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परवेज मुशर्रफ का पाकिस्तान के 'चीफ एक्जीक्यूटिव' से फांसी तक का सफर

पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार किसी तानाशाह को संविधान की अवहेलना कर 'स्वयंभू शासक' बनने पर मौत की सजा सुनाई गई है. विशेष अदालत की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने मंगलवार को इस्लामाबाद में 2-1 के बहुमत से परवेश मुशर्रफ को राष्ट्रद्रोह के मामले में फांसी की स

17 Dec 2019, 03:16:42 PM (IST)

highlights

  • परवेज मुशर्रफ को राष्ट्रद्रोह मामले में आठ साल बाद सजा हुई है.
  • 1999 में परवेज मुशर्रफ पाकिस्तान के नए 'चीफ एक्जीक्यूटिव' बने थे.
  • पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार किसी तानाशाह को संविधान की अवहेलना कर मौत की सजा.

New Delhi:

पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार किसी तानाशाह को संविधान की अवहेलना कर 'स्वयंभू शासक' बनने पर मौत की सजा सुनाई गई है. विशेष अदालत की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने मंगलवार को इस्लामाबाद में 2-1 के बहुमत से परवेश मुशर्रफ को राष्ट्रद्रोह के मामले में फांसी की सजा सुनाई. परवेज मुशर्रफ को राष्ट्रद्रोह का मामला दर्ज होने के लगभग आठ साल बाद इस मामले में सजा हुई है. 12 अक्टूबर 1999 में तत्कालीन सैन्य प्रमुख बतौर परवेज मुशर्रफ ने लोकतांत्रिक सरकार को बर्खास्त करते हुए खुद को पाकिस्तान का नया 'चीफ एक्जीक्यूटिव' घोषित किया था. यही नहीं, 2007 में पाकिस्तान में आपातकाल लागू कर उन्होंने देश को नए और गहरे संकट में डाल दिया. पाकिस्तान के लिए इसके बाद के दिन संवैधानिक तौर पर काफी चुनौतीपूर्ण रहे. परवेज मुशर्रफ ने आपातकाल की आड़ में 3 नवंबर से 15 दिसंबर तक संविधान को ताक पर ही बनाए रखा. इस दौरान उन्होंने पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश समेत तमाम अन्य जजों को हिरासत में ले लिया. जून 2001 को खुद को राष्ट्रपति घोषित करने वाले परवेज मुशर्रफ ने आपातकाल के निर्णय को जायज ठहरा सर्वौच्च अदालत से जुड़े न्यायाधीशों को हिरासत में लेने के फैसले को 'उचित' ठहराते हुए अपने आदेश में कहा था, 'आतंकवाद और चरमपंथ के खिलाफ युद्ध में सर्वोच्च अदालत के जज विधायिका और कार्यपालिका के खिलाफ काम कर रहे हैं.' अब इसी मामले में उन्हें मौत की सजा सुनाई गई है. एक नजर डालते हैं स्वयंभू मुख्य कार्यकारी से आपातकाल थोपने वाले परवेज मुशर्रफ के इस कालखंड से जुड़ी मुख्य घटनाओं पर...

3 नवंबर 2007
राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने आपातकाल लागू करते हुए 1973 में बने संविधान को निलंबित कर दिया. यही नहीं, पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश इफ्तिखार मोहम्मद चौधरी समेत सर्वोच्च अदालत के 61 जजों को निष्प्रभावी कर दिया. पाकिस्तान के सभी निजी चैनल बंद कर दिए गए. सिर्फ सरकार द्वारा नियंत्रित पीटीवी से आपातकाल लागू करने की घोषणा की गई. इसमें आतंकवाद और चरमपंथ की बढ़ती घटनाओं को मुख्य रूप से जिम्मेदार बताया गया.

28 नवंबर 2007
परवेज मुशर्रफ ने पाकिस्तान सेना का प्रभार जनरल अशफाक परवेज कियानी के सुपुर्द कर पूरी तरह से सक्रिय राजनीति में आने का फैसला किया.

29 नवंबर 2007
सेवानिवृत्त जनरल परवेज मुशर्रफ ने बतौर राष्ट्रपति पद की शपथ ली.

