नई दिल्ली, 22 जून (आईएएनएस)। 23 जून 1939 को ब्रिटिश भारत में जन्मे सैयद शाहिद हकीम की रगों में ही फुटबॉल था। यह खेल उन्हें पिता से विरासत में मिला था।
हैदराबाद के रहने वाले सैयद शाहिद हकीम के पिता सैयद अब्दुल रहीम भारत के महानतम कोच में से एक हैं। दो बार एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीत चुके अब्दुल रहीम अपनी कोचिंग में साल 1956 के मेलबर्न ओलंपिक में भारतीय फुटबॉल टीम को सेमीफाइनल तक पहुंचा चुके थे।
यह इतिहास रचते हुए सेमीफाइनल में पहुंचने वाली पहली एशियाई टीम थी, लेकिन उसे सेमीफाइनल में युगोस्लाविया से हार का सामना करना पड़ गया। बॉलीवुड फिल्म मैदान सैयद अब्दुल रहीम पर ही आधारित है, जिसमें अजय देवगन ने उनका किरदार निभाया। उन्हें भारतीय फुटबॉल को उसके स्वर्ण युग में पहुंचाने वाली शख्सियत के तौर पर याद किया जाता है।
सैयद शाहिद हकीम ने साल 1960 में सर्विसेज फुटबॉल टीम की ओर से अपना करियर शुरू किया था। शाहिद हकीम साल 1960 के रोम ओलंपिक के लिए टीम का हिस्सा थे, जिसे उनके पिता ने ही तैयार किया था, लेकिन इस ओलंपिक में उन्हें खेलने का मौका भी ना मिल सका। इसके बाद शाहिद हकीम साल 1962 में एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीतने वाली टीम का भी हिस्सा बनने से चूक गए।
शाहिद हकीम भारतीय वायु सेना के स्क्वाड्रन लीडर रहे। उन्हें साहब नाम से भी बुलाया जाता था। संतोष ट्रॉफी जीतने वाले शाहिद हकीम ने 1966 तक खेलना जारी रखा।
अपने पिता के ही नक्शेकदम पर चलते हुए सैयद शाहिद हकीम ने बतौर कोच अपना करियर शुरू किया। वह 1982 एशियन गेम्स में पीके बनर्जी के साथ सहायक कोच थे। उन्होंने 1998 में डूरंड कप विजेता टीम के मैनेजर के रूप में भी काम किया। इसके अलावा सालगांवकर एससी, हिंदुस्तान एफसी और बंगाल क्लब मुंबई को भी कोचिंग दी।
शाहिद हकीम करीब पांच दशक भारतीय फुटबॉल से जुड़े रहे। वह कोचिंग के अलावा फीफा रेफरी भी रहे। उन्होंने कतर में 1988 एएफसी एशियन कप में अंपायरिंग भी की। शाहिद हकीम स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (साई) के रीजनल डायरेक्टर भी रहे।
भारतीय फुटबॉल में उत्कृष्ठ योगदान के लिए शाहिद हकीम को साल 2017 में मेजर ध्यानचंद लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। 22 अगस्त 2021 को 82 वर्ष की उम्र में भारतीय फुटबॉल के साहब ने दुनिया को अलविदा कह दिया।
--आईएएनएस
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