निराशाजनक रहे जीडीपी के आंकड़े, नोटबंदी के बाद ग्रोथ रेट को बनाए रखना होगी बड़ी चुनौती

तिमाही आधार पर जहां जीडीपी बढ़ी है वहीं सालाना आधार पर जीडीपी दर में गिरावट आई है।

तिमाही आधार पर जहां जीडीपी बढ़ी है वहीं सालाना आधार पर जीडीपी दर में गिरावट आई है।

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Abhishek Parashar
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निराशाजनक रहे जीडीपी के आंकड़े, नोटबंदी के बाद ग्रोथ रेट को बनाए रखना होगी बड़ी चुनौती

तिमाही आधार पर जहां जीडीपी बढ़ी है वहीं सालाना आधार पर जीडीपी दर में गिरावट आई है। देश की आर्थिक वृद्धि दर (जी़डीपी) जुलाई-सितंबर तिमाही में 7.3 फीसदी रही जबकि पिछले कारोबारी साल यानी 2015-16 की समान तिमाही में जीडीपी 7.6 फीसदी रही थी। बाजार के लिए मौजूदा जीडीपी के आंकड़े निराशाजनक रहे हैं।

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अनुमान जताया जा रहा था कि दूसरी तिमाही में जीडीपी ग्रोथ 7.5 फीसदी रह सकती है लेकिन ये 7.3 फीसदी पर आई है। आंकड़ों के मुताबिक 2016-2017 की दूसरी तिमाही में जीडीपी 29.63 लाख करोड़ रुपए रहा था जो पिछले साल 2015-16 की समान अवधि की तुलना में थोड़ा ज्यादा है। जुलाई-सितंबर तिमाही में सरकार की ओर से खर्च बढ़ाने और कृषि क्षेत्र के अच्छे प्रदर्शन की वजह से जीडीपी ग्रोथ में तेजी आई। कृषि क्षेत्र की वृद्धि 3.3 फीसदी रही।

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जुलाई-सितंबर तिमाही में देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की रफ्तार उम्मीद से कम रही, हालांकि चालू वित्त वर्ष 2016-17 की पहली तिमाही के मुकाबले इसमें तेजी आई है। जीडीपी के आंकड़ों के बाद निवेश में गति के लिए अब आरबीआई की अगली बैठक में ब्याज दरों में कटौती किए जाने का दबाव बढ़ेगा।

नोटबंदी के बाद कैश की किल्लत की वजह से अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्रों में पहले से ही मंदी की स्थिति बनी हुई है। ऐसे में आरबीआई के लिए दरों को ऊंचा बनाए रखना व्यावहारिक विकल्प नहीं होगा।

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अगले कुछ हफ्तों में कर्ज की दर कम हो सकती है क्योंकि पुराने नोटों को वापस लेने से बैंकों के पास काफी पैसा जमा हुआ है। 8 नवंबर के बाद से बैंकों के पास 8 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम जमा हो चुकी है। सातवें वेतन आयोग और त्योहारों के कारण भी सितंबर तिमाही के अंत में मांग बढ़ाने में मदद मिली।

मैुन्युफैक्चरिंग ग्रोथ होगी बड़ी चुनौती

सितंबर तिमाही में विनिर्माण क्षेत्र की रफ्तार निराशाजनक रही। सितंबर तिमाही में वृद्धि दर 7.1 फीसदी रही, जो पिछली तिमाही में 9.1 फीसदी रही थी। अगली तिमाही में सबसे बड़ी चुनौती मैन्युफैक्चरिंग के साथ जीडीपी ग्रोथ की रफ्तार को बनाए रखने की होगी।

नोटबंदी के बाद आर्थिक गतिविधियों पर पड़ने वाले असर को देखते हुए अगली तिमाही में मैन्युफैक्चरिंग की रफ्तार धीमी होने की आशंका है। नकदी की किल्लत की वजह से अगली तिमाही में औद्योगिक क्षेत्र में नरमी आ सकती है।

