Jharkhand Poll: क्षत्रपों के इर्द-गिर्द घूमती झारखंड की सियासत, जानिए पूरा गणित
Jharkhand Poll: बिहार से अलग होकर बने झारखंड राज्य की सियासत क्षत्रपों के इर्द-गिर्द घूमती रही है. विधानसभा चुनाव में सभी दल पूरे जोर-शेर के साथ चुनावी मैदान में उतरे हैं, लेकिन क्षत्रपों पर सबकी निगाह बनी हुई है.
रांची:
Jharkhand Poll: बिहार से अलग होकर बने झारखंड राज्य की सियासत क्षत्रपों के इर्द-गिर्द घूमती रही है. विधानसभा चुनाव में सभी दल पूरे जोर-शेर के साथ चुनावी मैदान में उतरे हैं, लेकिन क्षत्रपों पर सबकी निगाह बनी हुई है. पिछले लोकसभा चुनाव में यहां के मतदाताओं ने राज्य की 14 में से 12 सीटें बीजेपी की झोली में जरूर डाल दी थी. मगर बीजेपी के दिग्गज नेता जिस तरह झारखंड में कैंप कर रहे हैं, उससे ऐसा लगता है कि बीजेपी किसी भी हाल में झारखंड खोना नहीं चाहती.
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बीजेपी के एक नेता ने तो नाम न जाहिर करने की शर्त पर यहां तक कहा कि स्थानीय नेताओं की अकड़ भी अब कम हुई है. उन्होंने कहा कि अकड़ के कारण ही बीजेपी ने ऑल झरखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) जैसे सरीखे भरोसेमंद सहयोगियों के दबे-छिपे गठबंधन प्रस्तावों को ठुकरा दिया गया. झारखंड की दो बड़ी क्षेत्रीय पार्टियां सुदेश महतो के नेतृत्व में आजसू और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) अपने दम पर चुनाव मैदान में उतर गई है.
आजसू के प्रवक्ता देवशरण भगत कहते हैं, 'हमारा गठबंधन तो झारखंड की जनता के साथ है. आजसू इस चुनाव में दमखम के साथ चुनावी मैदान में उतरी है.' सूत्रों का कहना है कि पार्टी की सोच कुर्मी वोटरों के अलावा युवाओं और महिलाओं का समर्थन हासिल करने की है. आजसू राज्य की 81 विधानसभा सीटों में से 53 पर अपने उम्मीदवार उतार चुकी है. आजसू के चुनाव के बाद महत्ती भूमिका का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह रांची में चार दिन पहले खुद कह चुके हैं कि आजसू को बीजेपी साथ लेकर चलेगी.
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झारखंड के उपमुख्यमंत्री का दायित्व संभाल चुके सुदेश महतो राज्य में सिल्ली विधानसभा का नेतृत्व करते रहे हैं, हालांकि पिछले चुनाव में उनको वहां से हार का मुंह देखना पड़ा था. इस चुनाव में सुदेश एक बार फिर से सिल्ली विधानसभा से चुनावी मैदान में हैं. झारखंड में किसी भी सरकार में शामिल रहने वाली पार्टी के प्रमुख सुदेश की पहचान सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका रही है. हालांकि झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) इस चुनाव में राजद और कांग्रेस के साथ चुनावी मैदान में उतरी है. इस गठबंधन ने झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन को अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार भी घोषित कर दिया है. बीजेपी के टिकट बंटवारे से कई क्षेत्रों में असंतोष उभरने के बाद इस गठबंधन के नेता उत्साहित हैं.
इसी तरह पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी की पार्टी भी इस चुनाव में अकेले चुनाव मैदान में उतरी है. विधानसभा की सभी 81 सीटों में अपने उम्मीदवार उतारी है. पार्टी को उम्मीद है कि वे अपने उन नाराज वोटरों को फिर अपने पाले में ले आएंगे, जो लोकसभा चुनाव में बीजेपी के पक्ष में चले गए थे. मरांडी झारखंड के पहले मुख्यमंत्री थे, लेकिन बीजेपी से नाराजगी के बाद उन्होंने अपनी अलग पार्टी बना ली. ईमानदार छवि के माने जाने वाले मरांडी इस चुनाव में पिछले चुनाव की तरह सफलता हासिल कर लेते हैं तो माना जाता है कि झाविमो के पास सरकार बनाने की कुंजी होगी.
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झारखंड के लोकसभा और विधानसभा चुनावों में मतदाता के रुझान बदलते रहे हैं. मतदाता विधानसभा चुनावों में हमेशा खंडित या त्रिशंकु जनादेश देते रहे हैं, जबकि 2004, 2009 और 2014 के लोकसभा चुनावों में उन्होंने हर बार स्पष्ट जनादेश दिया है. पिछले विधानसभा चुनाव में आजसू बीजेपी के साथ चुनाव मैदान में उतरी थी. उस चुनाव में आजसू ने आठ प्रत्याशी उतारे थे, जिनमें से पांच विजयी हुए थे, जबकि झाविमो 73 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और आठ सीटें जीती थी. बाद में, हालांकि इनके अधिकांश विधायक बीजेपी के हो गए थे.
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