नई दिल्ली, 5 जुलाई (आईएएनएस)। भारतीय राजनीति के इतिहास में कुछ ही ऐसे व्यक्तित्व हुए हैं, जिन्होंने अपनी कर्मठता और समाज के प्रति समर्पण से एक अमिट छाप छोड़ी। बाबू जगजीवन राम उनमें से एक थे। दलित समुदाय से आने वाले इस महान नेता ने न केवल सामाजिक बाधाओं को तोड़ा, बल्कि अपने कार्यों से देश की प्रगति में महत्वपूर्ण योगदान दिया। एक स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक और कुशल प्रशासक के रूप में उनकी पहचान भारतीय राजनीति के स्वर्णिम पन्नों में दर्ज है।
जगजीवन राम की कहानी एक ऐसे राजनेता की है, जिन्होंने हर कदम पर समानता और न्याय के लिए संघर्ष किया। दलित परिवार में जन्मे जगजीवन राम ने स्वतंत्रता संग्राम से लेकर स्वतंत्र भारत के निर्माण तक, अपने नेतृत्व, दूरदर्शिता और सामाजिक न्याय के प्रति समर्पण से इतिहास रचा। साल 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में रक्षा मंत्री के रूप में उनकी भूमिका हो या रेलवे के आधुनिकीकरण में योगदान, बाबूजी की विरासत आज भी प्रेरणा देती है।
जगजीवन राम का जन्म 5 अप्रैल 1908 को बिहार के भोजपुर जिले के चंदवा गांव में एक दलित परिवार में हुआ था। उस दौर में जब जातिगत भेदभाव और सामाजिक असमानता अपने चरम पर थी, जगजीवन राम ने शिक्षा को अपने जीवन का आधार बनाया। उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और कलकत्ता विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की, जो उस समय दलित समुदाय के युवक के लिए असाधारण उपलब्धि थी। उनकी शिक्षा और जागरूकता ने उन्हें सामाजिक अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने की प्रेरणा दी।
जगजीवन राम ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेकर की। वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सक्रिय सदस्य बने और महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन में शामिल हुए। उनकी संगठन क्षमता और जनता से जुड़ने की कला ने उन्हें जल्द ही राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। स्वतंत्रता के बाद, जगजीवन राम ने देश की राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया। वह केंद्र सरकार में विभिन्न मंत्रालयों में मंत्री रहे, जिनमें श्रम, संचार, रेलवे, खाद्य एवं कृषि, और रक्षा मंत्रालय शामिल हैं।
वह 1950 से 1952 तक प्रोविजनल पार्लियामेंट का हिस्सा थे। इसके बाद 1952 में हुए पहले चुनाव में बिहार की सासाराम सीट से लोकसभा चुनाव जीते और 1986 में निधन तक इस संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। वह भारतीय राजनीति में सबसे लंबे समय तक सांसद रहने वालों में से एक थे। इस दौरान उन्होंने विभिन्न दलों और विचारधाराओं के साथ काम किया, लेकिन सामाजिक न्याय के प्रति उनकी प्रतिबद्धता कभी नहीं डगमगाई।
उनका सबसे उल्लेखनीय योगदान रक्षा मंत्री के रूप में रहा, जब 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भारत ने ऐतिहासिक विजय प्राप्त की। इस युद्ध ने बांग्लादेश के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया और जगजीवन राम के नेतृत्व की प्रशंसा देश-विदेश में हुई। इसके अलावा उन्होंने भारतीय रेलवे के आधुनिकीकरण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके कार्यकाल में रेलवे का विस्तार हुआ और इसे जनता के लिए अधिक सुलभ बनाया गया।
खाद्य एवं कृषि मंत्री के रूप में जगजीवन राम ने 1960 के दशक में भारत की हरित क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके नेतृत्व में कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए नए बीजों, उर्वरकों और आधुनिक तकनीकों को बढ़ावा दिया गया, जिससे देश खाद्य आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ा।
साल 1977 में जगजीवन राम ने कांग्रेस छोड़कर कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी की स्थापना की और जनता पार्टी के साथ गठबंधन किया। इस गठबंधन की जीत के बाद वह मोरारजी देसाई सरकार में उपप्रधानमंत्री बने।
जगजीवन राम का सबसे बड़ा योगदान सामाजिक समानता के क्षेत्र में रहा। दलित समुदाय से होने के बावजूद उन्होंने कभी भी अपनी जातिगत पहचान को अपने कार्यों पर हावी नहीं होने दिया। वह सामाजिक भेदभाव के खिलाफ मुखर थे और दलितों के उत्थान के लिए कई नीतियों को लागू करने में सहायता की। उनकी बेटी मीरा कुमार भी उनके नक्शेकदम पर चलते हुए भारतीय राजनीति में एक प्रमुख चेहरा बनीं और लोकसभा की पहली महिला अध्यक्ष बनीं।
जगजीवन राम का निधन 6 जुलाई 1986 को हुआ, लेकिन उनकी विरासत आज भी जीवित है। वह एक ऐसे नेता थे, जिन्होंने न केवल राजनीति में, बल्कि समाज सुधार, शिक्षा और समानता के क्षेत्र में भी अपनी पहचान बनाई। बाबूजी का जीवन हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है, जो सामाजिक बाधाओं को पार कर अपने सपनों को साकार करना चाहता है।
--आईएएनएस
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