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Soil Health Card Scheme: किसानों की आय बढ़ाने में सहयोग बनी यह सरकारी स्कीम, जानें कितने रुपये का हुआ फायदा

Soil Health Card Scheme: मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना के पांच वर्ष के पूरा होने पर जारी किये गये इस अध्ययन के लिए 19 राज्यों के 76 जिलों को चुना गया है.

Updated on: 18 Feb 2020, 09:10 AM

दिल्ली:

Soil Health Card Scheme: मृदा स्वास्थ्य कार्ड के उपयोग से किसानों कम लागत के साथ उपज बढ़ाने में मदद मिली है और उन्हें कुछ फसलों की खेती में प्रति एकड़ 30,000 रुपये तक का फायदा हुआ है. सरकार के एक ताजा अध्ययन में यह बात सामने आयी है. मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना के पांच वर्ष के पूरा होने पर जारी किये गये इस अध्ययन के लिए 19 राज्यों के 76 जिलों को चुना गया है. यह अध्ययन राष्ट्रीय उत्पादकता परिषद (एनपीसी-National Productivity Council) के माध्यम से कराया गया. इसके तहत 170 मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं की सेवाएं ली गयी और 1,700 किसानों से जानकारी ली गयी.

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मृदा स्वास्थ्य कार्ड की सूचनाओं से उर्वरकों की बचत और उपज में बढ़ोतरी
मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना में किसानों को उसके खेतों में पोषक तत्वों की उपस्थिति की जानकारी उपलब्ध कराने के साथ साथ मिट्टी के स्वास्थ्य और उर्वरता में सुधार करने वाले पोषक तत्वों की उचित खुराक की सिफारिश भी की जाती है. अध्ययन में कहा गया है, ‘‘मृदा स्वास्थ्य कार्डों से पहले किसान आवश्यक उर्वरक तथा पोषक तत्वों का उचित मात्रा के इस्तेमाल नहीं कर पाता था. इसके कारण फसलों की उत्पादकता प्रभावित हुई थी.

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अध्ययन के अनुसार मृदा स्वास्थ्य कार्ड की सूचनाओं से उर्वरकों की बचत और उपज में वृद्धि हुई है. इससे किसानों की आय बढी है। अध्ययन रपट के अनुसार इस योजना की मदद से अरहर की खेती में 25,000-30,000 रुपये प्रति एकड़ की बढ़ोतरी हुई है. इसी तरह जबकि सूरजमुखी की खेती में आय में लगभग 25,000 रुपये प्रति एकड़, कपास में 12,000 रुपये प्रति एकड़, मूंगफली में 10,000 रुपये, धान में 4,500 रुपये और आलू में आय में वृद्धि 3,000 रुपये प्रति एकड़ तक हुई है.

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उर्वरकों के उपयोग से खेती की लागत में कमी आई
मृदा स्वास्थ्य कार्ड के अनुसार उर्वरकों के उपयोग से यूरिया जैसे नाइट्रोजन उर्वरकों की बचत हुई, जिससे खेती की लागत में कमी आई. रपट के अनुसार धान की खेती की लागत में 16-25 प्रतिशत की कमी आई और नाइट्रोजन उर्वरक की बचत लगभग 20 किलोग्राम प्रति एकड़ रही. इसी तरह दलहनों की खेती की लागत में 10-15 प्रतिशत की कमी हुई और प्रति एकड़े 10 किग्रा प्रति एकड़ यूरिया की बचत हुई. इसी तरह तिलहन में लागत में 10-15 फीसदी की कमी आई और नाइट्रोजन की खपत के मामले में सूरजमुखी में नौ किग्रा प्रति एकड़, मूंगफली में 23 किग्रा प्रति एकड़ और अरंडी में लगभग 30 किग्रा प्रति एकड़ की बचत हुई। अध्ययन में कहा गया है कि नकदी फसलों में कपास की लागत में 25 प्रतिशत की कमी आई और नाइट्रोजन उर्वरक पर बचत लगभग 35 किलोग्राम प्रति एकड़ की हुई, जबकि आलू में नाइट्रोजन उर्वरक की बचत 46 किलोग्राम प्रति एकड़ की हुई.

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फसलों के उत्पादन में भी बढ़ोतरी
उर्वरकों के विवेकपूर्ण उपयोग के कारण फसलों के उत्पादन में भी वृद्धि हुई है, अध्ययन से पता चला है कि धान के उत्पादन में 10-20 प्रतिशत और गेहूं और ज्वार में 10-15 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. दलहन के उत्पादन में 10-30 प्रतिशत की वृद्धि हुई, तिलहनों में 40 प्रतिशत की वृद्धि और कपास के उत्पादन में 10-20 प्रतिशत की वृद्धि हुई. योजना के तहत, हर दो साल में मृदा स्वास्थ्य कार्ड किसानों को जारी किया जाता है ताकि निषेचन प्रथाओं में पोषण संबंधी खामियों को दूर किया जा सके. योजना के शुभारंभ के बाद से, ये कार्ड दो बार जारी किये गये हैं. वर्ष 2015 से 2017 तक पहले चक्र में, किसानों को 10.74 करोड़ मृदा स्वास्थ्य कार्ड वितरित किए गए। दूसरे चक्र (2017-19) में, देश भर के किसानों को 11.69 करोड़ मृदा स्वास्थ्य कार्ड वितरित किए गए हैं. सरकार ने यह भी उल्लेख किया कि देश में मिट्टी का विश्लेषण करने की क्षमता पांच साल की छोटी अवधि में 1.78 करोड़ नमूनों की जांच क्षमता से बढ़कर 3.33 करोड़ प्रतिवर्ष हो गई है.