विश्वसनीय डेटा की कमी एमएसएमई के विकास में बड़ी बाधा
सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) क्षेत्र, जिसे भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी माना जाता है, देश में अनुमानित 6.34 करोड़ उद्यमों का एक विशाल समूह है.
नई दिल्ली :
सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) क्षेत्र, जिसे भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी माना जाता है, देश में अनुमानित 6.34 करोड़ उद्यमों का एक विशाल समूह है. हालांकि एमएसएमई क्षेत्र के विकास में एक बड़ी बाधा इस क्षेत्र में काम कर रहे उद्यमों के बारे में विश्वसनीय आंकड़ों की कमी है. हैरानी की बात यह है कि पिछला एमएसएमई सर्वे नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ) द्वारा 2015-16 में यानि छह साल पहले किया गया था. सूत्रों के अनुसार, विश्वसनीय आंकड़ों की यह कमी एमएसएमई क्षेत्र के विकास में एक बड़ी बाधा है. एमएसएमई क्षेत्र में 2020 में बदलाव आया, जब कोरोना वायरस महामारी के दौरान उन्हें तत्काल ऋण की आवश्यकता थी. ऐसे में इस क्षेत्र के सर्वे की आवश्यकता सभी अधिक प्रासंगिक थी.
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सूत्रों ने कहा कि सरकार जल्द ही एमएसएमई क्षेत्र का सर्वे करने पर विचार कर सकती है. उन्होंने कहा कि सर्वे से देश में एमएसएमई की वास्तविक संख्या का अनुमान लगाने में मदद मिलेगी और साथ ही उनकी आवश्यकताओं का वास्तविक आकलन भी होगा. नियमित सर्वेक्षण की कमी के कारण, एमएसएमई क्षेत्र के लिए अभी भी एक महत्वपूर्ण अंतर है और अधूरी मांग पर्याप्त बनी हुई है. एमएसएमई के विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट के अनुसार, एमएसएमई क्षेत्र में कुल ऋण अंतर 20 लाख करोड़ रुपये से 25 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है.
क्रेडिट गैप के साथ, एमएसएमई क्षेत्र अक्सर विश्व स्तर पर उधार लेने में सक्षम नहीं होते, क्योंकि एमएसएमई क्षेत्र को लक्षित करने वाले वित्तीय संस्थानों के लिए पर्याप्त और किफायती फाइनेसिंग उपलब्ध नहीं है. एमएसएमई उद्यमों को अपने ग्राहकों से विलंबित और अनिश्चित भुगतान का भी सामना करना पड़ता है, जिससे कार्यशील पूंजी प्रबंधन और वित्तपोषण बहुत मुश्किल हो जाता है. उद्योग के सूत्रों ने कहा, इस क्षेत्र के नियमित सर्वे से देश में एमएसएमई के लिए ऋण अंतर को पाटने में काफी मदद मिलेगी.
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