घर-घर में विराजेंगे 'गणेश', जानें क्यों कहते हैं उन्हें 'गजानन'
25 अगस्त से हर घर में गजानन जी पधारने आ रहे है जो पूरे दस दिन तक अपने भक्तों पर अपर कृपा बरसायेंगे। गणेश चतुर्थी का यह त्योहार भारत के विभिन्न भागों में मनाया जाता है लेकिन महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा धूमधाम से मनाया जाता है।
highlights
- 25 अगस्त से पूरे भारत में मनाया जायेगा गणेश चतुर्थी
- उन्हें ' मोदक प्रिय' भी कहा जाता है।
- भक्त अपने घरों में भी गणेश जी को विराजमान करते है।
नई दिल्ली:
25 अगस्त से हर घर में गजानन जी पधारने आ रहे है जो पूरे दस दिन तक अपने भक्तों पर अपार कृपा बरसायेंगे। गणेश चतुर्थी का यह त्योहार भारत के विभिन्न भागों में मनाया जाता है लेकिन महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा धूमधाम से मनाया जाता है।
पुराणों के अनुसार गणेश चतुर्थी के दिन गणेश जी का जन्म हुआ था। बताया जाता है कि माता पार्वती ने अपने शरीर के उबटन के मैल से गणेश जी प्रतिमा बनाकर उनका निर्माण किया था।
गणेश चतुर्थी पर एक ओर जहाँ पंडालों में उनकी बड़ी-बड़ी प्रतिमा की स्थापना करते है वहीं दूसरी ओर भक्त अपने घरों में भी गणेश जी को विराजमान करते है।
इसके बाद 10वें दिन पूरे गाजे-बाजे के साथ भक्त उन्हें नदी या तालाब में विसर्जित करते है। माना जाता है कि गणेश जी पूरे दस दिन अपने माता-पिता से दूर रहते है और फिर वह दस दिन बाद उनके पास लौटते है।
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क्यों पड़ा 'गजानन नाम'
गणेश जी के एक नहीं कई नाम है लेकिन गजानन नाम के पीछे एक अलग ही किस्सा जुड़ा हुआ है। एक बार माता पार्वती स्नान करने जा रही थी और उन्होंने गणेश को आदेश दिया जब तक वह स्नान करके न लौट आए तब वह दरवाजे पर पहरा दे और किसी को भी अंदर नहीं आने दे।
लेकिन तभी भगवान शिव वहां आ गए और गणेश ने उन्हें अंदर जाने से रोका। भगवान गणेश और शिव के बीच इस बात को लेकर काफी विवाद हुआ और क्रोध में आकर भगवान शिव ने उनका सिर काट दिया।
इसके बाद माता पार्वती जब स्नान कर के लौटी और ये भयाभय दृश्य देखा तो उनका अलग ही रौद्र रूप नज़र आया। जिसके बाद सभी देवों ने मिलकर इस समस्या का समाधान खोजा और एक हाथी का सर लाकर गणेश जी के धड़ से जोड़ का उन्हें नया जीवन दिया उसके बाद ही माता पार्वती का क्रोध शांत हुआ। तब से ही गणेश जी को 'गजानन' भी कहने लगे।
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गणेश जी को 'बुद्धि' के देव भी कहते है साथ ही उन्हें सभी देवों से पहले पूजने के साथ ही हर शुरुआती काम में पूजने की भी मान्यता प्रचलित है। गणेश जी का सबसे पसंदीदा भोग 'बूंदी के लड्डू' और 'मोदक' है लेकिन सबसे ज्यादा उन्हें 'मोदक' भाता है इसलिए उन्हें ' मोदक प्रिय' भी कहा जाता है।
तो इसबार आप भी जब उन्हें अपने घर में लाये तो उससे पहले 'मोदक' का प्रसाद बनाना न भूलें हालांकि आजकल बाज़ारों में भी अब अलग-अलग तरीकों के मोदक मौज़ूद है। मोदक का भोग और सच्ची भक्ति के साथ गणेश जी का स्वागत करिये और उनकी कृपा का पात्र बनिए और अपनी हर मनोकामना को पूर्ण कीजिये ।
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