भारी मंदी के बीच अब इस मोर्चे पर भारतीय अर्थव्यवस्था को बड़ा झटका, जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर
मौजूदा समय देश की कुल बचत में 4 प्रतिशत की बड़ी गिरावट आई है और यह 34.6 प्रतिशत से गिरकर 30.5 प्रतिशत पर सीमित हो गई है.
नई दिल्ली:
देश में मंदी का असर अब साफ दिखाई देने लगा है पिछले पांच सालों में घरेलू बचत की देनदारी 58 प्रतिशत से बढ़कर 7.4 करोड़ जा पहुंची. भारत में घरेलू बचत को देश की अर्थव्यवस्था की जान कहा जाता है लेकिन पिछले पांच सालों के दौरान इस मजबूत मोर्चे पर भी कर्ज कर्ज की काली छाया मंडराने लगी है. लगभग एक से डेढ़ साल पहले साल 2017 में घरेलू बचत में कर्ज की यह बढ़ोतरी महज 22 फीसदी थी. आपको बता दें कि यह आंकड़ा देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक भारतीय स्टेट बैंक की रिसर्च विंग का है.
साल 2019 में पिछले पांच सालों के दौरान परिवार का कर्ज दोगुना हो गया है जबकि आमदनी में महज डेढ़ प्रतिशत का ही इजाफा हुआ है, जिसका नतीजा देश के सामने है. मौजूदा समय देश की कुल बचत में 4 प्रतिशत की बड़ी गिरावट आई है और यह 34.6 प्रतिशत से गिरकर 30.5 प्रतिशत पर सीमित हो गई है. बचत की इस बड़ी गिरावट की सबसे बड़ी वजह घरेलू स्तर पर बचत में आई गिरावट है. बीते पांच साल में परिवारों की बचत तकरीबन 6 प्रतिशत (GDP) गिरी है. वित्तीय साल 2012 में जो घरेलू बचत दर 23.6 प्रतिशत थी वो 2018 में घटकर 17.2 प्रतिशत ही रह गई. मौजूदा समय घरेलू बचत में भारी गिरावट का असर मौजूदा अर्थव्यवस्था पर दिखाई दने लगा है.
भारतीय स्टेट बैंक ने अपने रिसर्च नोट में बताया है कि कैपिटल गेन टैक्स को हटाने के बाद साल 2018 में वित्तीय बचत पर कुछ असर दिखाई दिया लेकिन साल 2019 में यह फिर से कम हो गया इसके अलावा एसबीआई ने यह भी कहा कि केवल कर्ज के रेट कम करने से मामला हाथ नहीं आएगा इससे बचने के लिए अब सरकार की ओर से कुछ और बड़े कदम उठाने होंगे.
भारतीय स्टेट बैंक के मुताबिक ग्रामीण क्षेत्रों में सरकार को मांग बढ़ाने के लिए कुछ खर्चों को बढ़ाना चाहिए. किसानों को आर्थिक मदद के लिए केंद्र सरकार की जो स्कीम शुरू की गईं हैं, उनमें अभी तक लक्ष्य से कम किसानों का आवंटन हुआ है. पीएम-किसान पोर्टल के आंकड़े को देखें तो साफ जाहिर है अभी सरकार अपने लक्ष्य से आधे किसानों तक ही पहुंच बना पाई है. आपको बता दें कि जून 2019 तक 6.89 करोड़ किसानों का वैलिडेशन हुआ था जबकि लक्ष्य 14. 6 करोड़ का निर्धारित किया गया था. इसे बढ़ाकर ग्रामीण मांग बढ़ाई जा सकती है.
बजट में आवंटित रकम में से अभी तक सरकार महज 32 प्रतिशत रकम ही खर्च कर पाई है. वहीं अगर पिछले साल की बात करें तो अबतक यह 37.1 प्रतिशत तक खर्च हो चुकी थी. इस दौरान देश में निजी निवेशों में भी भारी गिरावट दर्ज की गई है. साल 2007 से 2014 के दौरान होने वाली 50 प्रतिशत की जगह 2014 से 2019 के दौरान 30 प्रतिशत गिरावट आई है. ये आंकड़े बता रहे हैं कि यह केवल वित्तीय संकट भर नहीं है बल्कि ये एक बड़े संकट का आगमन है. अब देखना ये हो कि सरकार इससे कैसे उबरती है.
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