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कालानमक धान के लिए सौगात बनेगी सरयू नहर, सिंचाई में आने वाली कठिनाईयां भी दूर होंगी

कालानमक धान के लिए सौगात बनेगी सरयू नहर, सिंचाई में आने वाली कठिनाईयां भी दूर होंगी

Updated on: 02 Jan 2022, 12:40 PM

लखनऊ:

भगवान श्री राम की नगरी अयोध्या के किनारे से निकालने वाली सरयू नदी के नाम से विख्यात सरयू नहर अब भगवान बुद्ध के महाप्रसाद कालानमक धान को संजीवनी देगी। इससे न सिर्फ कालानमक धान की खेती परवान चढ़ेगी, बल्कि सिंचाई में आने वाली कठिनाईयां भी दूर होंगी। इतना ही नहीं, इस खेती से किसानों का जीवन भी सुंगधित होगा।

सरयू नहर से पूर्वांचल के जिन नौ जिलों (बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, गोंडा, सिद्धार्थनगर, बस्ती, संतकबीरनगर, गोरखपुर, महराजगंज) को सिंचाई की सुविधा मिलेगी, उन सबके लिए कालानमक धान को जियोग्राफिकल इंडिकेशन (जीआई) हासिल है।

कालानमक को सिद्धार्थनगर का एक जिला - एक उत्पाद (ओडीओपी) घोषित किया है, पर जीआई इस बात की प्रतीक है कि समान कृषि जलवायु वाले जिलों में पैदा होने वाले धान की खूबियां, स्वाद, सुगंध और पौष्टिकता एक जैसी होगी।

कालानमक को पूर्वांचल के 11 जिलों (गोरखपुर, देवरिया, कुशीनगर, महराजगंज, बस्ती, संतकबीरनगर, सिद्धार्थनगर, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, गोंडा) के लिए जीआई प्राप्त है। इनमें से बहराइच एवं सिद्धार्थनगर नीति आयोग के आकांक्षात्मक जिलों की सूची में शामिल हैं। खूबियों से भरपूर कालानमक की खेती कर इन जिलों के भी किसान भी खुशहाल होंगे। सरकार की यही मंशा भी है। यही वजह है कि कृषि निवेश के लिए सबसे जरूरी सिंचाई की सुविधा पर दोनों सरकारों ने सर्वाधिक फोकस किया। करीब पांच दशक बाद सरयू नहर को पूरी कर सरकार ने अपनी इस प्रतिबद्धता को साबित भी किया।

कालानमक का इतिहास करीब 6000 साल पुराना है। माना जाता है कि यह भगवान बुद्ध का प्रसाद है। तथागत बुद्ध ने कालानमक चावल से बनी खीर को खुद ग्रहण किया था और अपने शिष्यों में बतौर प्रसाद बांटा था। गत अक्टूबर में कुशीनगर के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के लोकार्पण के दौरान बौद्ध देशों से आए महानुभावों को तथागत का यह प्रसाद उपहार स्वरूप भेंट भी किया गया था। तथागत का यह प्रसाद सिर्फ खुशबू में ही बेमिसाल नहीं है, इसकी अन्य खूबियां इसे धान की बाकी प्रजातियों से बहुत आगे रखती हैं। मसलन इसमें बाकी चावलों की तुलना में जिंक और ऑयरन की मात्रा अधिक है। ग्लाइसिमिक इंडेक्स कम होने के नाते मधुमेह के रोगियों के लिए भी मुफीद है। एक चावल में इतनी खूबियों की वजह से डबल इंजन (योगी-मोदी) की सरकार भी इसकी मुरीद है।

कालानमक धान (चावल) की एकमात्र ऐसी प्राकृतिक प्रजाति है जिसमें विटामिन ए भी मिला है। रीजनल फूड रिसर्च एंड एनालिसिस सेंटर लखनऊ की तरफ से किए गए अनुसंधान में यह जानकारी मिली है। यह अनुसंधान कालानमक के संरक्षण और संवर्धन के क्षेत्र में लंबे समय से काम कर रही संस्था पीआरडीएफ की पहल पर किया गया। 26 नवंबर 2021 को संस्था ने जो रिपोर्ट दी उसके मुताबिक प्रति 100 ग्राम में विटामिन ए (बीटा कैरोटीन) की मात्रा 0.42 ग्राम और कुल कैरोटीनॉयडस की मात्रा 0. 53 ग्राम रही।

कृषि के जानकार गिरीश पांडेय का कहना है कि चूंकि यह पूर्वांचल की फसल है, इसलिए योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बनने के पहले से इसकी खूबियों से परिचित थे। यही वजह है कि उन्होंने जनवरी 2018 में यूपी की स्थापना दिवस पर एक जिला-एक उत्पाद (ओडीओपी) के नाम से जिस बेहद महत्वाकांक्षी योजना की घोषणा की , उसमें कालानमक को सिद्धार्थनगर जिले की ओडीओपी में शामिल किया गया।

पिछले केंद्रीय बजट के दौरान संसद में इसकी चर्चा भी हुई थी। केंद्र की मंशा तो हर महत्वपूर्ण विभाग का ओडीओपी घोषित करने की है। कृषि और बागवानी फसलों की तो हो भी चुकी है। इस क्रम में करीब सालभर पहले देशभर के कृषि उत्पादों की घोषणा की थी। इसमें कालानमक को छह जिलों गोरखपुर, सिद्धार्थनगर, बस्ती, संतकबीरनगर, महराजगंज और बलरामपुर का ओडीओपी घोषित किया गया।

सरकार ने कालानमक को ओडीओपी में शामिल कर इसकी जबरदस्त ब्रांडिंग की। नतीजतन इस साल इसकी बम्पर पैदावार हुई है। कालानमक पर करीब चार दशकों से काम रहे अंतरराष्ट्रीय ख्याति वाले धान प्रजनक डॉक्टर आरसी चौधरी के मुताबिक देरी से होने वाली इस प्रजाति के लिए देर से होने वाली बारिश से खासा लाभ हुआ। इससे प्रति हेक्टेयर औसत उपज भी करीब क्विंटल रही। रकबा बढ़कर 50 हजार हेक्टयर हो गया।

सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग के अपर मुख्य सचिव नवनीत सहगल का कहना है कि किसानों की खुशहाली डबल इंजन सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है। इसी के मद्देनजर दोनों सरकारों ने कालानमक को ओडीओपी में शामिल किया। जिन जिलों के लिए कालानमक को जीआई मिली है, उनमें से तकरीबन सभी जिले सरयू नहर से भी आच्छादित हैं। उत्पादक क्षेत्रों में भरपूर पानी मिलने से इनमें कालानमक की संभावनाएं और बेहतर हो जाएंगी। इससे लाखों किसान लाभान्वित होंगे।

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