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लक्ष्मी विलास बैंक का नाम 27 नवंबर से बदल जाएगा, ग्राहक 25,000 रुपये से ज्यादा निकाल सकेंगे पैसे

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में लक्ष्मी विलास बैंक (Lakshmi Vilas Bank) के डीबीआईएल में विलय की योजना को मंजूरी दी गई. कुछ घंटों बाद रिजर्व बैंक ने विलय की प्रभावी तिथि को अधिसूचित कर दिया.

Updated on: 26 Nov 2020, 09:35 AM

नई दिल्ली:

केंद्र की नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) सरकार ने संकट में फंसे लक्ष्मी विलास बैंक (Lakshmi Vilas Bank-LVB) बैंक के सिंगापुर के डीबीएस बैंक (DBS Bank) की भारतीय इकाई डीबीएस बैंक इंडिया लि. (डीबीआईएल) में विलय को मंजूरी दे दी है. यह विलय 27 नवंबर 2020 यानी शुक्रवार से प्रभावी हो जाएगा और उसी दिन से एलवीबी की शाखाएं डीबीएस बैंक इंडिया की शाखाओं के रूप में काम करने लगेंगी. इसके साथ ही शुक्रवार से बैंक से 25,000 रुपये की निकासी की सीमा भी समाप्त हो जाएगी.

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कैबिनेट की बैठक में विलय को मिली मंज़ूरी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में एलवीबी के डीबीआईएल में विलय की योजना को मंजूरी दी गई. इसके कुछ घंटों बाद रिजर्व बैंक ने विलय की प्रभावी तिथि को अधिसूचित कर दिया. रिजर्व बैंक ने बयान में कहा कि यह विलय 27 नवंबर, 2020 से प्रभावी होगा. इसी दिन से लक्ष्मी विलास बैंक की सभी शाखाएं डीबीएस बैंक इंडिया लि. की शाखाओं के रूप में काम करेंगी. केंद्रीय बैंक ने कहा कि एलवीबी के जमाकर्ता शुक्रवार से अपने खातों का परिचालन डीबीएस बैंक इंडिया के ग्राहक के रूप में कर सकेंगे. इसके बाद उसी दिन से लक्ष्मी विलास बैंक पर रोक हट जाएगी. निजी क्षेत्र के बैंक पर रोक के बाद रिजर्व बैंक ने 17 नवंबर को एलवीबी के बोर्ड को भंग कर दिया था. 

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सरकार ने गजट अधिसूचना जारी करके विलय योजना को अधिसूचित किया
रिजर्व बैंक ने कहा कि डीबीएस बैंक इंडिया लि. सभी आवश्यक तैयारियां कर रहा है जिससे लक्ष्मी विलास बैंक के ग्राहकों को सामान्य तरीक से सेवाएं सुनिश्चित की जा सकें. इस बीच, सरकार ने गजट अधिसूचना जारी कर लक्ष्मी विलास बैंक लि. (डीबीएस बैंक इंडिया लि. के साथ विलय) योजना, 2020 को अधिसूचित कर दिया है. वित्तीय सेवा विभाग की ओर से जारी अधिसूचना में कहा गया है कि एलवीबी के सभी कर्मचारी सेवा में बने रहेंगे. उनकी नियुक्ति की शर्तें और वेतन आदि 17 नवंबर, 2020 को कारोबार बंद होने से पहले के अनुरूप रहेगा. इससे पहले दिन में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एलवीबी के डीबीआईएल के साथ विलय को मंजूरी दे दी. इससे बैंक के करीब 20 लाख ग्राहकों को राहत मिली है. डीबीआईएल रिजर्व बैंक से लाइसेंस प्राप्त बैंकिंग कंपनी है और वह भारत में पूर्ण स्वामित्व वाली अनुषंगी मॉडल के रूप में परिचालन करती है। जून, 2020 तक उसकी कुल नियामकीय पूंजी 7,109 करोड़ रुपये थी. उसकी मूल कंपनी डीबीएस का मुख्यालय सिंगापुर में और यह वहीं सूचीबद्ध है. यह एशिया के बड़े वित्तीय सेवा समूह में से है. डीबीएस की उपस्थिति 18 बाजारों में है.

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प्रत्येक जमाकर्ता के लिए 25,000 रुपये निकासी की सीमा की गई थी तय 
इससे पहले सरकार ने 17 नवंबर को रिजर्व बैंक को संकट में फंसे लक्ष्मी विलास बैंक पर 30 दिन की ‘रोक’ की सलाह दी थी. साथ ही प्रत्येक जमाकर्ता के लिये 25,000 रुपये निकासी की सीमा तय की गई थी. इसके साथ रिजर्व बैंक ने कंपनी कानून, 2013 के तहत एलवीबी के डीबीआईएल में विलय की योजना का मसौदा भी सार्वजनिक किया था. केंद्रीय बैंक ने एलवीबी के बोर्ड को भंग कर दिया था और केनरा बैंक के पूर्व गैर-कार्यकारी चेयरमैन टी एन मनोहरन को 30 दिन के लिए बैंक का प्रशासक नियुक्त किया था. सरकार की ओर से बुधवार को जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि विलय के बाद भी डीबीआईएल का संयुक्त बही-खाता मजबूत बनेगा. इसकी शाखाओं की संख्या बढ़कर 600 हो जाएगी. लक्ष्मी विलास बैंक की शुरुआत तमिलनाडु के करुड़ के सात कारोबारियों ने वी एस एन रामलिंग चेट्टियार की अगुवाई में 1926 में की थी. बैंक की 19 राज्यों और एक संघ शासित प्रदेश में 566 शाखाएं और 918 एटीएम हैं. 

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बयान में कहा गया है कि एलवीबी का तेजी से विलय और समाधान सरकार की बैंकिंग प्रणाली को साफ-सुथरा बनाने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है. इसके साथ ही सरकार ने जमाकर्ताओं के हितों को भी संरक्षित किया है। इस साल संकट में फंसने वाला यह यस बैंक के बाद दूसरा निजी क्षेत्र का बैंक है. मार्च में नकदी संकट के जूझ रहे यस बैंक पर रोक लगाई गई थी. सरकार ने भारतीय स्टेट बैंक को यस बैंक में 7,250 करोड़ रुपये की पूंजी डालकर 45 प्रतिशत हिस्सेदारी लेने को कहा था और बैंक को ‘बचाया’ था. एलवीबी का संकट उस समय शुरू हुआ जबकि उसने लघु एवं मझोले उपक्रमों (एसएमई) को छोड़कर बड़ी कंपनियों को कर्ज देना शुरू किया. सितंबर, 2019 में बैंक को रिजर्व बैंक की त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई (पीसीए) के तहत डाला गया था. बैंक ने मई, 2019 में खुद का विलय इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस और इंडियाबुल्स कमर्शियल क्रेडिट में करने के लिए रिजर्व बैंक से मंजूरी मांगी थी, ताकि वह अपनी पूंजी की जरूरतों को पूरा कर सके. हालांकि, इस विलय प्रस्ताव को रिजर्व बैंक की नियामकीय मंजूरी नहीं मिली थी.