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पद्मावती विवाद: बॉलीवुड में ऐतिहासिक फिल्मों पर कंट्रोवर्सी का लंबा इतिहास रहा है

बॉलीवुड में इतिहास से जुड़े किरदारों या किसी घटना पर आधारित फिल्‍में समय-समय पर बनती रही हैं। लेकिन इन फिल्‍मों के साथ विवाद और विरोध का सिलसिला भी उतना ही लंबा रहा है।

Updated on: 28 Nov 2017, 01:27 PM

नई दिल्ली:

भारतीय फिल्म जगत केवल मनोरंजन का कारखाना नहीं रही बल्कि वक्त-वक्त पर यह लोगों को सही और गलत में फर्क भी बताती रही है। फिल्म मनोरंजन के साथ दर्शकों को उनकी संस्कृति और इतिहास से भी परिचित करवाती हैं।

सौ साल से अधिक के सिनेमाई जगत को खंगाला जाए तो कई ऐतिहासिक घटनाएं फिल्मी रूप-रंग के साथ पर्दे पर उतरी हैं। इन दिनों तो ऐसी फिल्में लोकप्रियता के साथ-साथ कमाई के मामले में भी आगे हैं।

बॉलीवुड में इतिहास से जुड़े किरदारों या किसी घटना पर आधारित फिल्‍में समय-समय पर बनती रही हैं, लेकिन इन फिल्‍मों के साथ विवाद और विरोध का सिलसिला भी उतना ही पुराना  रहा है।

इतिहास व्यक्ति, समाज, देश की महत्त्वपूर्ण एवं सार्वजनिक क्षेत्र की घटनाओं का कालक्रम से लिखा हुआ विवरण होता है। ऐसे में हर ऐतिहासिक घटना किसी समुदाय विशेष से जुड़ी होती है और इसी कारण जब कोई फिल्म उस ऐतिहासिक घटना पर बनती है तो उसको लेकर विवाद खड़ा होने का चांस ज्यादा होता है।

1913 से 1931 तक कई ऐतिहासिक फिल्में बनी पर कोई विवाद नहीं हुआ

1913 से 1931 तक मूक फिल्मों का दौर था। इस कालक्रम में कई पौराणिक आख्यानों पर और प्रचलित ऐतिहासिक पात्रों पर फिल्मे बनी। ऐसी फिल्मों से दर्शकों को आपसे में जोड़ने में आसानी रहती थी। इस दौर में क्षत्रिय योद्धाओं पर बनी फिल्मों को विशेष महत्व दिया गया। इस दौर की सबसे चर्चित और सफल फिल्म थी- ‘डेथ आफ नारायण राव पेशवा’ जिसे 1915 में एसएन पाटनकर ने बनाया था।

इस फिल्म को लोगों ने खूब पसंद किया। इसकी एक खास वजह थी देश गुलाम था और लोग ब्रिटिश शासन की निरंकुशता से परेशान थे। निर्माता जानबूझ कर ऐसी ऐतिहासिक कथा चुनते थे जिसमें देशभक्ति का स्वर हो और शौर्य का भाव हो।

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इसके बाद इस दौर की सबसे सफल ऐतिहासिक फिल्म थी 'नेताजी पालकर' जो 1927 में शांताराम के निर्देशन में बनी थी। इसके बाद कई और ऐतिहासिक फिल्मे महाराणा प्रताप, पृथ्वीराज चौहान और राणा हमीर पर बनी और इन फिल्मों ने लोगों में देशभक्ति का संचार किया।

1926 में हिमांशु राय ने जर्मन निर्देशक फ्रेंज आस्टिन के सहयोग से भगवान बुद्ध की जीवनी पर ‘द लाइट ऑफ एशिया’ बनाई जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराही गई। इस दौर में ऐतिहासिक फिल्में लोगों को जोड़ने का काम करती थी लेकिन वक्त बदला, लोगों की सोच बदली और बदल गया ऐतिहासिक सिनेमा को लेकर लोगों का मिजाज।

इतिहास में किंवदती का रूप लिए जो कथाएं चर्चित हुई उनमें सलीम-अनार कली के प्रेम पर बनी ‘अनारकली’ जो 1935 में बनी थी और ‘मुगल शहंशाह का इश्क’ जो 1954 में बनी थी वह लोगों को पसंद आई लेकिन जब के आसिफ ने 1960 में ‘मुंगल-ए-आजम’ बनाई तो विवाद खड़ा हो गया।

मुगल-ए-आजम की कहानी में भी इतिहास के नजरिए से कई खामियां हैं। कहा गया कि इस फिल्म में कई ऐसे पात्र हैं जिनके अस्तित्व को लेकर ही इतिहासकारों में मतभेद हैं।सलीम और अनारकली की प्रेम कहानी के ऐतिहासिक साक्ष्य खोजने मुश्किल हैं।

इसके बाद पृथ्वीराज कपूर की फिल्म ‘अलेक्जेंडर द ग्रेट’ के लेकर भी लोगों का कहना था की इस फिल्म में इतिहास बहुत ही कम था और कल्पना की भरमार थी। लेकिन इन दोनों फिल्मों पर वैचारिक विरोध होने के बावजूद सिकंदर और मुगल-ए- आजम को लेकर इतना विवाद नहीं हुआ। इसकी एक वजह यह भी हो सकता है कि उस वक्त ये फिल्मों का विवाद राजनीति में इतनी महत्वपूर्ण नहीं थी।

