Coronavirus (Covid-19): नोट छापना तो सरकार के हाथ में है, फिर भी धन की कमी का रोना क्यों? जानें यहां
Coronavirus (Covid-19): जानकारों का कहना है कि कोई भी देश सामान्यत: सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 2 फीसदी से 3 फीसदी तक नोटों की छपाई करता है.
नई दिल्ली:
Coronavirus (Covid-19): कोरोना वायरस महामारी (Coronavirus Epidemic) की वजह से दुनियाभर में हाहाकार मचा हुआ है. वायरस से निपटने के लिए दुनिया के कई देशों ने लॉकडाउन (Lockdown) लगा रखा है जिसकी वजह से आर्थिक गतिविधियां ठप हैं. परिणाम यह है कि लोगों की नौकरियां जा रही हैं और कई छोटे उद्योग बंदी की कगार पर पहुंच गए हैं. सरकारों को आर्थिक स्थिति को उबारने के लिए आर्थिक राहत पैकेज (Economic Relief Package) लाना पड़ रहा है. हालांकि सरकारें भी एक सीमा तक ही राहत पैकेज जारी कर सकती हैं. ऐसे में आप लोगों के मन यह सवाल आता होगा कि सरकार नोट छापकर इस समस्या का निराकरण कर सकती है. हालांकि आपका सोचना वाजिब है लेकिन क्या आप जानते हैं कि किसी भी देश को नोट की छपाई के लिए कुछ जरूरी आर्थिक बातों का ध्यान रखना पड़ता है और अगर बगैर सोचे समझे नोटों की छपाई की गई तो उसका अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है.
यह भी पढ़ें: Covid-19: दुनिया के सबसे बड़े निवेशक को लॉकडाउन से लगा झटका, इतने अरब डॉलर का नुकसान
GDP की 2 फीसदी से 3 फीसदी तक नोटों की छपाई
जानकारों का कहना है कि कोई भी देश सामान्यत: सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 2 फीसदी से 3 फीसदी तक नोटों की छपाई करता है. ऐसे में ज्यादा से ज्यादा नोटों की छपाई के लिए जीडीपी में बढ़ोतरी होना जरूरी है. जानकारों का कहना है कि जीडीपी में बढ़ोतरी के लिए सरकारों को विनिर्माण क्षेत्र में ग्रोथ, चालू खाता घाटा और व्यापार घाटे को कम करने जैसे उपाय करने जरूरी होते हैं.
यह भी पढ़ें: Gold Rate Today: सोने और चांदी में बनाएं मुनाफे की रणनीति, जानिए दिग्गज जानकारों का नजरिया
अधिक नोट छापने से बढ़ जाती है महंगाई
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि ज्यादा से ज्यादा नोट छापने से महंगाई चरम पर पहुंच सकती है. बता दें कि जिम्बाब्वे और वेनेजुएला की सरकारों ने कर्ज को चुकाने के लिए भारी मात्रा में नोटों की छपाई की थी. उनके इस कदम के बाद आर्थिक ग्रोथ, सप्लाई और मांग में सामंजस्य नहीं होने की वजह से वहां पर महंगाई चरम पर पहुंच गई थी. इन देशों ने जितने नोटों की छपाई की उतनी ही महंगाई में बढ़ोतरी देखने को मिली थी. ये दोनों ही देश बहुत अधिक महंगाई (Hyperinflation) में चले गए थे. आंकड़ों के मुताबिक 2008 में जिम्बाब्वे में महंगाई दर में 231,000,000 फीसदी की बढ़ोतरी देखने को मिली थी.
यह भी पढ़ें: Covid-19: 40 दिवसीय लॉकडाउन से भारतीय अर्थव्यवस्था को 320 अरब डॉलर नुकसान का अनुमान
जानकारों का कहना है कि अगर नोटों की छपाई जारी रहती है और उत्पादन कम या पूरी तरह से बंद रहता है तो ऐसी स्थिति में सप्लाई प्रभावित होने से महंगाई में बढ़ोतरी होना निश्चित है. इसके अलावा एक सीमा से अधिक नोटों की छपाई होने से करेंसी की कीमत में भी भारी गिरावट आती है. इसके अलावा दुनिया की बड़ी रेटिंग एजेंसियां देश की रेटिंग में भी कटौती करने लग जाती है, जिसकी वजह से उन्हें दूसरे देशों से लोन मिलने में दिक्कत होती है. वहीं अगर इन देशों को कर्ज मिलता भी है तो बड़े ऊंचे रेट पर कर्ज दिया जाता है.
बता दें कि 2008 की मंदी के समय कई देशों के सेंट्रल बैंक ने नोटों की छपाई के जरिए अर्थव्यवस्था को संभालने का प्रयास किया गया था. उस प्रक्रिया को 'क्वांटिटेटिव इजींग' (Quantitative Easing) कहा गया. इसका मतलब यह था कि अधिक से अधिक लोगों के पास पैसे की पहुंच बढ़ाने के लिए ज्यादा से ज्यादा नोटों की छपाई से था. हालांकि बाद में देखा गया था कि जिन देशों ने इस प्रणाली का सहारा लिया था वहां पर महंगाई तो बढ़ी ही साथ में करेंसी का अवमूल्यन भी हो गया था.
Don't Miss
वीडियो
IPL 2024
-
DC vs RR : दिल्ली ने डोनोवन फरेरा-गुलबदीन को दिया डेब्यू का मौका, राजस्थान की प्लेइंग11 में 2 बदलाव
-
DC vs RR Dream11 Prediction : दिल्ली और राजस्थान के मैच में ये हो सकती है ड्रीम11 टीम, इन्हें चुनें कप्तान
-
MI vs SRH : पापा को सपोर्ट करने स्टेडियम पहुंचे जूनियर बुमराह, बेटे अंगद की पहली फोटो हुई वायरल
मनोरंजन
धर्म-कर्म
-
Mishri Ke Upay: चमत्कारी है धागे वाली मिश्री का ये उपाय, बरसने लगेगी देवी लक्ष्मी की कृपा
-
Remove Negative Energy: नकारात्मक ऊर्जा से हैं परेशान, पानी में ये डालकर करें स्नान
-
Shani Jayanti 2024: शनि जयंती के दिन इस तरह करें शनिदेव की पूजा, आर्थिक संकट होगा दूर
-
Mulank 7 Numerology 2024: मई में इस मूलांक के लोगों को मिलने वाले हैं कई नए अवसर, हो जाएं तैयार