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पापमोचनी एकादशी के व्रत से मिलती है सभी पापों से मुक्ति, जानें पूजा विधि और शुभ मुहूर्त

इस साल पापमोचिनी एकादशी 7 अप्रैल यानि कि मंगलवार को पड़ा रहा है. हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का खास महत्व है. माना जाता है कि एकादशी के दिन व्रत रहने और पूजा करने से विशेष फल मिलता है.

News Nation Bureau
| Edited By :
05 Apr 2021, 12:53:34 PM (IST)

नई दिल्ली:

इस साल पापमोचनी एकादशी (Papmochani Ekadashi 2021) 7 अप्रैल यानि कि मंगलवार को पड़ा रहा है. हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का खास महत्व है. माना जाता है कि एकादशी के दिन व्रत रहने और पूजा करने से विशेष फल मिलता है. वहीं पापमोचनी एकादशी को शास्त्रों में काफी फलदायी व्रत माना गया है. मान्यता है कि पापमोचनी एकादशी का व्रत करने से हर तरह के संकट दूर हो जाते हैं और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है. इसके अलावा एकादशी व्रत का फल तपस्या के बराबर माना जाता है. पद्मपुराण में कहा गया है जो कोई भी एकादशी का व्रत करता है उस धन, यश, सुख-संपत्ति और वैभव मिलता है. बता दें कि साल में कुल 24 एकादशी पड़ती है, जिसमें पापमोचनी का खास महत्व है.

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पापमोचनी एकादशी शुभ मुहूर्त (Papmochani Ekadashi Shubh Muhurat)

एकादशी तिथि प्रारंभ- 07 अप्रैल 2021 सुबह 02:09 बजे से

एकादशी तिथि समाप्त- 08 अप्रैल 2021 को सुबह 02:28 बजे तक

व्रत पारण का समय- 8 अप्रैल दोपहर 01:39 से शाम 04:11

पापमोचनी एकादशी की पूजा विधि

सबसे पहले एकादशी के दिन सुबह स्नान कर के साफ-सुथरे कपड़े पहन लें. इसके बाद मंदिर में भगवान विष्णु को प्रणाम कर के उनके सामने व्रत का संकल्प लें. फिर विष्णु जी को पीले रंग के वस्त्र, मिठाई और फूल अर्पित करें. अब भगवान विष्णु को चंदन लगा कर हल्दी में रंगा हुआ यज्ञोपवीत और तुलसी चढ़ाएं. इन सब के बाद पूरे विधि विधान और मंत्रोंच्चारण के साथ विष्णु जी की पूजा करें. इसके अलावा पीले आसन पर बैठकर भगवत कथा का पाठ या विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें. भगवान विष्णु की आरती करना न भूलें.

पापमोचनी एकादशी (Papmochani Ekadashi) के दिन इन बातों का रखें ध्यान

- एकादशी के दिन सात्विक आहार लें.

- एकादशी व्रत के दिन लहसन, प्याज और नॉनवेज खाने से दूर रहें.

- शाम के समय भगवान विष्‍णु की आरती उतारने के बाद फलाहार ग्रहण करें.

- रात्रि के समय सोए नहीं बल्‍कि भजन-कीर्तन करते हुए जागरण करें.

- व्रत के अगले दिन सुबह किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं और यथा-शक्ति दान-दक्षिणा देकर विदा करें.

- इसके बाद भोजन ग्रहण कर व्रत का पारण करें.