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Holi 2019: इस बार होली पर बन रहे हैं दुर्लभ संयोग, ऐसा करेंगे तो जीवन में भर जाएंगे खुशियों के रंग

करीब सात साल बाद देवगुरु बृहस्पति के उच्च प्रभाव में इस बार गुरुवार को होली मनेगी.

News Nation Bureau
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19 Mar 2019, 12:29:21 PM (IST)

नई दिल्‍ली:

करीब सात साल बाद देवगुरु बृहस्पति के उच्च प्रभाव में इस बार गुरुवार को होली मनेगी. इससे न केवल लोगों के मान-सम्मान व पारिवारिक सुख में वृद्धि होगी बल्‍कि आत्मसम्मान और उन्नति भी होगा. इतना सबकुछ इसलिए मिलेगा क्‍योंकि होलिका दहन पर इस बार दुर्लभ संयोग बन रहे हैं. इन संयोगों के बनने से कई अनिष्ट दूर होंगे.  रंगों का त्योहार होली (Holi) इस बार चैत कृष्ण प्रतिपदा गुरुवार 21 मार्च को मनेगा. 20 मार्च को होलिका दहन होगा.  

ज्‍योतिष गुरु दिनेश पांडेय के अनुसार इस बार होली उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र, जो कि सूर्य का है, इसलिए यह आत्मसम्मान, उन्नति, प्रकाश आदि दिलाएगा. इससे वर्षभर सूर्य की कृपा मिलेगी. जब सभी ग्रह सात स्थानों पर होते हैं, वीणा योग का संयोग बनता है. ऐसी स्थिति से गायन-वादन व नृत्य में निपुणता आती है.  होलिका दहन इस बार पूर्वा फाल्गुन नक्षत्र में है. यह शुक्र का नक्षत्र है जो जीवन में उत्सव, हर्ष, आमोद-प्रमोद, ऐश्वर्य का प्रतीक है. होलिका दहन में जौ और गेहूं के पौधे डालते हैं. फिर शरीर में उबटन लगाकर उसके अंश भी डालते हैं. ऐसा करने से जीवन में आरोग्यता और सुख समृद्धि आती है.

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होलिका दहन के लिए लगभग एक महीने पहले से तैयारियां शुरू कर दी जाती हैं. कांटेदार झाड़ियों या लकड़ियों को इकट्ठा किया जाता है फिर होली वाले दिन शुभ मुहूर्त में होलिका का दहन किया जाता है.  घर में सुख-शांति, समृद्धि, संतान प्राप्ति आदि के लिए महिलाएं इस दिन होली की पूजा करती हैं.

भद्रा काल
20 मार्च की सुबह 10:45 बजे से रात 8:58 बजे तक भद्रा काल रहेगा. इस समय शुभ कार्य वर्जित है.

पूर्णिमा तिथि
आरंभ 10:44 (20 मार्च)
समाप्त- 07:12 (21 मार्च)

होलिका दहन

रंग धुरेड़ी से एक दिन पूर्व 20 मार्च की

रंग धुरेड़ी

21 मार्च को होली पर माता-पिता समेत सभी बड़े लोगों के पैरों में रंग लगाकर आशीर्वाद लें. इससे प्रेम बढ़ता है.

होलिका से जुड़ी प्रह्लाद की कहानी

होलिका दहन को हिरण्यकश्यप के वध के साथ जोड़कर देखा जाता है. वही होलिका दहन में उपलों के साथ छोटे उपले धागे मे पिरोकर जलाया जाता है, इसके पीछे धार्मिक मान्यता है कि हिरण्यकश्यप का वध भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार में किया था.उपले को गोल बनाकर सुदर्शन का रूप दिया जाता है, साथ ही धागा प्रह्लाद की रक्षा के बांधा जाता है, छोटे उपलों की माला जलाई जाती है, होलिका दहन का पर्व मनाया जाएगा.

अच्छी फसल की प्रार्थना
इस पर्व में एरंड या गूलर की टहनी को जमीन में गाड़कर उस पर लकड़ियां सूखे उपले, चारा डालकर इसे जलाया जाता है. इस दिन सभी लोग होली दहन के दौरान चारों ओर एकत्रित होकर इसकी परिक्रमा करते हैं. होली में जौ की बालियां भूनकर खाने की परंपरा है. अच्छी फसल के लिए भगवान से प्रार्थना करते है.

वातारण के लिए उत्तम
होली के अलाव की राख में औषधि गुण पाए जाते हैं, इसलिए लोग होली के कंडे घर ले जाकर उसी से घर में गोबर की घुघली जलाते हैं. वही होलिका दहन में छोटे उपले जलाने के पीछे पर्यावरण सरक्षण और प्राणवायु बचाने का भी मकसद है, उपलों का धुंआ प्रदूषण नही फैलाता है, हल्का होने के कारण प्राणवायु यानी ऑक्सीजन को भी बचाता है,साथ ही होलिका दहन में लकड़ी के उपयोग से पर्यवारण को नुकसान होता है उससे बचा जाता है.