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आपराधिक प्रकिया पहचान विधेयक पर चिदंबरम ने जताई आपत्ति, कहा-यह असंवैधानिक है

इस विधेयक पर पूर्व गृहमंत्री और कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने कहा कि सेल्वी मामले में कोर्ट ने कहा कि पॉलीग्राफी, नार्कोएनालिसिस और ब्रेन इलेक्ट्रिकल एक्टिवेशन प्रोफाइल (बीईएपी) किसी व्यक्ति के अधिकारों का उल्लंघन करता है.

News Nation Bureau
| Edited By :
06 Apr 2022, 06:13:39 PM (IST)

highlights

  • सरकार ने सेल्वी मामलों में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसलों को ध्यान में नहीं रखा
  • विधेयक 120 वर्ष पुराने अपराधियों के पहचान कानून 1920 की जगह लेगा
  • बिल को मानवाधिकार के वकीलों और कार्यकर्ता की तरफ से विरोध झेलना पड़ रहा है

नई दिल्ली:

लोकसभा में बीते सोमवार को आपराधिक प्रक्रिया पहचान विधेयक 2022 (Criminal Procedure Identification Bill 2022) पास हो गया. हालांकि विपक्ष ने मांग की थी कि इसे जांच के लिए पार्लियामेंट्री कमेटी या सेलेक्ट कमेटी के पास भेजा जाना चाहिए. देश के गृह मंत्री अमित शाह (Home Minister Amit Shah) ने सदन में अपने बयान कहा था कि इस बिल को स्टैंडिंग कमेटी के पास भेजा जाएगा. इस विधेयक पर पूर्व गृहमंत्री और कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने कहा कि सेल्वी मामले में कोर्ट ने कहा  है कि पॉलीग्राफी, नार्कोएनालिसिस और ब्रेन इलेक्ट्रिकल एक्टिवेशन प्रोफाइल (बीईएपी) किसी व्यक्ति के अधिकारों का उल्लंघन करता है. उन्होंने कहा, यह असंवैधानिक है. यह लोगों की स्वतंत्रता, गोपनीयता और गरिमा का उल्लंघन करता है. विधेयक को चयन समिति के पास नहीं भेजा गया था. सरकार ने सेल्वी और पुट्टस्वामी मामलों में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसलों को ध्यान में नहीं रखा.

उल्लेखनीय है कि वर्ष 2010 के 'सेल्वी बनाम कर्नाटक राज्य' वाद में सर्वोच्च न्यायालय की तीन सदस्यीय पीठ ने अपने निर्णय में कहा था कि अभियुक्त की सहमति के बिना किसी भी प्रकार का 'लाई डिटेक्टर टेस्ट' (Lie Detector Test) नहीं किया जा सकता है।

क्या है आपराधिक पहचान विधेयक 2022?

मोदी सरकार की तरफ से लाया गया आपराधिक प्रक्रिया पहचान विधेयक 2022, 120 वर्ष पुराने अपराधियों के पहचान कानून 1920 की जगह लेगा. इस नए अधिनियम के अनुसार सरकार आदतन अपराधियों, गिरफ्तार आरोपियों और मुजरिमों के बारे में पहले से ज्यादा जानकारी या डेटा जुटा पाएगी. यह विधेयक पुलिस और जेल अधिकारियों को यह अनुमति देगा कि वह गिरफ्तार किए गए आरोपी और अपराधियों के रेटिना,आईरिस स्कैन के बायोलॉजिकल सैंपल    का संग्रह कर उसका विश्लेषण करें. इसके पहले 1920 वाले कानून में मजिस्ट्रेट के आदेश के अनुसार, पुलिस अधिकारी को अपराधियों के फिंगरप्रिंट, फुटप्रिंट और तस्वीरें लेने का प्रावधान था. हालांकि बिल को मानवाधिकार के वकीलों और कार्यकर्ता की तरफ से विरोध झेलना पड़ रहा है और वह लोग इसे असंवैधानिक बता रहे हैं.