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पाकिस्तान: इस 'सियासी चाल' से 6 माह और प्रधानमंत्री बने रहेंगे इमरान खान नियाजी?

पाकिस्तानी सेना चाहती थी कि वो पाकिस्तान अमेरिका से संबंध सुधारे. देश श्रीलंका की तरह बर्बाद होने की जगह चीन के कर्ज जाल से बाहर आए. इसके लिए सेना चीन की जगह यूक्रेन से टैंकों का सौदा कर रही थी.

03 Apr 2022, 09:49:57 AM (IST)

highlights

  • इमरान खान की उलटी गिनती शुरू
  • सत्ता में बने रहने का हर सियासी हथकंडा अपना चुका है नियाजी
  • अब 6 महीनों तक सत्ता में रहने का इकलौता बचा रास्ता

नई दिल्ली:

पाकिस्तान (Pakistan) में सियासी लड़ाई सड़क पर तो लंबे समय से है, लेकिन अब इमरान खान 'नियाजी' ने 'आखिरी चाल' चलते हुए युवाओं और देश के नागरिकों से सड़क पर उतरने का आह्वान किया है, और नारा दिया है-'आओ देश बचाएं'. दरअसल, इमरान खान की सत्ता में बने रहने की हर चाल विफल हो चली है. लेटर बम, इंटरनेशनल कॉन्सिपिरेंसी, पाक आर्मी के साथ सौदे बाजी, विपक्ष को धमकाना, अपने सांसदों के खिलाफ कोर्ट में जाना... इसके बाद भी उनकी कुर्सी नहीं बच रही है, तो अब उन्होंने विपक्ष की नकल करते हुए 'देश बचाने के लिए' नागरिकों से सड़कों पर उतरने को कहा है. ऐसा करके उन्होंने नागरिकों-सेना में टकराव का रास्ता खोल दिया है. इमरान खान ने रविवार के दिन पूरे देश में प्रदर्शन की अपील की है. इसका मतलब है, सेना अब तक खुल कर जो इमरान खान (Imran Khan) के खिलाफ नहीं आ रही थी, वो अब इमरान को हटा कर ही मानेगी. यही नहीं, अब इमरान खान नियाजी ऐसी 'सियासी चाल' चलने की कोशिश में है कि कम से कम अगले 6 महीनों तक वो अपनी प्रधानमंत्री पद की कुर्सी बचा ले.

इमरान की खिलाफत में क्यों आई पाकिस्तान सेना?

पाकिस्तान को आधिकारिक तौर पर 14 अगस्त 1947 में आजादी मिली थी. वो आजादी, जिसकी लाज वो कभी नहीं बचा पाई. आधे समय तक पाकिस्तान की सेना ने ही पाकिस्तान पर राज किया है. पाकिस्तान की आधी अर्थव्यवस्था ही पाकिस्तान की सेना (Pakistan Army) चलाती है और जब कोई उस पर लगाम लगाने की कोशिश करता है, तो सेना उस सरकार को ही बदल देती है, या फिर खुद सरकार बन जाती है. इस बार भी इमरान खान की सरकार बनने के पीछे सेना का ही हाथ था. सेना ही आईएसआई (ISI) के जरिए पाकिस्तान की सरकार को चलाती रही है, भले ही मुखौटा सरकार किसी की भी रही हो. लेकिन इमरान खान से सेना पिछले 9 महीनों से नाराज है. इसकी वजह है इमरान खान को खुद को बड़ा दिखाने की कोशिश. वो मौके चाहे तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जे के समय का हो (जब सेना की इच्छा के विरुद्ध ISI चीफ काबुल में दिखे), या सेना की पसंद के आईएसआई चीफ (ISI Chief) को कमान सौंपने से मना करने का मामला (बाद में नियाजी को झुकना पड़ा) या फिर यूक्रेन के हमले के समय रूस में जाकर बैठना (ये ताबूत में आखिरी कील) वो भी उस समय जब सेना चीनी टैंकों की जगह यूक्रेनी टैंक मंगाने की कोशिश कर रही थी और अमेरिका को साधने की कोशिश कर रही थी, उस समय इमरान खान नियाजी रूस पहुंच कर अमेरिका और सेना दोनों को ही चिढ़ाने का काम करते दिखे.

दरअसल, पाकिस्तानी सेना चाहती थी कि वो पाकिस्तान अमेरिका से संबंध सुधारे. देश श्रीलंका की तरह बर्बाद होने की जगह चीन के कर्ज जाल से बाहर आए. इसके लिए सेना चीन की जगह यूक्रेन से टैंकों का सौदा कर रही थी. इसमें अमेरिका की भी मौन सहमति थी. इससे चीन को झटका लगता, लेकिन उसी समय रूस ने यूक्रेन पर हमला बोल दिया और हमले वाले दिन इमरान खान मॉस्को में बैठे मिले. इस वजह से भी इमरान खान पश्चिमी देशों के निशाने पर आ गए. पश्चिमी देश उनसे रूस का खुला विरोध करने को कहने लगे. रूस के खिलाफ पाकिस्तान के वोट न करने से अमेरिका की नाराजगी भी सामने आई और फिर इमरान ने इंटरनेशनल कॉन्सिपिरेंसी में अमेरिका और उसकी चिट्ठी का नाम लेकर खुद का ही काम तमाम कर लिया. जिसके बाद इमरान खान के लिए उलटी गिनती शुरू हो गई. अब इमरान के विकल्प की बात करें तो वो भी तैयार है. क्योंकि पाकिस्तान के अंदर का विपक्ष और उसकी सियासत को मात्र पाकिस्तानी सेना के शतरंग के प्यादों जैसा ही है, इसे ऐसे समझ सकते हैं कि अबतक नवाज शरीफ की दुश्मन रही सेना की तारीफ शरीफ के भाई ही कर रहे हैं और शरीफ की तारीफ सेना. इस बीच शरीफ को भ्रष्टाचार के मामलों से भी क्लीन चिट मिल गई, और नवाज शरीफ (Nawaz Sharif) के भाई की सत्ता में वापसी का रास्ता भी खुल गया.

