रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के नए गवर्नर उर्जित पटेल आज नई मौद्रिक नीति की घोषणा करेंगे। इस सिलसिले में सोमवार से ही बैठक चल रही है। आर्थिक मामलों के जानकारों के बीच कयास लगाने का सिलसिला जारी है कि दरों में कटौती होगी या नहीं। घोषणा थोड़ी देर में संभव है। इससे पहले हम आपको ये बताने जा रहे हैं कि मौद्रिक नीति का क्या अर्थ है और यह अर्थव्यवस्था को कैसे प्रभावित करती है।
मौद्रिक नीति एक किस्म का साधन है, जिसके आधार पर बाजार में पैसों की आपूर्ति को नियंत्रित किया जाता है। इसी नीति के आधार पर रिजर्व बैंक तय करता है कि किस दर पर बैंकों को कर्ज देगा और किस दर पर उन बैंकों से वापस पैसा लिया जाएगा।
क्यों जरूरी है मौद्रिक नीति?
1. मूल्य स्थिरताः रिजर्व बैंक मूल्य स्थिरता पर काफी जोर देने के साथ आर्थिक विकास को भी बढ़ाने पर जोर देता है। माकूल महौल बनाए रखने और बाजार को तेजी से चलाने के लिए मूल्य स्थिरता बहुत जरुरी है।
2. बैंक ऋण के नियंत्रित विस्तार: रूपये पैसे की आपूर्ती को बिना प्रभावित किए हुए आपूर्ती करने का काम मौद्रिक नीति के जरिए ही होता है। इस नीति के जरिए इस बात का खयाल रखा जाता है कि किसी भी तरह से आउटपुट प्रभावित न हो।
3. फिक्स्ड इन्वेस्टमेंट: इस नीति के जरिए बैंको की उत्पादक्ता को बढ़ाने पर विशेष बल दिया जाता है। जिससे कि ज्यादा से ज्यादा ग्राहकों का पैसा बैंक के पास जमा रहे।
4. माल और शेयरों का प्रतिबंध: इसके जरिए बैंक इस बात का ध्यान रखती हैं की स्टॉक और उत्पादों को की स्थिति को सामान्य बनाए रखा जाए। इस नीति का मुख्य उद्देश्य कम पैसे लगाकर बाजार से ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाया जाए।
5. इफिसिएंसी को बढ़ावा देना: रिजर्व बैंक इस बात का ख्याल रखता है कि सभी केंद्रीय बैंको की इफिसिएंसी को बढ़ाया जाए। साथ ही नई मुद्रा बाजार के साधन के अनुकूल पेश करने की कोशिश करता है।
कौन तय करता है मौद्रिक नीति?
भारतीय रिजर्व बैंक अपने केन्द्रीय बोर्ड की सिफारिशों के आधार पर मौद्रिक नीति तय करता है। इस बोर्ड में जानेमाने अर्थशास्त्री, उद्योगपति और नीति-निर्माता शामिल होते हैं।
रिजर्व बैंक इसके लिए समय-समय पर भारत सरकार के आर्थिक विभागों से सलाह-मशविरा करता है कि आखिर इसे किस तरह लागू किया जाए। लागू करने से पहले अंतिम फैसला रिजर्व बैंक ही लेता है।
कब होती है मौद्रिक नीति की घोषणा?
इस बारे में कोई भी ऐसा कानून या निर्देश नहीं है कि मौद्रिक नीति किसी खास तारीख को ही घोषित की जाती है। लेकिन आम तौर इसकी घोषणा एक अप्रैल और एक सितंबर के आसपास की जाती है।
हालांकि यह समय समय पर बदलता रहता है। क्योंकि पहले इसे पेश करने की अवधि ज्यादा थी, लेकिन जैसे-जैसे भारत विश्व की अर्थव्यवस्था के साथ जुड़ता चला गया, इसे छह महीने की जगह तीन महीने पर लाने की पहल भी हुई।
Source : News Nation Bureau