महाराष्ट्र: राजनीति की शतरंज में शरद पवार ने अमित शाह को दे दी मात, जानें कैसे
महाराष्ट्र में चार दिन चले उठापटक के बाद आखिरकार मंगलवार को पटाक्षेप हो गया और राकांपा को तोड़कर सरकार बनाने की भाजपा की कोशिशें विफल हो गईं.
नई दिल्ली:
महाराष्ट्र में चार दिन चले उठापटक के बाद आखिरकार मंगलवार को पटाक्षेप हो गया और राकांपा को तोड़कर सरकार बनाने की भाजपा की कोशिशें विफल हो गईं. अमित शाह के नेतृत्व में भाजपा के सामने ये पहला मौका है, जब वह इतनी ज्यादा सीटें हासिल करने के बाद भी सत्ता से आउट हो गई है. इससे पहले गोवा और हरियाणा जैसे राज्यों में बहुमत से दूर रहने के बावजूद बीजेपी सरकार बनाने में सफल रही थी. वहीं, कर्नाटक में बीजेपी ने सरकार बनाने के लिए भी कोई कसर नहीं छोड़ी थी.
जब कोई पार्टी सरकार बनाने का दावा पेश करती है तो उनके पास विधायकों के नंबर होते हैं. इस खेल के पटाक्षेप से साफ हुआ कि अजित पवार के साथ 10-12 विधायक ही थे और बाद में वे भी नहीं रहे. शरद पवार ने अपने 54 में से 53 विधायकों को अपने पक्ष में कर लिया. सिर्फ अजित पवार ही बचे थे तो उन्होंने भी मंगलवार को उपमुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस अपने विधायकों को साथ रखने में कामयाब हुए.
इस खेल में सबसे ज्यादा नुकसान भाजपा और देवेंद्र फडणवीस का हुआ, क्योंकि अजित पवार तो सेफ गेम खेलकर वापस अपनी पार्टी में चले गए. राजनीतिक गलियारों में इस समय चर्चा चल रही है कि क्या राजनीति की शतरंज में शरद पवार ने अमित शाह को मात दे दी है. राजनीति विशेषण की मानें तो शरद पवार ने बेहद राजनीतिक समझदारी से इस गठबंधन को बनाने में सफलता हासिल की है.
गृह मंत्री अमित शाह अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, गोवा और सिक्किम के हिसाब से महाराष्ट्र में भी सरकार बनाना चाह रहे थे, लेकिन उन्होंने महाराष्ट्र को समझा ही नहीं. वे बाकी राज्यों की तरह महाराष्ट्र में भी ऐसे खेल रहे थे जैसे यह बच्चों का खेल हो और वो जो चाहे कर सकते हैं. महाराष्ट्र में यह नहीं चल सकता था, क्योंकि यहां प्रतिरोध की राजनीति की एक परंपरा रही है.
विधानसभा चुनाव में गठबंधन को बहुमत मिलने के बाद बीजेपी और शिवसेना के बीच ढाई-ढाई सीएम पद पर सहमति नहीं बन पाई. इस बीच शिवसेना सीएम पद पर अड़ी रही और एनसीपी-कांग्रेस से भी संपर्क में रही. वहीं, बीजेपी-एनसीपी के बीच तनातनी का सिलसिला महाराष्ट्र चुनाव से पहले ही शुरू हो गया था. विधानसभा चुनाव प्रचार अपने चरम पर था, लेकिन इसके बाद भी ईडी की टीमें शरद पवार के भतीजे अजित पवार के खिलाफ छापे मार रही थीं. चुनाव प्रचार के दौरान ही ईडी ने एनसीपी प्रमुख शरद पवार पर मनी लॉन्ड्रिंग का केस दर्ज किया था. ऐसे में एनसीपी का बीजेपी में जाना सवाल ही नहीं था.
महाराष्ट्र में कहा जाता है कि शरद पवार के कई दशकों का राजनीतिक इतिहास सेक्युलर रहा है. उन्हें समझने में बीजेपी से चूक हो गई. और पहली बड़ी चूक शिवसेना को सम्मान न देने की हुई. बीजेपी न अपने दोस्त को समझ सकी, न दुश्मन को. महाराष्ट्र में दो ही नेता ऐसे हुए हैं, जिन्हें पूरे महाराष्ट्र की शानदार समझ रही- शरद पवार और प्रमोद महाजन. महाराष्ट्र की राजनीति की समझ में बीजेपी कच्ची रह गई.