कमजोर स्थिति. देश की अर्थव्यवस्था भी इसी सिद्धांत पर चलती है. भारत जितना सामान दुनिया से खरीदता है, उतना बेच नहीं पाता. इसी अंतर को व्यापार घाटा कहा जाता है. पिछले महीनों में भारत का व्यापार घाटा बढ़ा है. इसका मतलब यह है कि आयात ज्यादा और निर्यात कम हुआ है. जब देश ज्यादा खरीदता है और कम बेचता है, तो विदेशी मुद्रा बाहर जाती है और रुपये पर दबाव बढ़ता है. जब रुपये पर दबाव आएगा तो जाहिर सी बात है कि रुपये कमजोर होगा. 

रुपये क्यों लगातार हो रहा है कमजोर? 

SBI के मुख्य आर्थिक सलाहकार डॉ. घोष के अनुसार, रुपये के कमजोर होने के चार प्रमुख कारण हैं. पहला, भारत और अमेरिका के बीच व्यापार को लेकर अनिश्चितता. दूसरा, विदेशी निवेशकों का भारतीय बाजार से पैसा निकालना. तीसरा, RBI की नीति, जिसमें वह बार-बार बाजार में सीधे हस्तक्षेप नहीं कर रहा. चौथा, बढ़ता हुआ व्यापार घाटा.

तो असली समाधान क्या है?

समस्या का समाधान 1 डॉलर को 1 रुपया बनाना नहीं है. असली समाधान यह है कि भारत ज्यादा उत्पादन करे, ज्यादा निर्यात बढ़ाए और आयात पर निर्भरता कम करे. जब देश की कमाई बढ़ेगी और दुनिया में भारतीय अर्थव्यवस्था पर भरोसा मजबूत होगा, तब रुपया अपने आप मजबूत होगा.

प्रश्न 1: क्या सरकार के फैसले से 1 डॉलर = 1 रुपया किया जा सकता है?
उत्तर: नहीं. किसी भी देश की मुद्रा की कीमत सरकार के आदेश से तय नहीं होती. यह देश की आर्थिक ताकत, निर्यात, आयात, विदेशी निवेश और वैश्विक भरोसे पर निर्भर करती है.

प्रश्न 2: अगर 1 डॉलर = 1 रुपया हो जाए तो क्या भारत मजबूत हो जाएगा?
उत्तर: नहीं. अगर ऐसा जबरन किया गया, तो भारत के निर्यात महंगे हो जाएंगे, आयात सस्ता हो जाएगा और व्यापार घाटा और बढ़ेगा. इससे अर्थव्यवस्था को फायदा नहीं, नुकसान होगा.

प्रश्न 3: रुपया कमजोर क्यों होता जा रहा है?
उत्तर: रुपये की कमजोरी के मुख्य कारण हैं बढ़ता व्यापार घाटा, विदेशी निवेशकों का पैसा बाहर जाना, वैश्विक अनिश्चितता और RBI की सीमित बाजार हस्तक्षेप नीति.

प्रश्न 4: व्यापार घाटा क्या होता है और इसका रुपये से क्या संबंध है?
उत्तर: जब कोई देश जितना सामान बेचता है उससे ज्यादा सामान खरीदता है, तो उसे व्यापार घाटा कहते हैं. ज्यादा आयात और कम निर्यात से विदेशी मुद्रा बाहर जाती है, जिससे रुपया कमजोर होता है.

प्रश्न 5: रुपये को मजबूत करने का सही तरीका क्या है?
उत्तर: रुपये को मजबूत करने के लिए भारत को ज्यादा उत्पादन करना होगा, निर्यात बढ़ाना होगा, आयात कम करना होगा और विदेशी निवेश को आकर्षित करना होगा. इससे देश में डॉलर आएंगे और रुपये की स्थिति सुधरेगी.

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