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नंदन नीलेकणि, गैर कार्यकारी निदेशक, इंफोसिस (फोटो क्रेडिट- आईएनएस)
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नंदन नीलेकणि, गैर कार्यकारी निदेशक, इंफोसिस (फोटो क्रेडिट- आईएनएस)
देश की दूसरी सबसे बड़ी आईटी कंपनी इंफोसिस 30 नवंबर से 13,000 करोड़ रुपये का शेयर बॉयबैक ऑफर लाएगी जोकि 14 दिसंबर तक खुला रहेगा।
रेग्युलेटरी फाइलिंग में बायबैक की तारीखों को रेखांकित करते हुए, इंफोसिस ने 16 नवंबर को दिए गए पत्र के माध्यम से बायबैक के प्रस्ताव के मसौदा पत्र पर भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) से टिप्पणियां प्राप्त की है।
कंपनी की बीएसई फाइलिंग के मुताबिक बॉयबैक 30 नवंबर को खुलेगा और 14 दिसंबर तक जारी रहेगा। इंफोसिस के 36 साल लंबे कारोबारी इतिहास में यह पहला बायबैक होगा। जिसमें कंपनी 1,150 रुपये प्रति शेयर के भाव से 11.30 करोड़ शेयर बायबैक करेगी।
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शेयर बायबैक दरअसल कंपनी का अर्निंग पर शेयर बढ़ाता है और शेयरधारकों को सरप्लस कैश वापस कराता है जबकि बाजार की कमज़ोर स्थिति में कंपनी के शेयर प्राइस को संभालता है।
इस साल के शुरू में, कंपनी की प्रतिद्वंदी कंपनी टाटा कंसल्टेंसी सर्विस ने 16,000 करोड़ रुपये का मेगा बायबैक ऑफर पूरा किया था। साथ ही दूसरे कंपीटिटर्स जैसे कॉग्नीजेंट, विप्रो और माइंडट्री ने भी ऐसी ही घोषणाएं की थी।
कैसे होता है बायबैक?
बायबैक के लिए कंपनी के पास दो तरीके होते हैं। पहला टेंडर ऑफर के ज़रिए दूसरा ओपन मार्केट द्वारा। टेंडर ऑफर में कंपनी शेयरों की संख्या बता कर ऑफर जारी करती हैं जितने शेयर कंपनी बायबैक करना चाहती है और इन शेयरों को खरीदने के लिए प्राइस-रेंज का संकेत देती है।
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इस ऑफर को लेने वाले निवेशकों को आवेदन फॉर्म भरकर जमा करना होता है। इस आवेदन में निवेशकर कंपनी को बताता है कि वह कितने शेयर टेंडर करना चाहता है और इसके लिए क्या कीमत चाहता है।
अक्सर टेंडर ऑफर बायबैक की कीमत ओपन मार्केट में शेयरों के दाम से ज़्यादा होती है। यहां कंपनी अगर निवेशक द्वारा शेयर को स्वीकार कर रही है तो उसे ऑफर क्लोज़ होने के 15 दिन के अंदर जानकारी देनी होगी। दूसरे ऑप्शन ओपन मार्केट के ज़रिए कंपनी धीरे-धीरे शेयर बाज़ार से ही शेयर वापस खरीदना शुरु कर सकती है।
कंपनियां क्यों करती हैं शेयर बायबैक?
कंपनियां कुछ ख़ास परिस्थितियों में ही शेयर बायबैक करती हैं। पहला तब जब कंपनी यह महसूस करें कि उसकी कंपनी के शेयरों की कीमत बाज़ार में कुछ ज़्यादा ही टूट रही है।
दूसरा ऐसा कंपनी तब करती है जब वो प्रमोटर्स की हिस्सेदारी बढ़ाना चाहती हो, ऐसा करके कंपनी टेकओवर की संभावनाओं को ख़त्म कर कंपनी पर अपनी पकड़ बनाए रखने की कोशिश करती है।
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Source : News Nation Bureau