विपक्ष ने बनाया मजबूत घेरा

बता दें कि इमरान खान के लिए संसद में बहुमत साबित कर पाना अब नामुमकिन हो चला है. विपक्ष लॉन्ग मार्च के जरिए पिछले सालों से लगातार इमरान खान का जीना हराम कर चुका है. संसद में इमरान के सहयोगी भी अब विपक्षी खेमे से मिल चुके हैं, तो अपने सांसद भी उनका साथ छोड़ रहे हैं. आम गणित में इमरान खान पूरी तरह से फेल हो चुके हैं. अविश्वास प्रस्ताव पर बहस चल रही है, तो वोटिंग को रुकवाने के लिए वो जनता से सड़कों पर उतरने का आह्वान कर रहे हैं. इमरान खान अपने सांसदों को चिट्ठी लिख कर ये समझा रहे हैं कि वो वोटिंग वाले दिन संसद पहुंचे ही न, ताकि वोटिंग के लिए जरूरी 'कोरम' ही न पूरा हो सके.

अविश्वास प्रस्ताव से बचने की जुगत लगा रहा नियाजी?

पाकिस्तान में इमरान खान के लिए कुर्सी बचाना कठिन है. मगर सत्तारूढ़ पार्टी ने एक नया रास्ता खोज निकाला है. इस योजना के तहत अब पीएम इमरान खान और सभी एमएनए (नेशनल एसेंबली मेंबर) कल (रविवार) नेशनल असेंबली की कार्यवाही में भाग नहीं लेने वाले हैं. इसके लिए पीएम इमरान खान ने PTI के एमएनए को निर्देश भी दिए थे कि अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान के दिन सभी नेशनल असेंबली (NA) के सत्र में भाग नहीं लेंगे. यह निर्देश दिए गए थे कि मतदान के दिन कोई भी एमएनए संसद भवन में नहीं रहेगा. अगर कोई भी पार्टी अध्यक्ष के निर्देशों का उल्लंघन करता है तो अनुच्छेद-63 (ए) के तहत उसके खिलाफ कार्रवाई होगी. निर्देशों की प्रति बायकदा सभी पीटीआई सांसदों को व्यक्तिगत रूप से भेजी गई थी. इमरान अविश्वास प्रस्ताव का सामना कर रहे हैं. 28 मार्च को नेशनल असेंबली में विपक्ष के नेता शहबाज शरीफ (Shehbaz Sharif) अविश्वास प्रस्ताव को पेश किया था. नेशनल असेंबली में अविश्वास प्रस्ताव पर कल यानि रविवार को मतदान होना है. इमरान खान को सत्ता बचाने के लिए 172 के जादुई आंकड़े को साबित करना है. हालांकि विपक्ष का दावा है कि उसे 175 सांसदों का समर्थन प्राप्त है. लिहाजा पीएम को तुरंत इस्तीफा दे देना चाहिए. 

ऐसे 6 महीनों तक सत्ता में बने रह सकते हैं इमरान खान

इमरान खान ने 'देश बचाने' के नाम पर जनता और सुरक्षा बलों में सीधी भिडंत की योजना तो उजागर कर ही दी है, साथ ही अविश्वास प्रस्ताव से बचने का तरीका भी ढूंढ रहे हैं. हालांकि सेना अपने 'गंदे और दागदार' हाथों को एक बार फिर से न रंगने की कसम न तोड़े तो इमरान खान एक पास एक ही रास्ता है. वो है असेंबली भंग करना. इससे वो अधिक तम 6 महीनों तक और कुर्सी पर रह सकते हैं. लेकिन इसके लिए सेना की कसम भी मायने रखेगी. ऐसा तभी हो सकता है, जब वो असेंबली भंग करने की सिफारिश करें और नए चुनाव की घोषणा हो. ऐसे में वो कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने रह सकते हैं. लेकिन इन 6 महीनों के दौरान वो कुछ कर पाएंगे, इस पर संशय की स्थिति है. क्योंकि सेना ही अगर उन्हें नापसंद कर चुकी है, वो उनके किसी भी काम में सेना वीटो ही करेगी और असहयोग का ही कदम उठाएगी. हालांकि चुनाव के बाद उनकी कुर्सी हमेशा के लिए चली जाएगी, क्योंकि जानकार जानते हैं कि पाकिस्तान (Pakistan) में जीरो सियासी हैसियत वाली इमरान खान की पीटीआई (PTI) को सेना ने ही सत्ता पर लाकर बैठाया था. और सेना के हटाने के बाद उनका साथ देने वाला कोई नहीं होगा.