इंफोसिस में फिर उठा सैलरी विवाद, नारायण मूर्ति ने ई-मेल के ज़रिए कहा- किस मुंह से प्रवीण कहेंगे मेहनत से करो काम
इंफोसिस में सैलरी विवाद फिर उठा है। कंपनी के को-फाउंडर नारायण मूर्ति ने कंपनी को ई-मेल लिख गवर्नेंस पर अपनी नाराज़गी जाहिर की है। अब नारायण मूर्ति ने इंफोसिस के सीओओ प्रवीन राव की सैलरी पर सवाल उठाए हैं।
नई दिल्ली:
इंफोसिस में सैलरी विवाद फिर उठा है। कंपनी के को-फाउंडर नारायण मूर्ति ने कंपनी को ई-मेल लिख गवर्नेंस पर अपनी नाराज़गी जाहिर की है। अब नारायण मूर्ति ने इंफोसिस के सीओओ प्रवीन राव की सैलरी पर सवाल उठाए हैं।
गौरतलब है कि सीओओ प्रवीन राव की सैलरी फरवरी में बढ़ाई गई थी। 31 मार्च को फिर सैलरी बढ़ाने का प्रस्ताव वोटिंग के लिए भी आया। सीओओ प्रवीन राव की सैलरी में 35% का इज़ाफा कर 12.5 करोड़ रुपये करने का प्रस्ताव वोटिंग के लिए आया जिस पर नारायण मूर्ति समेत कंपनी के ज्यादातर प्रोमोटर्स ने वोटिंग नहीं की है।
ई-मेल के ज़रिए नारायण मूर्ति ने अपनी आपत्तियां व्यक्त करते हुए कहा है कि इंफोसिस में खराब गवर्नेंस देखने को मिल रहा है। नियमों के खिलाफ सैलरी में बढ़ोतरी की जा रही है। कर्मचारियों की सैलरी के बड़े अंतर को खत्म करना चाहिए।
उन्होंनें कहा कि इस तरह का प्रस्ताव पहले कभी नहीं आया। गौरतलब है कि कंपनी के 24 फीसदी पब्लिक इंस्टीट्यूशंस और 67 फीसदी नॉन-इंस्टीट्यूशन इस प्रस्ताव के खिलाफ हैं। हालांकि 67 फीसदी निवेशकों ने प्रस्ताव के पक्ष में वोट किया है।
नारायण मूर्ति ने लिखा...
मुझे प्रवीण से बहुत प्यार है। मैंने प्रवीण की नियुक्ति 1985 में की थी और तब से इन्फोसिस में रहने तक मैंने उसे तालीम दी। उसे किनारे लगा दिया गया था। 2013 में जब मेरी वापसी हुई तो वह इन्फोसिस के कार्यकारी परिषद का सदस्य भी नहीं रह गया था। क्रिस (क्रिस गोपालकृष्णन, को-फाउंडर), शिबू (एस डी शिबूलाल, को-फाउंडर) और मैंने उसे प्रोत्साहित किया, उसे बोर्ड में लाया और उसे तब सीओओ बनाया जब हमने विशाल को सीईओ नियुक्त किया। इसलिए, इस मेल का प्रवीण से कोई लेनादेना नहीं है।
मैं कॉर्पोरेशन में कॉम्पेंसेशन और इक्विटी में अंतर कम करने की कोशिश करने में विश्वास करता हूं। आपको शायद पता न हो कि इन्फोसिस की स्थापना के वक्त मेरी सैलरी मेरी पहली वाली नौकरी का सिर्फ 10 प्रतिशत थी। मैंने सुनिश्चित किया कि मेरे युवा सह-संस्थापक सहयोगी अपनी पहले वाली सैलरी से 20 प्रतिशत ज्यादा पाएं। हालांकि, मैं पहले वाली नौकरी में उनसे सात लेवल ऊपर था और 11 साल बड़ा भी। मैंने उन्हें इतना बड़ा इक्विटी कॉम्पेंसेशन दिया जिसका दुनिया में कहीं जोड़ नहीं मिला। इसलिए, यह आपत्ति उस व्यक्ति की ओर से उठी है जिसने जो कहा, वह किया।
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उन्होंने लिखा है कि, 'जब कंपनी के ज्यादातर कर्मचारियों को महज 6 से 8 प्रतिशत तक की वृद्धि मिली हो, तब शीर्षस्थ लोगों के कॉम्पेंसेशन में 60 से 70 प्रतिशत वृद्धि मेरी नजर में उचित नहीं है। यह कंपनी को बेहतर बनाने के लिए कठिन परिश्रम में जुटे प्रॉजेक्ट मैनेजर्स, डिलिवरी मैनेजर्स, ऐनालिस्ट्स, प्रोग्रामर्स, फील्ड में काम कर रहे सेल्स वाले लोग, एंट्री लेवल इंजिनियर्स, क्लर्क्स और ऑफिस बॉयज समेत इन्फोसिस के बहुसंख्यक कर्मचारियों के प्रति बहुत अन्याय है।'
नारायण मूर्ति ने लिखा है कि 'ऐसे फैसले की वजह से मैनेजमेंट और बोर्ड में एंप्लॉयीज का भरोसा और विश्वास घटना लाजिमी है। प्रवीण जैसा कोई विनीत व्यक्ति (जिसे 30 साल से इन्फोसिस के मूल्यों की समझ है) किस मुंह से अपने जूनियरों को कह सकता है कि उन्हें कड़ी मेहनत करनी चाहिए और लागत कम करने एवं मार्जिन बढ़ाने के लिए त्याग करना चाहिए? मुझे इन लोगों से कई मेल मिले। सबने पूछा कि क्या यह प्रस्ताव सही है? कंपनी के इतिहास में किसी भी प्रस्ताव को इतनी कम सहमति नहीं मिली।'
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