15 दिसंबर 2007
राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने आपातकाल हटाते हुए अंतरिम संवैधानिक व्यवस्था (पीसीओ) लागू किया. इसके साथ ही बतौर राष्ट्रपति संवैधानिक संशोधन कर आपातकाल के 42 दिनों में लिए गए सभी निर्णयों को वैधानिकता का जामा पहना दिया. इसके साथ ही मुख्य न्यायाधीश समेत सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट और संघीय अदालतों के नवनियुक्त न्यायाधीशों ने नए सिरे से शपथ ली.

7 जून 2008
परवेज मुशर्रफ ने दो-टूक कहा कि उनका इरादा इस्तीफा देने या 'वनवास' पर जाने का नहीं है.

18 अगस्त 2008
पाकिस्तान पर नौ साल तक शासन करने के बाद परवेज मुशर्रफ ने राष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया. उस वक्त उन पर महाभियोग की तलवार लटक रही थी.

22 जुलाई 2009
एक अप्रत्याशित घटनाक्रम में सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व सैन्य शासक परवेज मुशर्रफ से 3 नवंबर 2007 के अपने निर्णय का बचाव करने के लिए कहा.

31 जुलाई 2009
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा 3 नवंबर 2007 को पाकिस्तान पर आपातकाल और पीसीओ थोपने का परवेज मुशर्रफ का निर्णय असंवैधानिक और गैरकानूनी था. इसके साथ ही अदालत ने परवेज मुशर्रफ से इस पर सात दिन में जवाब देने को कहा.

6 अगस्त 2009
मुशर्रफ ने अपने ऊपर लगे आरोपों पर सफाई देने से इंकार करते हुए पाकिस्तान छोड़ ब्रिटेन जाने का निर्णय किया.

8 जून 2010
परवेज मुशर्रफ के राजनीतिक साथियों ने ऑल पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एपीएमएल) के नाम से नई राजनीतिक पार्टी खड़ी की. इसका अध्यक्ष मुशर्रफ को बनाया गया.

22 मार्च 2013
परवेज मुशर्रफ को तीन बड़े और संवेदनशील मामले में पेश होने के लिए 10 दिन की घर वापसी से पहले सुरक्षात्मक जमानत दी गई.

24 मार्च 2013
पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ पाकिस्तान के आम चुनाव में भाग लेने के लिए वापस लौटे.

27 मार्च 2013
सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता एके डोगर ने चुनाव के दौरान संविधान के अनुच्छेद 62 और 63 का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट को मुशर्रफ के 3 नवंबर 2007 के आपातकाल थोपने के काम की राष्ट्रद्रोह से तुलना कर मुशर्रफ पर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा चलाने की बात की.

29 मार्च 2013
सिंध की हाई कोर्ट ने मुशर्रफ की अग्रिम जमानत की अवधि बढ़ाई. हालांकि ताकीद किया कि बगैर अनुमति वह देश छोड़कर नहीं जाएं.

5 अप्रैल 2013
सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका स्वीकार की. इसके तहत परवेज मुशर्रफ पर संविधान के अनुच्छेद 2 और 3 के तहत हाई ट्रीजन (पनिश्मेंट) एक्ट 1973 के तहत मुकदमा चलाने की बात की गई थी.

7 अप्रैल 2013
सर्वोच्च अदालत के मुख्य न्यायाधीश इफ्तिखार मोहम्मद चौधरी ने पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के खिलाफ राष्ट्रद्रोह के मुकदमे की सुनवाई करने वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ से खुद को अलग किया.

8 अप्रैल 2013
सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रद्रोह के मामले में परवेज मुशर्रफ को तलब किया. इसके साथ ही सर्वोच्च अदालत ने पाकिस्तान के गृह मंत्री को आदेश दिया कि मुशर्रफ देश छोड़कर जाने नहीं पाएं. इसके लिए अदालत ने उनका नाम एक्जिट कंट्रोल लिस्ट में शामिल करने को कहा.

18 अप्रैल 2013
इस्लामाबाद हाईकोर्ट में जमानत याचिका निरस्त हो जाने पर परवेज मुशर्रफ अदालत के परिसर से ही फरार हो गए.

19 अप्रैल 2013
न्यायाधीशों को हिरासत के मामले में परवेज मुशर्रफ एक जिला सत्र न्यायालय में पेश हए. अदालत ने परवेज मुशर्रफ को चाक शहजाद स्थित उनके फार्म हाउस में नजरबंद रखने का आदेश दिया.