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हाल में ही रीलिज कई फिल्मों पर हुआ विवाद

कुछ साल पहले ही आशुतोष गोवारिकर की फिल्म जोधा-अकबर को लेकर भारी विवाद हुआ था। यह फिल्म दो ऐतिहासिक पात्रों की कहानी पर आधारित है। लेकिन यह पूरी तरह से इतिहास है, इसका दावा निर्माता-निर्देशक दोनों में से कोई नहीं कर रहा था।

अकबर की शादी आमेर (जो बाद में जयपुर हो गया) के राजा की बेटी हरकन बाई से हुई थी। इसलिए यह मानना मुश्किल है कि हरकन बाई ही जोधा बाई थी। इसकी वजह यह है कि जोधाबाई का नाम जोधा से बना है, जो कहा जाता है कि से जोधापुर के राजा से घर पैदा हुई होने की वजह से थी। जोधापुर और जयपुर के इस तर्क के आधार पर लगता है कि अकबर की शादी, जिस राजपूत राजकुमारी से हुई थी उसका नाम जोधा बाई नहीं था।

इसके बाद फिल्म ‘मंगल पांडे’ पर भी विवाद हुआ। यह फिल्म 1857 की क्रांति के नायक मंगल पांडे के जीवन पर आधारित थी। इस फिल्म को बनाते हुए निर्देशक ने अपनी कल्पना का सहारा भी लिया। पर बिना ऐतिहासिक तथ्यों की गहराई में गए यह कहा जा सकता है कि निर्देशक ने एक बहुत अच्छी फिल्म बनाई, जिसने करीब-करीब गुमनाम होते जा रहे एक क्रांति नायक को युवा पीढ़ी के सामने पेश किया। पर इस पर भी मंगल पांडे के कथित वंशज विवाद करने के लिए सड़क पर आ गए।

संजय लीला भंसाली की फिल्म और विवाद

पद्मावती कोई संजय लीला भंसाली की पहली फिल्म नहीं जिसको लेकर विवाद हुआ हो। इससे पहले साल 2015 में आई  भंसाली की फिल्‍म 'बाजीराव मस्‍तानी' पर भी इतिहास से छेड़छाड़ और भावनाओं को आहत करने का आरोप लग चुके हैं।

'बाजीराव मस्‍तानी' के रिलीज के समय इस फिल्‍म का पुणे में जमकर विरोध हुआ था। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस को लिखे एक पत्र में पेशवा के वंशज प्रसादराव पेशवा ने सरकार से इस मामले में दखल देने की मांग की थी उन्होंने आरोप लगाया, 'यह पाया गया है कि रचनात्मक स्वतंत्रता के नाम पर इस फिल्म में मूल इतिहास को उलटा गया है। साथ ही, एक गीत को श्रीमंत बाजीराव पेशवा प्रथम की दो पत्नियों काशीबाई और मस्तानी पर फिल्माया गया है। यह घटना ऐतिहासिक तथ्यों से मेल नहीं खाती।'

उन्होंने यह भी कहा कि 'पिंगा' नृत्य शैली मराठी संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा है और इसे फिल्म में एक आइटम सॉन्ग में बदल दिया गया और इस गाने की पोशाक और डांस डायरेक्शन उसी अनुरूप है। वहीं इससे पहले भंसाली की फिल्‍म 'रामलीला' के नाम को लेकर भी काफी विवाद शुरू हुआ था।

पद्मावति पर क्या है विवाद

संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावती रीलिज से पहले विवादों में है। फिल्म के कुछ हिस्सों को रानी पद्मिनी (पद्मावती) का अपमान माना जा रहा है। मेवाड़ सहित देशभर से यह आवाज उठ रही है कि फिल्म में कुछ ऐसी बातें शामिल की गई हैं, जो बेबुनियाद हैं।

करणी सेना समेत कई अन्य राजपूत संगठन फिल्म का विरोध कर रहे हैं। जहां किसी विवाद और विरोध हो वहां राजनीति होनी पूरानी बात है, हुआ भी ऐसा ही। अलग-अलग राज्य और पार्टी के राजनेता भी फिल्म का विरोध करने लगे हैं।

देश भर में विरोध के बाद पद्मावति का रीलिज टाल दिया गया। अब भी रोज कोई न कोई विवाद फिल्म से जुड़ ही रहा है।

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हॉलिवुड में विरोध का तरीका है अलग

हॉलीवुड में कुछ साल पहले मेल गिब्सन ने ईसा मसीह पर फिल्म बनाई थी। उसे लेकर काफी विवाद हुए, लेकिन किसी ने फिल्म पर पाबंदी लगाने, उसका प्रदर्शन रोकने या थियेटर पर हमला करने का प्रयास नहीं किया। ईश्वर विषयक या इतिहास आधारित ढेरों फिल्में हॉलीवुड पर बनती हैं, जिन्हें लेकर विवाद भी होते हैं, लेकिन उन विवादों का जवाब तर्कों और तथ्यों से दिया जाता है, हिंसा के जरिए नहीं।

बॉलीवुड फिल्मों के साथ भी शायद आज इसी प्रकार संवाद की स्वस्थ परंपरा बनाने की जरूरत है।

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