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MSP से नीचे फसल की बिक्री नहीं हो इसकी गारंटी चाहते हैं किसान

कृषक उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक 2020 और कृषक (सशक्तीकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020 रविवार को राज्यसभा में पारित होने के बाद दोनों विधेयकों को संसद की मंजूरी मिल गई है.

Updated on: 21 Sep 2020, 08:21 AM

नई दिल्ली:

फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के मसले पर किसान सरकार से महज वादे नहीं, बल्कि एमएसपी से नीचे किसी फसल की बिक्री न हो, इस बात की गारंटी चाहते हैं. सरकार कृषि के क्षेत्र में सुधार के नए कार्यक्रमों को लागू करने के लिए जिसे ऐतिहासिक विधेयक बता रही है, दरअसल किसान उस विधेयक को एमएसपी की गारंटी के बगैर बेकार बता रहे हैं. कृषक उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक 2020 और कृषक (सशक्तीकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020 रविवार को राज्यसभा में पारित होने के बाद दोनों विधेयकों को संसद की मंजूरी मिल गई है.

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कृषि विधेयकों में एमएसपी को लेकर कोई जिक्र नहीं: अजमेर सिंह लखोवाल
पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जहां एमएसपी पर गेहूं और धान की सरकारी खरीद व्यापक पैमाने पर होती है वहां के किसान इन विधेयकों का सबसे ज्यादा विरोध कर रहे हैं. पंजाब में भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के प्रदेश अध्यक्ष और ऑल इंडिया कोर्डिनेशन कमेटी के सीनियर कोर्डिनेटर अजमेर सिंह लखोवाल ने कहा कि ये विधेयक किसानों के हित में नहीं हैं क्योंकि इनमें एमएसपी को लेकर कोई जिक्र नहीं है. उन्होंने कहा कि किसान चाहते हैं कि उनकी कोई भी फसल एमएसपी से कम भाव पर न बिके. भाकियू नेता ने कहा कि खरीद की व्यवस्था किए बगैर एमएसपी की घोषणा से किसानों का भला नहीं होगा.

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देश के सिर्फ छह फीसदी किसानों को मिलता है एमएसपी का लाभ
बिहार में एमएसपी पर सिर्फ धान और गेहूं की खरीद होती है. बिहार के मधेपुरा जिला के किसान पलट प्रसाद यादव ने कहा कि कृषि लागत एवं मूल्य आयोग की सिफारिश पर सरकार हर साल 22 फसलों का एमएसपी और गन्ने का लाभकारी मूल्य यानी एफआरपी तय करती है, लेकिन पूरे देश में कुछ ही किसानों को कुछ ही फसलों का एमएसपी मिलता है. उन्होंने कहा कि सरकार को किसानों के हित में यह जरूर सुनिश्चित करना चाहिए कि उनको तमाम अनुसूचित फसलों का एमएसपी मिले. उन्होंने कहा कि शांता कुमार समिति की रिपोर्ट ने भी बताया है कि देश के सिर्फ छह फीसदी किसानों को एमएसपी का लाभ मिलता है, लिहाजा देश के सभी किसानों की फसलें कम से कम एमएसपी पर बिक पाए, इस व्यवस्था की दरकार है.

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किसानों की इस शिकायत का जिक्र राज्यसभा में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के सांसद सतीश चंद्र मिश्रा ने भी किया. उन्होंने कहा कि आज किसान जो आंदोलन कर रहे हैं उनकी सिर्फ एक आशंका है कि इस विधेयक के बाद उनको एमएसपी मिलना बंद हो जाएगा. बसपा सांसद ने कहा, अगर विधेयक में किसानों को इस बात का आश्वासन दिया गया होता कि उनको न्यूनतम समर्थन मूल्य अवश्य मिलेगा तो शायद यह आज चर्चा का विषय नहीं होता. कृषि विधेयकों पर किसानों के साथ-साथ मंडी के कारोबारी भी खड़े हैं क्योंकि कृषक उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक 2020 और कृषक (सशक्तीकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन में एपीएमसी से बाहर होने वाली फसलों की बिक्री पर कोई शुल्क नहीं है, जिस कारण से उन्हें एपीएमसी मंडियों की पूरी व्यवस्था समाप्त होने का डर सता रहा है.

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हालांकि केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने किसानों और व्यापारियों को आश्वस्त किया है कि इन विधेयकों से न तो एमएसपी पर किसानों से फसल की खरीद पर कोई फर्क पड़ेगा और न ही एपीएमसी कानून के तहत संचालित मंडी के संचालन पर, जबकि राजस्थान खाद्य पदार्थ व्यापार संघ के चेयरमैन बाबूलाल गुप्ता कहते हैं कि जब मंडी के बाहर कोई शुल्क नहीं लगेगा तो मंडी में कोई क्यों आना चाहेगा। ऐसे में मंडी का कारोबार प्रभावित होगा. हरियाणा में कृषि विधेयकों को लेकर किसानों ने प्रदेशभर में सड़कों पर जाम लगाकर विरोध प्रदर्शन किया. भाकियू के हरियाणा प्रदेश अध्यक्ष गुराम सिंह ने बताया कि पूरे प्रदेश में रविवार को किसानों ने विधेयक का विरोध किया है और विधेयक के पास होने के बाद अब विरोध-प्रदर्शन और तेज होगा.