30 अप्रैल 2013
पेशावर हाईकोर्ट ने परवेज मुशर्रफ पर राष्ट्रीय असेंबली या सीनेट का चुनाव लड़ने से रोक लगाई.

5 जून 2013
इस्लामाबाद हाईकोर्ट के जज शौकत अजीज सिद्दिकी ने जजों को हिरासत के मामले में सुनवाई से अलग किया. उन्होंने अपने खिलाफ दुष्प्रचार का हवाला देकर खुद को मामले से अलग किया.

14 जून 2013
कानून और न्याय मंत्री जाहिद हमीद ने 2007 के आपातलकाल से खुद को अलग किया. मंत्री महोदय ने अदालत से कहा कि उनका परवेज मुशर्रफ से कभी किसी तरह का कोई संपर्क नहीं रहा है. इसके साथ ही आपातकाल थोपने के निर्णय को बढ़ावे देने से भी उन्होंने इंकार किया.

24 जून 2013
प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने राष्ट्रीय असेबली में घोषणा करते हुए कहा सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 6 के तहत परवेज मुशर्रफ पर मुकदमा चलाए जाने की अनुशंसा की है.

18-19 नवंबर 2013
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश इफ्तिखार चौधरी ने राष्ट्रद्रोह के मामले में परवेज मुशर्रफ पर मुकदमा चलाने के लिए स्पेशल ट्रिब्यूनल गठित करने की घोषणा की. अगले ही दिन पीएमएल-एन सरकार ने विशेष अदालत में मुशर्रफ के खिलाफ राष्ट्रद्रोह से जुड़े पांच आरोप लगाए.

12 और 20 दिसंबर 2013
विशेष अदालत ने 12 दिसंबर को राष्ट्रद्रोह के मामले में अदालत में पेश होने का समन भेजा. 20 दिसंबर को परवेज मुशर्रफ ने एक साक्षात्कार में अपने नौ साल के शासनकाल में किसी तरह की गलती होने पर माफी मांगी.

2 जनवरी 2014
दिल से जुड़ी समस्या के चलते मुशर्रफ को अस्पताल में भर्ती कराया गया. उस वक्त वह अदालत में पेशी के लिए आ रहे थे. नतीजतन स्वास्थ्य कारणों को आधार बनाते हुए अदालत ने मुशर्रफ की गिरफ्तारी का वारंट जारी नहीं किया.

7 जनवरी 2014
आर्म्ड फोर्सेस इंस्टीट्यूट ऑफ कार्डियोलॉजी (एएफआईसी) ने परवेज मुशर्रफ की स्वास्थ्य रिपोर्ट अदालत में पेश कर दिल से जुड़े गंभीर रोगों से पीड़ित होने की दलील रखी.

16 जनवरी 2014
सुप्रीम कोर्ट ने एएफआईसी को मेडिकल बोर्ड के गठन के आदेश दिए, जिसे परवेज मुशर्रफ की जांच कर अपनी रिपोर्ट अदालत में पेश करनी थी. बोर्ड ने अंततः मुशर्रफ को गंभीर रूप से बीमार बताते हुए उनके पसंदीदा स्थान पर इलाज कराने की आग्रह रिपोर्ट में किया.

28 जनवरी 2014
अभियोजन पक्ष ने मुशर्रफ की मेडिकल रिपोर्ट पर अविश्वास जताते हुए एआएआईसी के प्रमुख को अदालत में पेश होने का आदेश देने का आग्रह किया ताकि उनसे जवाब-तलब किया जा सके.

7 और 18 फरवरी 2014
विशेष अदालत ने एक बाऱ फिर राष्ट्रद्रोह के मामले में परवेज मुशर्रफ को अदालत में पेश होने को कहा. लगातार 22 बार अदालत में पेशी के आदेश को नजरअंदाज करने के बाद मुशर्रफ 18 को पेश हुए. हालांकि उनके खिलाफ आरोप तय नहीं हो सके, क्योंकि बचाव पक्ष ने कहा कि मुशर्रफ पर सैन्य अदालत में मुकदमा चल सकता है.

21 फरवरी, 30 मार्च 2014
विशेष अदालत ने स्पष्ट किया कि मुशर्रफ पर सैन्य अदालत में मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है. 30 मार्च को मुशर्रफ को राष्ट्रद्रोह का दोषी माना गया, लेकिन पूर्व जनरल ने आरोपों से सिरे से इंकार किया.

