अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस : प्रोजेक्ट टाइगर की उपलब्धियां, अवैध शिकार बनी चुनौती

अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस : प्रोजेक्ट टाइगर की उपलब्धियां, अवैध शिकार बनी चुनौती

अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस : प्रोजेक्ट टाइगर की उपलब्धियां, अवैध शिकार बनी चुनौती

author-image
IANS
New Update
अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस: प्रोजेक्ट टाइगर की उपलब्धियां, अवैध शिकार बनी चुनौती

(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)

नई दिल्ली, 28 जुलाई (आईएएनएस)। हर साल 29 जुलाई को अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस मनाया जाता है। यह दिन न केवल बाघों की घटती संख्या पर चिंता जताने का अवसर है, बल्कि उनके संरक्षण की दिशा में उठाए गए कदमों और भविष्य की योजनाओं को भी रेखांकित करता है।

Advertisment

इस दिन को मनाने की शुरुआत 2010 में रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में हुई टाइगर समिट में हुई थी, जहां बाघ रेंज वाले देशों ने बाघों के संरक्षण के लिए एक साझा संकल्प लिया था। इसके बाद यह तय हुआ कि हर वर्ष 29 जुलाई को अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस मनाया जाएगा, ताकि बाघों के अस्तित्व को सुरक्षित रखने की दिशा में वैश्विक प्रयासों को बल मिल सके। भारत न केवल बाघों का राष्ट्रीय निवास स्थल है, बल्कि दुनिया की 70 फीसदी से अधिक जंगली बाघ आबादी यहीं पाई जाती है।

अखिल भारतीय बाघ अनुमान 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, देश में फिलहाल कम से कम 3,167 बाघ हैं। नवीनतम सांख्यिकीय विश्लेषण से यह आंकड़ा 3,925 तक होने की संभावना बताई गई है, जो सालाना 6.1 फीसदी की सराहनीय वृद्धि दर को दर्शाता है। यह सफलता यूं ही नहीं मिली। इसका श्रेय भारत सरकार द्वारा वर्ष 1973 में शुरू किए गए प्रोजेक्ट टाइगर को जाता है। इसकी शुरुआत नौ टाइगर रिजर्व से हुई थी, जो आज 54 टाइगर रिजर्व तक फैल चुका है, और अब भी लगातार विस्तारित हो रहा है।

बाघों को प्रकृति का शाही प्रहरी कहा जाता है। उनकी हर दहाड़ 3 किलोमीटर दूर तक सुनाई देती है और हर बाघ की धारियां उतनी ही अनोखी होती हैं जितनी इंसान की उंगलियों की छाप। यह विशेषता वैज्ञानिकों को बाघों की पहचान में मदद करती है। इसके लिए अब कैमरा ट्रैपिंग और 3डी मॉडलिंग जैसी तकनीकों का सहारा लिया जा रहा है।

बाघ केवल जंगल का राजा नहीं, बल्कि उत्कृष्ट तैराक भी होता है। वह पानी में शिकार करना पसंद करता है और कई किलोमीटर तक तैर सकता है। इस तरह वह वन पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को बनाए रखने में एक अहम भूमिका निभाता है।

20वीं सदी के मध्य तक शिकार, वनों की कटाई और मानवीय हस्तक्षेप के चलते भारत में बाघों की संख्या चिंताजनक स्तर तक गिर गई थी। आज भी अवैध शिकार, खाल और हड्डियों की अंतरराष्ट्रीय तस्करी और प्राकृतिक आवासों के घटने जैसे खतरे बाघों के अस्तित्व पर मंडरा रहे हैं। वनों के सिकुड़ने से बाघ अक्सर गांवों और मानव बस्तियों की ओर रुख करते हैं, जिससे मानव-पशु संघर्ष की घटनाएं बढ़ रही हैं।

सरकार ने प्रोजेक्ट टाइगर के तहत राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) का गठन किया, जो राज्यों के साथ मिलकर बाघों के संरक्षण और उनके आवास की रक्षा पर लगातार काम कर रहा है। कई एनजीओ और अंतरराष्ट्रीय संगठन भी इस मिशन में भागीदार हैं।

बाघों की सुरक्षा के लिए अब स्मार्ट पेट्रोलिंग, रियल टाइम डेटा ट्रैकिंग, जन-जागरूकता अभियान और आधुनिक तकनीकों का प्रयोग किया जा रहा है। इसके अलावा, देशभर में बाघ जागरूकता कार्यक्रम, स्कूलों में वर्कशॉप्स और वन्यजीव फिल्मों के जरिए बच्चों और युवाओं को भी इस मुहिम में जोड़ा जा रहा है।

--आईएएनएस

पीएसके/जीकेटी

डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ न्यूज नेशन टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.

      
Advertisment