चीनी उद्योग: नकदी संकट गहराने की आशंका, चीनी मिलों पर 23,000 करोड़ बकाया
Sugar Industry: देश में सहकारी चीनी मिलों का संगठन नेशनल फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव शुगर फैक्ट्रीज (एनएफसीएसएफ) के प्रबंध निदेशक प्रकाश नाइकनवरे ने कहा कि चीनी उद्योग के पास नकदी की कमी के कारण गन्ने का बकाया और बढ़ सकता है.
highlights
- देश में इस साल फिर 300 लाख टन से ज्यादा चीनी का उत्पादन होने का अनुमान
- चालू शुगर सीजन 2020-21 (अक्टूबर-सितंबर) में अब तक 45 लाख टन निर्यात के सौदे
नई दिल्ली:
देश में कोरोना वायरस संक्रमण (Coronavirus Epidemic) का खतरा बढ़ने से चीनी उद्योग की चिंता बढ़ गई, क्योंकि गर्मियों में चीनी की जो मांग आमतौर पर बढ़ जाती है उस पर लॉकडाउन जैसे प्रतिबंधात्मक कदम से प्रभाव पड़ने की आशंका है. घरेलू मांग पर असर पड़ने की सूरत में पहले से ही नकदी के अभाव से जूझ रहे चीनी उद्योग (Sugar Industry) का संकट और गहरा सकता है. उधर, गन्ना किसानों का चीनी मिलों पर बकाया करीब 23,000 करोड़ रुपये हो गया है. देश में सहकारी चीनी मिलों का संगठन नेशनल फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव शुगर फैक्ट्रीज (एनएफसीएसएफ) के प्रबंध निदेशक प्रकाश नाइकनवरे ने कहा कि चीनी उद्योग के पास नकदी की कमी के कारण गन्ने का बकाया और बढ़ सकता है, अगर बकाया 25,000 करोड़ पहुंच गया तो यह उद्योग के लिए काफी खराब स्थिति होगी.
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अप्रैल, मई और जून के दौरान चीनी की घरेलू खपत करीब 10 लाख टन घटी
प्रकाश नाइकनवरे ने बताया कि पिछले साल लॉकडाउन के दौरान होरेका (होटल, रेस्तरा, कैंटीन) सेगमेंट की मांग नहीं होने के चलते अप्रैल, मई और जून के दौरान चीनी की घरेलू खपत करीब 10 लाख टन घट गई थी. उन्होंने कहा कि कोरोना का कहर जिस प्रकार से दोबारा गहराता जा रहा है उससे स्थिति कमोबेश वैसी पैदा होने के आसार दिख रहे हैं। उन्होंने कहा कि अगर गर्मियों की चीनी मांग प्रभावित हुई तो उद्योग का संकट और बढ़ सकता है. गर्मी के सीजन में आईस्क्रीम, कोल्ड ड्रिंक व अन्य शीतल पेय पदार्थ व शर्बत उद्योग में चीनी की मांग बढ़ जाती है, लेकिन शादी व सार्वजनिक समारोहों और होरेका सेगमेंट पर प्रतिबंध से चीनी की मांग प्रभावित हो सकती है.
एनएफसीएसएफ प्रबंध निदेशक ने कहा कि देश में इस साल फिर 300 लाख टन से ज्यादा चीनी का उत्पादन होने का अनुमान है, जबकि खपत इतनी नहीं है. इसके बाद प्रति किलो चीनी की बिक्री पर मिलों को 3.50 रुपये का घाटा हो रहा है क्योंकि चीनी का न्यूनतम बिक्री मूल्य (एमएसपी) 31 रुपये प्रति किलो है जबकि मिलों की औसतन लागत 34.50 रुपये प्रति किलो. लिहाजा, चीनी नहीं बिकने से गन्ना किसानों का भुगतान करने में कठिनाई आ रही है. उन्होंने कहा कि यही वहज है कि उद्योग लगातार सरकार से चीनी की एमएसपी बढ़ाने की मांग कर रहा है. उन्होंने कहा कि आज मिलों के पास नकदी का जो संकट है उसका मुख्य कारण चीनी बेचने में होने वाला घाटा है. जब तक चीनी की एमएसपी में बढ़ोतरी नहीं होगी, तब तक उद्योग की आर्थिक सेहत में सुधार नहीं होगा और गन्ना किसानों के बकाये का भुगतान करने में मिलों को दिक्कतें आती रहेंगी.
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हालांकि अच्छी खबर यह है कि निर्यात के मोर्चे पर भारत अच्छा कर रहा है. नाइकनवरे ने बताया कि चालू शुगर सीजन 2020-21 (अक्टूबर-सितंबर) में अब तक 45 लाख टन निर्यात के सौदे हो गए हैं, जिसमें से 28 लाख टन चीनी मिलों के गोदामों से उठ भी चुकी है. उन्होंने कहा कि चालू सीजन में तय कोटा 60 लाख टन चीनी का निर्यात पूरा कर लिया जाएगा. दुनिया के बाजारों में इस समय भारतीय चीनी की मांग बनी हुई क्योंकि ब्राजील में अप्रैल में सीजन की शुरुआत ही होती है और अभी नए सीजन की उसकी चीनी बाजार में नहीं उतरी है. ब्राजील के बाद भारत दुनिया में चीनी का सबसे बड़ा उत्पादक है.
इस्मा के आकलन के अनुसार भारत में चालू सीजन के दौरान चीनी का उत्पादन 302 लाख टन हो सकता है जबकि पिछले सीजन में देश में चीनी का उत्पादन 274 लाख टन था, पिछले साल का बकाया स्टॉक 107 लाख टन को मिलाकर देश में इस साल चीनी की कुल सप्लाई चालू सीजन में 409 लाख टन रहने का अनुमान है, जबकि घरेलू खपत तकरीबन 260-265 लाख टन रहने का अनुमान है. निर्यात 60 लाख टन होने के बाद अगले सीजन के लिए बकाया स्टॉक 90 लाख टन से कम रहेगा.
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