आगामी 65 से 70 वर्षों तक देश को जितने कोयले की जरूरत होगी, वह अकेले झारखंड पूरी कर सकता है। जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (जीएसआई) की रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड में सबसे अधिक 86216.82 मिलियन टन कोयले का रिजर्व भंडार है। अनुमान है कि 2030 तक देश में सालाना 1192से 1325 मिलियन टन कोयले की डिमांड होगी।
हिसाब लगाकर देखें तो देश में कोयले के रिजर्व भंडार वाले बाकी राज्यों में उत्पादन शून्य भी हो तो झारखंड के पास इतनी क्षमता है कि वह इस डिमांड को छह से सात दशकों तक पूरा कर सकता है। जीएसआई की रिपोर्ट के अनुसार झारखंड सहित उड़ीसा, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल और मध्यप्रदेश सहित देश के कुल पंद्रह राज्यों में कोयले का कुल रिजर्व भंडार 3 लाख 52 हजार 125.97 मिलियन है।
देश के कोयला एवं खनन मंत्री प्रह्लाद जोशी ने इसी रिपोर्ट का हवाला देते हुए राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित जवाब में कहा है कि भविष्य की कोयला जरूरतों के लिए देश में चिंता की स्थिति कतई नहीं है। जीएसआई ने नेशनल कोल इन्वेंट्री पर हाल में जो रिपोर्ट जारी की है, उसमें बताया गया है कि वर्ष 1950 से लेकर वर्ष 2020-21 तक देश में कुल 17 हजार 294.94 मिलियन टन कोयले का उत्पादन हुआ है। यानी बीते 70 वर्षों में देश ने मौजूदा रिजर्व भंडार के तकरीबन 20.35 फीसदी कोयले का उपयोग किया है। अभी-अभी गुजरे साल यानी 2021-22 की बात करें तो देश में कुल कोयला उत्पादन 777.23 मिलियन टन और डिस्पैच 818.04 मिलियन टन रहा।
जीआईएस की रिपोर्ट में यह बताया गया है कि कोयला एवं खनन के क्षेत्र में लगातार अनुसंधान करने वाली कंपनी सीएमपीडीआई (सेंट्रल माइन प्लानिंग एंड डिजाइन इंस्टीट्यूट) प्रतिवर्ष लगभग 4 से 6 हजार मिलियन टन के नये कोयला भंडार का पता लगाती है। बता दें कि सीएमपीडीआई का मुख्यालय भी झारखंड की राजधानी रांची में स्थित है।
झारखंड के बाद कोयला भंडार के मामले में देश का दूसरा सबसे धनी राज्य ओडिशा है, जिसके पास 84 हजार 878.05 मिलियन टन कोल रिजर्व है। तीसरे नंबर पर छत्तीसगढ़ है, जिसके पास 73 हजार 423.54 मिलियन टन रिजर्व भंडार है। इसी तरह चौथे स्थान पर पश्चिम बंगाल है, जिसका कुल कोयला रिजर्व भंडार 33 हजार 92.14 एमटी है। 30 हजार 216.82 एमटी के साथ मध्यप्रदेश पांचवें स्थान पर है।
नॉर्थ इस्ट के पांच राज्यों नागालैंड, असम, सिक्किम, मेघालय और सिक्किम को मिलाकर 17 हजार 39.37 मिट्रिक टन कोयले का रिजर्व भंडार है। हिसाब लगाकर देखें तो देश ने पिछले 70 वर्षों में जितने कोयले का उत्पादन किया है, आज की तारीख में लगभग उतना ही रिजर्व कोयला इन पांच नॉर्थ इस्ट राज्यों में मौजूद है।
हालांकि कोयले के विशाल भंडार के बावजूद भारत अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रतिवर्ष 200 मिलियन टन से भी ज्यादा कोयले का आयात करता है। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2020-21 में 215.251 और 2019-20 में 248.537 मिलियन टन कोयले का आयात किया था।
विशेषज्ञों की मानें तो कोयले का विशाल भंडार होने के बावजूद इसका आयात करने के पीछे कई वजहें हैं। कोयला खनन के लिए भूमि अधिग्रहण, पर्यावरणीय मंजूरी और कोयले की ट्रांसपोटिर्ंग जैसी चुनौतियां हैं। राज्य सरकारों और केंद्र के बीच भूमि अधिग्रहण, मुआवजा, पुनर्वास के बिंदुओं पर मतभेद की वजह से भी नई कोयला परियोजनाएं शुरू करने में बाधाएं आती हैं। हालांकि कोयला मंत्रालय का मानना है कि उत्पादन और विपणन के क्षेत्र में निजी क्षेत्रों का निवेश बढ़ाने के लिए पिछले कुछ सालों से किये जा रहे प्रयासों के सकारात्मक नतीजे सामने आ रहे हैं।
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Source : IANS