.

मुंबई की आरे कॉलोनी (Aarey Colony) सुर्खियों में क्यों है, जानें मायानगरी के उबलने की पूरी कहानी

महाराष्‍ट्र में विधानसभा चुनावों के बीच मायानगरी मुंबई के गोरेगांव की आरे कॉलोनी (Aarey Colony) की चर्चा हर किसी की जुबान पर है.

06 Oct 2019, 04:02:06 PM (IST)

नई दिल्‍ली:

महाराष्‍ट्र में विधानसभा चुनावों (Maharashtra Assembly Election 2019) के बीच मायानगरी मुंबई के गोरेगांव की आरे कॉलोनी (Aarey Colony) की चर्चा हर किसी की जुबान पर है. सोशल मीडिया पर इन दिनों इसको लेकर #AareyForestPolitics, #AareyChipko #SaveAarey जैसे मुहीम चल रहे हैं और इसमें नेताओं से लेकर पूरा बॉलीवुड भी आगे है. दरअसल बीएमसी ने मुंबई के आरे जंगल में मेट्रो कार शेड के लिए 2700 से ज्यादा पेड़ों की कटाई की अनुमति दी थी. इसको लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट में आरे कॉलोनी को जंगल घोषित करने की कई याचिकाएं दाखिल की गई लेकिन कोर्ट ने सभीको खारिज कर दिया . कोर्ट ने कहा कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) में लंबित है. इसलिए याचिका को एक जैसा मामला होने के कारण खारिज कर रहे हैं. आइए जानें क्‍या है पूरा मामला...

माया नगरी मुंबई में समंदर से थोड़ा दूर एक मोहल्ला है, गोरेगांव. गोरेगांव फिल्म सिटी भी यहीं है और यहीं पर है “आरे मिल्क कॉलोनी”. आरे मिल्क कॉलोनी को देश के आज़ाद होने के थोड़े दिनों बाद ही बसाया गया था. 4 मार्च 1951 को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू खुद आए और पौधारोपण करके आरे कॉलोनी की नींव रखी.

कुल क्षेत्रफल 3,166 एकड़. स्थापना से लेकर अब तक आरे का विस्तार होता रहा. संजय गांधी नेशनल पार्क से जुड़कर आरे कॉलोनी के हरेपन में रोजाना बढ़ोतरी होती रही. और धीरे-धीरे मुंबईकरों ने आरे कॉलोनी और उसके कुछ हिस्सों को कुछ नाम दिए. जैसे – “छोटा कश्मीर”, “मुंबई का फेफड़ा” और “आरे जंगल”.
मतलब, इतना हराभरा कि कॉलोनी जंगल में तब्दील हो गयी, और मुंबई को थोड़ा ऑक्सीजन और मिलने लगा.


कंक्रीट के जंगलों के बीच आरे मुंबई का आखिरी बचा हुआ हरित क्षेत्र है. यह गोरेगांव में स्थित है और शहर का ग्रीन लंग कहलाता है. आरे जंगल संजय गांधी नैशनल पार्क का हिस्सा है और समृद्ध जैव विविधता के जरिए मुंबई के पूरे इकोसिस्टम को सपॉर्ट करते हैं. एक इकोसिस्टम को तैयार होने में लगभग हजार साल का वक्त लगता है.

आरे के निवासी जिसमें अधिकतर वर्ली जनजाति के लोग शामिल हैं, मुंबई के सबसे पुराने निवासी कहे जाते हैं. इस जंगल में अलग-अलग प्रकार के पक्षी, जीव-जंतु और तेंदुए भी रहते हैं. इस जंगल में 1027 लोग रहते हैं जिनमें से अधिकतर जनजाति हैं.

जंगल पर संकट की शुरुआत

  • साल 2000 में मुंबई में मेट्रो बिछाने की बात होने लगी. परियोजना पर काम शुरू हुआ.
  • 8 जून 2014 को मुंबई मेट्रो का पहला फेज़ जनता के लिए खोल दिया गया. वर्सोवा से घाटकोपर तक. इसी के साथ मुंबई मेट्रो को और बढाने की प्लानिंग शुरू हो गयी.
  • साल 2015. राज्य सरकार ने कहा कि मेट्रो ट्रेन के कोच की पार्किंग हो सके, इसके लिए जगह चाहिए. और सरकार और मेट्रो कंपनी को जगह दिखी आरे कॉलोनी में.
  • आरे कॉलोनी के सबसे हरे-भरे इलाके में मुंबई मेट्रो रेल कारपोरेशन ने मांगी FSI 3 यानी फ्लोर स्पेस इंडेक्स बनाने की मांग की.
  • परियोजना की लागत 23,136 करोड़ रुपए. इस परियोजना के लिए इलाके के 2 हज़ार पेड़ काटे जाने की बात होने लगी.

लोगों का विरोध

लोग लामबंद होने लगे. कोशिश करने लगे कि पेड़ न काटे जाएं.पर्यावरण संरक्षण संगठनों वनशक्ति और आरे बचाओ ग्रुप ने राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण यानी NGT में याचिका दायर की.याचिका पर विचार करते हुए NGT की पुणे बेंच ने दिसंबर 2016 में आदेश जारी किया कि आरे इस जोन में कोई भी निर्माण कार्य न किये जाएं. लेकिन यहां पर ये बता देना ज़रूरी है कि आरे के कुल क्षेत्रफल की ज़मीन का कुछ हिस्सा राज्य सरकार और कुछ हिस्सा केंद्र सरकार के अधीन आता है.

