परंपरागत कृषि विकास योजना (Paramparagat Krishi Vikas Yojana) के तहत मोदी सरकार किसानों की आय बढ़ाने की कोशिश में है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने अपने पहले बजट में ‘जीरो बजट’ खेती (Zero Budget Farming) का ऐलान किया था. इस योजना के तहत किसानों को बीज, खाद-पानी आदि के इंतजाम में अधिक मेहनत करनी पड़ेगी और लागत काफी कम होगा. लागत कम होने के साथ मुनाफा अधिक होता है. 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने किसानों से कम केमिकल और पेस्टीसाइड इस्तेमाल करने की सलाह दी थी. पीएम ने कहा था, एक किसान के रूप में हमें धरती मां को बीमार बनाने का हक नहीं है. तो आइए जानते हैं क्या है परंपरागत कृषि विकास योजना, जिसके तहत प्रति हेक्टेयर 50 हजार रुपये किसानों को देने की बात की जा रही है.
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दरअसल, मोदी सरकार जैविक खेती को प्रमोद करने के लिए परंपरागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) पर काम कर रही है. इस योजना के तहत तीन साल के लिए प्रति हेक्टेयर 50 हजार रुपये की मदद दी जाएगी. इस योजना के तहत किसानों को ये फायदे मिलेंगे:
- किसानों को जैविक खाद, जैविक कीटनाशकों और वर्मी कंपोस्ट आदि खरीदने के लिए 31,000 रुपये (61 प्रतिशत) मिलेंगे.
- किसानों को जैविक इनपुट खरीदने के लिए तीन साल में प्रति हेक्टेयर 7500 रुपये की मदद दी जाएगी.
- स्वायल हेल्थ मैनेजमेंट के तहत निजी एजेंसियों को नाबार्ड के जरिए प्रति यूनिट 63 लाख रुपये लागत सीमा पर 33 फीसदी आर्थिक मदद मिल रही है.
- ऐसी खेती में कीटनाशक और रासायनिक खादों (Pesticides and Chemical Fertilizers) का इस्तेमाल नहीं होता.
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2004-05 में शुरू की गई थी राष्ट्रीय परियोजना
देश के किसानों का ध्यान जैविक खेती की तरफ आकर्षित करने के लिए 2004-05 में राष्ट्रीय परियोजना (एनपीओएफ) की शुरुआत की गई थी. नेशनल सेंटर ऑफ आर्गेनिक फार्मिंग के मुताबिक, 2003-04 में भारत में जैविक खेती सिर्फ 76,000 हेक्टेयर में हो रही थी जो 2009-10 में बढ़कर 10,85,648 हेक्टेयर हो गई. केंद्रीय कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, अभी 27.70 लाख हेक्टेयर में जैविक खेती की जा रही है. जैविक खेती को बढ़ावा देने के मामले में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, यूपी और राजस्थान सबसे आगे हैं.
ऐसे मिलता है जैविक खेती का सर्टिफिकेट
जैविक खेती का प्रमाण पत्र लेने के लिए पहले आवेदन करना होता है. उसके लिए निर्धारित फीस भी देनी होती है. प्रमाण पत्र लेने से पहले मिट्टी, खाद, बीज, बोआई, सिंचाई, कीटनाशक, कटाई, पैकिंग और भंडारण सहित हर कदम पर जैविक सामग्री जरूरी है. यह साबित करने के लिए इस्तेमाल की गई सामग्री का रिकॉर्ड रखना होता है. रिकॉर्ड प्रामाणिकता की जांच होती है. उसके बाद ही खेत व उपज को जैविक होने का सर्टिफिकेट मिलता है. इसे हासिल करने के बाद ही किसी उत्पाद को ‘जैविक उत्पाद’ की औपचारिक घोषणा के साथ बेचा जा सकता है. एपिडा ने आर्गेनिक फूड की सैंपलिंग और एनालिसिस के लिए एपिडा ने 19 एजेंसियों को मान्यता दी है.
Source : न्यूज स्टेट ब्यूरो