बिहार विधानसभा चुनाव : समझें आलमनगर विधानसभा सीट का समीकरण, 2025 में क्या होगा जनता का रुख

बिहार विधानसभा चुनाव : समझें आलमनगर विधानसभा सीट का समीकरण, 2025 में क्या होगा जनता का रुख

बिहार विधानसभा चुनाव : समझें आलमनगर विधानसभा सीट का समीकरण, 2025 में क्या होगा जनता का रुख

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IANS
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बिहार विधानसभा चुनाव : समझें आलमनगर विधानसभा सीट का समीकरण, 2025 में क्या होगा जनता का रुख

(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)

पटना, 7 अगस्त (आईएएनएस)। बिहार के मधेपुरा जिले में स्थित आलमनगर विधानसभा सीट एक सामान्य श्रेणी की सीट है। यह सीट मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है। यह विधानसभा क्षेत्र न केवल राजनीतिक रूप से बल्कि सामाजिक और भौगोलिक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। सहरसा, खगड़िया, भागलपुर, नवगछिया, कटिहार और पूर्णिया जैसे जिलों से सटे होने के कारण यह इलाका राजनीतिक रूप से विविधता से भरा है।

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1951 में स्थापित यह विधानसभा क्षेत्र अब तक 17 बार विधानसभा चुनाव देख चुका है। आलमनगर की राजनीति की खासियत यह रही है कि यहां मतदाताओं ने कुछ चुनिंदा नेताओं पर लंबा भरोसा जताया है। 1952 में हुए पहले चुनाव में सोशलिस्ट पार्टी के तनुक लाल यादव विजयी हुए थे। इसके बाद 1957 से 1972 तक कांग्रेस के यदुनंदन झा और विद्याकर कवि ने पांच बार जीत दर्ज की। 1977 से लेकर 1990 तक बीरेन्द्र कुमार सिंह ने जनता पार्टी, लोकदल और जनता दल के टिकट पर लगातार चार बार इस सीट पर कब्जा जमाया। इसके बाद 1995 से नरेंद्र नारायण यादव इस क्षेत्र के निर्विवाद नेता बनकर उभरे। वे जनता दल और फिर जनता दल (यूनाइटेड) के टिकट पर लगातार सात बार विधायक चुने गए। यह रिकॉर्ड उन्हें इस क्षेत्र की राजनीति का सबसे मजबूत चेहरा बनाता है।

भौगोलिक रूप से आलमनगर मधेपुरा जिला मुख्यालय से लगभग 38 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है और मुरलीगंज, नवगछिया तथा सहरसा जैसे शहरों से भी जुड़ा हुआ है। हालांकि, यह कई कस्बों से घिरा है, फिर भी यह मुख्यतः एक ग्रामीण क्षेत्र है, जो आज भी सार्वजनिक परिवहन, स्वास्थ्य सेवाओं और उच्च शिक्षा संस्थानों की कमी से जूझ रहा है। यहां के लोग बाढ़, जलजमाव और खराब सड़क संपर्क जैसी समस्याओं से दशकों से परेशान हैं। कोसी नदी की मौसमी बाढ़ इस इलाके को बार-बार तबाह करती है और अब तक इसका स्थायी समाधान नहीं निकल पाया है।

आर्थिक रूप से यह इलाका कृषि पर निर्भर है। धान, मक्का और गेहूं यहां की प्रमुख फसलें हैं, जबकि औद्योगिक गतिविधियां न के बराबर हैं। यहां एक डिग्री कॉलेज की अनुपस्थिति भी शिक्षा के क्षेत्र में एक बड़ी बाधा है। यही वजह है कि हर चुनाव में शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क और बाढ़ नियंत्रण जैसे मुद्दे प्रमुखता से उठते हैं।

जातीय समीकरण की बात करें तो आलमनगर में यादव और मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। इसके अलावा राजपूत, ब्राह्मण, कोइरी, कुर्मी, रविदास और पासवान भी ज्यादा संख्या में हैं और नतीजों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। चुनाव आयोग के अनुसार, 2024 में आलमनगर विधानसभा की कुल अनुमानित जनसंख्या 6,03,944 है, जिसमें पुरुषों की संख्या 3,12,261 और महिलाओं की संख्या 2,91,683 है। वहीं, मतदाताओं की कुल संख्या 3,72,591 है, जिसमें 1,95,198 पुरुष, 1,77,386 महिलाएं और 7 थर्ड जेंडर हैं।

2025 के आगामी विधानसभा चुनाव में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या जनता एक बार फिर जेडीयू पर भरोसा जताती है या इस क्षेत्र की राजनीति में कोई बदलाव लाती है। विपक्षी दलों के लिए यह सीट इसलिए भी अहम है क्योंकि यहां जनता विकास से जुड़े मुद्दों को लेकर सजग है। अगर विपक्षी दल एक मजबूत और लोकप्रिय उम्मीदवार उतारने में सफल होते हैं, तो मुकाबला कड़ा हो सकता है।

--आईएएनएस

पीएसके/एबीएम

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