Young citizens detained. All nature lovers. Begging to protect our trees. This video is a cruel wake up call. Hope it stirs the inner recesses of your heart. You assured these old trees would be translocated. This is no way of cutting them for translocation!!! #AareyChipko pic.twitter.com/5HknJ2Jx9j

— Dia Mirza (@deespeak) October 5, 2019

जनवरी 2017 में NGT ने मुंबई मेट्रो रेल कारपोरेशन को यह छूट दी कि वह राज्य सरकार की 7.5 एकड़ ज़मीन पर काम किया जा सकता है. इसके बाद MMRC और NGT में लम्बे समय तक खींचतान शुरू हुई. लेकिन इसी बीच आया वन विभाग. राज्य वन विभाग ने NGT से कहा कि आरे कॉलोनी की ये ज़मीन कोई जंगल नहीं है. वन विभाग का भी तर्क सही माना जा सकता है. क्योंकि जब 1949 में आरे मिल्क कॉलोनी परियोजना की नींव रखी गयी, तो इस पूरी ज़मीन का उपयोग व्यावसायिक गतिविधियों के लिए होगा. लेकिन याचिकाकर्ताओं और तमाम प्रदर्शनकारियों का एक ही सोचना था, यहां ढेर सारे पेड़ हैं, तो जंगल हैं.

फरवरी 2017 में महाराष्ट्र मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडनवीस के आग्रह पर MMRC ने आरे के जंगलों पर कुछ वक़्त तक सोचना छोड़ दिया. मेट्रो डिपो बनाने के लिए मुंबई यूनिवर्सिटी के पास के कंजूरमार्ग में संभावना तलाशी गयी. सफलता नहीं मिली.

सरकार को जवाब दे दिया गया कि आरे ही मेट्रो डिपो के लिए सही जगह है. भारत के मेट्रोमैन कहे जाने वाले ई श्रीधरन ने भी राज्य सरकार को लिखा कि मेट्रो बनने से पर्यावरण को फायदा होगा. क्योंकि मेट्रो एक ईको फ्रेंडली प्रोजेक्ट है.

एनसीपी सांसद सुप्रिया सुले ने भी पेड़ों की कटाई का विरोध किया है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को कोट करते हुए लिखा कि आरे के जंगल में हरे पेड़ों की कटाई का मैं मजबूती से विरोध करती हूं.

उन्होंने आगे लिखा- 'सतत विकास को भविष्य का रास्ता बताते हुए मेट्रो के लिए पेड़ काटने की बजाय अन्य विकल्प सोचने की जरूरत है.' इससे पहले सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर के अलावा अन्य फिल्मी हस्तियों ने भी आरे जंगल से पेड़ काटे का विरोध किया है.

लता मंगेशकर ने ट्वीट कर कहा- 'मेट्रो शेड के लिए 2700 से अधिक पेड़ों की हत्या करना आरे के जीव सृष्टि और सौंदर्य को हानि पहुंचाना, यह बहुत दुख की बात होगी. मैं इस फैसले का सख्त विरोध करती हूं.'

मामला अदालत में

  1. 29 अगस्त 2019. बृहन्मुंबई महानगर पालिका ने मुंबई मेट्रो रेल कारपोरेशन को इजाज़त दे दी कि इलाके के लगभग 2600 पेड़ काट दिए जाएं. और मेट्रो डिपो/शेड का काम शुरू किया जाए. लेकिन 2 सितम्बर 2019 को पर्यावरण एक्टिविस्ट जोरू भथेना ने बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी. याचिका दायर हुई कि पेड़ों की कटाई पर रोक लगायी जाए. साथ ही एनजीओ वनशक्ति द्वारा एक और याचिका दायर की गयी कि इस इलाके को इकोलॉजिकल सेंसिटिव ज़ोन घोषित किया जाए.
  2. इसके साथ ही आरे के जंगलों में लोग प्रदर्शन कर रहे थे. आम मुंबई निवासियों से लगायत तमाम फ़िल्मी सितारों तक. “सेव आरे” के तहत लोग एकजुट होने लगे थे. श्रद्धा कपूर, रवीना टंडन और लता मंगेशकर ने भी आरे को बचाने के लिए लोगों का साथ दिया.
  3. 2015 से शुरू हुआ आन्दोलन अब और बड़ा हो चुका था. 4 अक्टूबर. बॉम्बे हाईकोर्ट ने याचिकाओं को खारिज कर दिया. कहा कि आरे जंगल नहीं है. चीफ जस्टिस प्रदीप नद्रजोग और जस्टिस भारती डांगरे की बेंच ने ये भी साफ़ किया कि याचिकाकर्ताओं को इस मामले में जो राहत चाहिए, वो या तो सुप्रीम कोर्ट से मिल सकती है, या तो NGT से.
  4. आरे के मेट्रो शेड की जगह बदलने के पीछे बॉम्बे हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी है, सुप्रीम कोर्ट ने भी 16 अप्रैल 2019 को भी आरे में मेट्रो शेड की जगह बदलने की याचिका खारिज कर दी थी. संभव है कि “सेव आरे” से जुड़े लोग फिर से याचिका दायर करें.