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'भारत में भी नमाजी नहीं मारे गए... हमने ही आतंक के बीज बोए थे'

पेशावर मस्जिद विस्फोट पर ख्वाजा आसिफ ने कहा ​​कि भारत या इस्राइल में भी नमाजियों की मौत नमाज के दौरान नहीं हुई, लेकिन यह पाकिस्तान में हुआ.

News Nation Bureau
| Edited By :
01 Feb 2023, 10:57:49 AM (IST)

highlights

  • रक्षा मंत्री ने पेशावर आतंकी हमले के बाद किया भारत का जिक्र
  • कहा भारत और इजरायल में नमाज के दौरान नहीं मारे जाते लोग
  • यह भी स्वीकारा कि आतंक के बीज खुद पाकिस्तान ने ही बोए

इस्लामाबाद:

पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ (Khawaja Asif) ने पेशावर में एक मस्जिद (Peshawar Mosque Blast) के अंदर घातक आत्मघाती बम विस्फोट के बाद की गई टिप्पणी में कहा कि भारत में भी प्रार्थना के दौरान उपासक नहीं मारे गए. गौरतलब है कि पेशावर की मस्जिद में हुए आत्मघाती हमले में 100 से अधिक लोगों की मौत हो गई और सैकड़ों घायल हो गए हैं. मंगलवार को पेशावर पुलिस ने मस्जिद के मलबे से संदिग्ध आत्मघाती हमलावर का सिर बरामद किया है. माना जा रहा है कि विस्फोट की तीव्रता से उसका सिर धड़ से अलग हो गया था. इस विभत्स हमले की जिम्मेदारी पाकिस्तान तहरीक ए तालिबान (TTP) आतंकी संगठन ने लेते हुए इसे अपने कमांडर की मौत का बदला करार दिया है.

पाकिस्तान की नेशनल एसेंबली में ख्वाजा आसिफ ने कहा, 'यहां तक ​​कि भारत या इस्राइल में भी नमाजियों को नमाज के दौरान नहीं मारा गया, लेकिन यह पाकिस्तान में हुआ.' उन्होंने कहा, 'आतंक के खिलाफ यह युद्ध पीपीपी के कार्यकाल के दौरान स्वात से शुरू हुआ था और यह पीएमएल-एन के पिछले कार्यकाल के दौरान समाप्त हुआ था. कराची से स्वात तक देश में शांति स्थापित हुई थी, लेकिन अगर आपको याद हो तो डेढ़ या दो साल पहले हमें इसी हॉल में दो, तीन बार ब्रीफिंग दी गई थी जिसमें यह स्पष्ट रूप से कहा गया था कि इन लोगों के खिलाफ बातचीत की जा सकती है और उन्हें शांति की ओर लाया जा सकता है.' 

उन्होंने कहा, 'लेकिन यह एक त्रासदी है जहां हमें उसी संकल्प और एकता की आवश्यकता है जो 2011-2012 में व्यक्त की गई थी. मैं लंबे समय तक बात नहीं करूंगा लेकिन मैं संक्षेप में कहूंगा कि शुरुआत में हमने आतंकवाद के बीज बोए थे.' अफगानिस्तान पर रूस के आक्रमण का जिक्र करते हुए मंत्री ने कहा कि पाकिस्तान ने अमेरिका को 'किराए पर' अपनी सेवाएं देने की पेशकश की थी. उन्होंने कहा, 'जनरल जिया उस समय शासक थे. अमेरिका के साथ किया गया समझौता आठ से नौ साल तक चला, जिसके बाद अमेरिका रूस की हार का जश्न मनाते हुए व़शिंगटन वापस चला गया.'