अप्रैल 2014
पीएमएल-एन सरकार ने शरजाह में उपचाररत परवेज मुशर्रफ की बीमार मां को पाकिस्तान एयर लिफ्ट करने का प्रस्ताव दिया. इसके साथ ही सरकार ने मुशर्रफ का नाम एसीएल से हटाने का आग्रह ठुकराया. अदालत में बीमार मां को देखने के लिए परवेज मुशर्रफ को विदेश जाने की अनुमति देने की मांग की गई.

7 अप्रैल 2014
पाकिस्तान सैन्य प्रमुख जनरल राहिल शरीफ ने मुशर्रफ के राष्ट्रद्रोह के मामले पर पहली बार मुंह खोला और कहा कि पाकिस्तान सेना को अपना गौरव और संस्थागत अभिमान कहीं ज्यादा प्रिय है.

14 मई सितंबर 2014
संघीय जांच एजेंसी (एफआईए) ने दावा किया कि मुशर्रफ ने 2007 में असंवैधानिक और अवैधानिक तरीके से देश पर आपातकाल थोपा था, इस संदर्भ में जांच एजेंसी के पास अकाट्य सबूत हैं. इसके बाद के घटनाक्रम में मुशर्रफ के वकीलों ने आपातकाल का ठीकरा शौकत अजीज पर फोड़ दिया. इसके अगले माह ही मुशर्रफ के वकीलों ने सभी पर सामूहिक रूप से मुकदमा चलाने का आग्रह किया.

नवंबर 2014
विशेष अदालत ने संघीय सरकार से राष्ट्रद्रोह के मामले में शौकत अजीज, जाहिद हमीद को शामिल करते हुए राष्ट्रद्रोह से जुड़े मामले में नये सिरे से सामूहिक आरोपपत्र दाखिल करने को कहा. इस आरोप पत्र में पूर्व मुख्य न्यायाधीश अब्दुल हमीद डोगर का नाम भी शामिल करने को कहा.

22 दिसंबर 2015
परवेज मुशर्रफ ने एक बार फिर पाला बदलते हुए कहा कि उन्होंने आपातकाल का फैसला तत्कालीन सैन्य प्रुमख जनरल अश्फाक परवेज कियानी समेत कई सैन्य अधिकारियों और नेताओं से सलाह-मशविरा के बाद किया था.

मार्च 2016
परवेज मुशर्रफ ने चिकित्सा के लिए विदेश जाने की अनुमति मांगी. अदालत ने उन्हें विदेश जाने की इजाजत दी. 18 मार्च को अपने 'प्यारे वतन' वापस लौटने के दावे के साथ परवेज मुशर्रफ इलाज के लिए दुबई चले गए. हालांकि नहीं लौटे.

मई 2016
विशेष अदालत ने परवेज मुशर्रफ को भगौड़ा घोषित किया. नवंबर में मुशर्रफ के फार्म हाउस को जब्त कर लिया गया. बाद के घटनाक्रम में मुशर्रफ ने एक और राजनीतिक गठबंधन तैयार किया. अदालत में जज बदले.

मार्च 2018
चीफ जस्टिस मियां साकिब ने मुशर्रफ पर राष्ट्रद्रोह के मुकदमे की फिर से सुनवाई के लिए नई खंडपीठ गठित की. बाद के दिनों में मुशर्रफ और अदालत के बीच लुकाछिपी का खेल चलता रहा. मुशर्रफ ने घर वापसी पर अपनी जान का खतरा बताया. इसके बाद अदालत ने फिर मुशर्रफ के वकीलों से कहा कि वे उन्हें पेश होने के लिए राजी करें.

मार्च 2019
सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रद्रोह के मामले में परवेज मुशर्रफ से विशेष अदालत के समक्ष 2 मई को उपस्थित होने को कहा. इसके साथ ही अदालत ने आगाह किया कि ऐसा नहीं होने पर मुशर्रफ अपने बचाव का अधिकार खो देंगे. इसके बाद के महीनों में एक बार कानूनी पेंच-ओ-खम को मुशर्रफ के वकील आजमाते रहे. इसमें विशेष अदालत के मामले को रद्द करने की याचिका तक शामिल थी. यह अलग बात है कि

17 दिसंबर 2019

अदालत ने मुशर्रफ को राष्ट्रद्रोह के मामले में फांसी की सजा सुना दी.