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अजमेर में धूमधाम से मनाई गई बसंत पंचमी, पीले रंग से चमक उठी ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह

शाही कव्वाल के साथ दरगाह के खादिम जुलूस के रूप में बुलंद दरवाजा, सहन चिराग, संदली गेट होते हुए अहाता-ए-नूर तक पहुंचे. इसके बाद पूरी अकीदत के साथ पीले फूलों का गुलदस्ता ख्वाजा साहब की मजार पर पेश किया गया.

News Nation Bureau
| Edited By :
11 Feb 2019, 03:33:15 PM (IST)

अजमेर:

इसे भारत की गंगा जमुनी तहजीब की कहा जाएगा कि अजमेर स्थित विश्वविख्यात ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में प्रतिवर्ष की तरह इस वर्ष भी बड़े ही धूमधाम से वसंत उत्सव मनाया गया. इस मौके पर शाही कव्वाल और उनके साथ पीले फूलों का गुलदस्ता हाथ में लेकर अमीर खुसरों के लिखे कलाम, ख्वाजा की चैखट चूम ले, बसंत फूलों के गढ़वे हाथ ले, गाना बजाना साथ ले, क्या खुशी और ऐश का सामान लाती है बसंत, ख्वाजा मोईनुद्दीन के घर आज आती है बसंत गाते हुए वसंत पेश किया.

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शाही कव्वाल के साथ दरगाह के खादिम जुलूस के रूप में बुलंद दरवाजा, सहन चिराग, संदली गेट होते हुए अहाता-ए-नूर तक पहुंचे. इसके बाद पूरी अकीदत के साथ पीले फूलों का गुलदस्ता ख्वाजा साहब की मजार पर पेश किया गया. इस मौके पर दरगाह दीवान के पुत्र व खादिम भी उपस्थित रहे. दरगाह में वसंत उत्सव के खास मायने हैं. उत्सव के समय दरगाह परिसर का माहौल खुशनुमा रहता है. प्रकृति के सौंदर्य से जुड़े वसंत उत्सव में सभी अकीदतमंद मौजूद रहते है. असल में ऐसे ही उत्सवों और कार्यक्रमों की वजह से ख्वाजा साहब की दरगाह को साम्प्रदायिक सद्भावना की मिसाल माना जाता है.

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दरगाह में ऐसी अनेक परंपराएं हैं जो भारतीय सनातन संस्कृति से जुड़ी हुई है. देश का साम्प्रदायिक माहौल चाहे कैसा भी हो, लेकिन ख्वाजा साहब की दरगाह में सद्भावना का माहौल बना रहता है. यही वजह है कि रोजाना हजारों हिन्दू श्रद्धालु दरगाह में जियारत के लिए आते हैं. दरगाह में जब भारतीय संस्कृति का वसंत उत्सव मनाया जाता है तो सद्भावना और मजबूत होती है.