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चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में उद्योगों की वृद्धि दर 5.1 फीसदी रही जो पिछले वित्त वर्ष की समान तिमाही के 6 फीसदी से कम है। दूसरी तिमाही में निवेश में भी नरमी का रुख रहा और पूंजी निर्माण में गिरावट देखी गई।

नोटबंदी से पड़ेगी जीडीपी पर चोट

सरकार के लिए अगली तिमाही के जीडीपी आंकड़ों को संभाले रखना काफी चुनौतीपूर्ण होगा क्योंकि नवंबर में सरकार के नोटबंदी के फैसले का असर अक्टूबर-दिसंबर की जीडीपी दर पर दिखाई देगा। कई रेटिंग एजेंसियां मौजूदा वित्त वर्ष के लिए भारत के जीडीपी अनुमान में कटौती कर चुकी है। इससे पहले फिच ने मौजूदा वित्त वर्ष के लिए भारत की जीडीपी ग्रोथ के अनुमान को घटाकर 6.9 फीसदी कर दिया है। फिच ने इससे पहले वित्त वर्ष 2016 के लिए 7.4 फीसदी जीडीपी का अनुमान जाहिर किया था।

हालांकि फिच का कहना है कि नोटबंदी के बाद आर्थिक गतिविधियों में मामूली व्यवधान आएगा। रिपोर्ट के मुताबिक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की तरफ से 2015 की शुरुआत से अब तक की गई 150 आधार अंकों की कटौती से भी जीडीपी ग्रोथ की रफ्तार को मदद नहीं मिलेगी।

नोटबंदी के फैसले के बाद रेटिंग एजेंसी मॉर्गन स्टैनली और बैंक ऑफ अमेरिका मेरिल लिंच ने 2016 के लिए भारत के जीडीपी ग्रोथ के अनुमान को 7.7 फीसदी से घटाकर 7.4 फीसदी कर दिया है। नोटबंदी के फैसले के कारण देश के इकनॉमी की रफ्तार पर उल्टा असर पड़ने की संभावना जताई जा रही है।

रेटिंग में हुई कटौती की वजह नोटबंदी के बाद कारोबार में आने वाली संभावित मंदी हो सकती है। नोटबंदी के बाद पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने राज्यसभा में बयान देते हुए कहा था कि प्रधानमंत्री मोदी के 500 और 1000 रुपये के नोटों को बैन किए जाने के बाद देश की जीडीपी में 2 फीसदी की गिरावट आ सकती है।

मॉर्गन स्टैनली ने वर्ष 2018 में देश की ग्रोथ रेट के अनुमान को भी 7.8 फीसदी से कम कर 7.6 फीसदी कर दिया है। केंद्र सरकार की ओर से 8 नवंबर को 500 और 1000 रुपये के नोट को बंद किए जाने के बाद से देशभर में छोटे उद्योग, बाजार, मंडी, असंगठित क्षेत्र और छोटी कंपनियों में काम प्रभावित हुआ है।

500 और 1000 रुपये के नोटों की देश में कुल प्रचलित मुद्रा में 86 फीसदी की हिस्सेदारी है। बैंक ऑफ अमेरिका मेरिल लिंच ने अपने इंडियन एक्सपर्ट इंद्रनील सेन गुप्ता की रिपोर्ट के बाद भारत की जीडीपी ग्रोथ के अनुमान को घटाया है।

अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में देश की जीडीपी दर की रफ्तार को बनाए रखना सरकार के लिए बड़ी चुनौती होगी। नोटबंदी के बाद में बाजार में कैश का संकट पैदा हुआ है जिसका सीधा असर उत्पादन पर देखा जा रहा है। इंडस्ट्रियल उत्पादन में गिरावट का असर जीडीपी के आंकड़ों पर देखा जाएगा।

HIGHLIGHTS

  • मौजूदा वित्त वर्ष 2016-17 की दूसरी तिमाही में जीडीपी के अांकड़े निराशाजनक रहे हैं 
  • तिमाही आधार पर जहां जीडीपी बढ़ी है वहीं सालाना आधार पर जीडीपी दर में गिरावट आई है

Source : Abhishek Parashar

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