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Independence Day 2021: क्या है दिल्ली षडयंत्र केस, मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज से इसका क्या है नाता?

Independence Day 2021: सरकार की जन-विरोधी कानूनों और गलत नीतियों का विरोध करना अंग्रेजों के कानून की नजर में अपराध था. ऐसे ही एक घटना दिल्ली में घटी, इतिहास में जिसे हम दिल्ली षडयंत्र केस के नाम से जानते हैं.

12 Aug 2021, 01:24:33 PM (IST)

highlights

  • 8 मई 1915 को मास्टर अमीर चंद, भाई बालमुकुंद, मास्टर अवध बिहारी को फांसी दी गई
  • मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज जहां पर स्थित है वह परिसर पहले दिल्ली की पुरानी जेल थी
  • लार्ड हार्डिंग का शाही जुलूस चाँदनी चौक पहुंचने पर बसंत कुमार विस्वास ने बम से हमला किया था  

नई दिल्ली:

Independence Day 2021: स्वतंत्रता संग्राम की चर्चा के दौरान हम अक्सर 'दिल्ली षडयंत्र केस' 'लाहौर षडयंत्र केस' 'मेरठ षडयंत्र केस'  और 'अलीपुर षडयंत्र केस' के नाम सुनते हैं. ऐसे में मन में यह जिज्ञासा होती है कि ये षडयंत्र केस क्या हैं? दरअसल पराधीन भारत में देश के सपूतों का हर कार्य ब्रिटिश हुकूमत की नजर में  षडयंत्र माना जाता था. सरकार की जन-विरोधी कानूनों और गलत नीतियों का विरोध करना अंग्रेजों के कानून की नजर में अपराध था. ऐसे ही एक घटना दिल्ली में घटी, इतिहास में जिसे हम दिल्ली षडयंत्र केस के नाम से जानते हैं.

दिल्ली षडयंत्र केस का संबंध ब्रिटिश भारत की राजधानी का कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरण से है. राजधानी परिवर्तन के समय दिल्ली में कई दिनों तक भव्य आयोजन हुआ. देश-विदेश से मेहमानों को बुलाया गया. इस दौरान ब्रिटिश सरकार ने पानी की तरह पैसे को बहाया. ऐसा तब किया जा रहा था जब देश की अधिकांश जनता पाई-पाई को मोहताज थी. सरकार के इस कदम से पंजाब और बंगाल के क्रांतिकारियों और बुद्धिजीवियों में  खासा रोष व्याप्त हो गया था और उसकी  प्रतिक्रिया 23 दिसंबर 1912  को दिल्ली में वायसराय लार्ड हार्डिंग पर बम फेंकने के रूप में हुई. बंगाल के जाने-माने क्रांतिकारी रासबिहारी बोस को इस षड्यन्त्र का प्रणेता माना जाता है.

चाँदनी चौक में ही जुलूस पर बम फेंका गया था

दिल्ली दरबार के बाद वायसराय लॉर्ड हार्डिंग की दिल्ली में सवारी निकाली जा रही थी. काफी संख्या में घोड़े, हाथी, तथा बन्दूकों और राइफलों से सुसज्जित कई सैनिक उनके इस काफिले का हिस्सा थे. लार्ड हार्डिंग एक हाथी पर बैठे हुए थे. उनके ठीक आगे उनकी पत्नी, लेडी हार्डिंग बैठी थी. हाथी चलाने वाले एक महावत के अतिरिक्त उस हाथी पर सबसे पीछे लार्ड हार्डिंग का एक अंगरक्षक भी सवार था.

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दिल्ली को चांदनी चौक का क्षेत्र आमतौर पर अक्सर भीड़-भाड़ वाला है. पहले भी यहां अक्सर भीड़ रहती थी. लार्ड हार्डिंग का शाही जुलूस जब चाँदनी चौक पहुंचा, तो ये दृश्य देखने के लिए भारी भीड़ उमड़ पड़ी. कई महिलाएं चौक पर स्थित एक भवन से यह दृश्य देख रही थी. बसन्त कुमार विश्वास ने भी एक महिला का वेश धारण किया और इन्हीं महिलाओं की भीड़ में शामिल हो गया. और मौक़ा पाते ही वायसराय पर बम फेंक दिया. बम फटते ही वहां ज़ोरदार धमाका हुआ, और पूरा इलाका धुंए से भर गया. वाइसराय बेहोश होकर एक तरफ को जा गिरे.  बम के छर्रे लगने की वजह से लॉर्ड हार्डिंग की पीठ, पैर और सिर पर काफी चोटें आयी थी. उनके कंधों पर भी मांस फट गया था. लेकिन, घायल होने के बावजूद, वाइसराय जीवित बच गए थे, हालांकि इस हमले में उनका महावत मारा गया था. बम फटने से घबराकर भीड़ तितर-बितर हो गयी, और इसी का फायदा उठाकर विश्वाश और उनके साथ अन्य क्रांतिकारी वहां से बच निकले.

क्रांतिकारियों की कैसे हुई गिरफ्तारी

वायसराय के जुलूस में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम थे लेकिन क्रांतिकारी वहां से भागने में सफल रहे. पुलिस ने इलाके की घेराबन्दी कर कई लोगों के घरों की तलाशी भी ली, लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ. बिस्वास पुलिस से बचकर बंगाल पहुँच गए थे.  26 फ़रवरी 1914 को अपने पैतृक गाँव परगाछा में अपने पिता की अंत्येष्टि करने आये बसंत को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. इसके बाद कलकत्ता के राजा बाजार इलाके में एक घर की तलाशी लेते हुए ब्रिटिश अधिकारियों को अन्य क्रांतिकारियों से संबंधित कुछ सुराग हाथ लगे. इन्हीं सुरागों के आधार पर मास्टर अमीर चंद, अवध बिहारी और भाई बालमुकुंद को भी गिरफ्तार कर लिया गया. कुल 13 लोगों को इस मामले में गिरफ्तार किया गया था.  

दिल्ली के पुराने जेल में लगभग 15 देशभक्तों को फांसी  

साल 1912 में दिल्ली में हुए लॉर्ड हार्डिंग बम कांड में 8 मई 1915 को मास्टर अमीर चंद, भाई बालमुकुंद, मास्टर अवध बिहारी को यहां फांसी दी गई. जबकि 11 मई 1915 को अम्बाला की सेंट्रल जेल में बसंत कुमार विश्वास को भी फांसी दे दी गयी.  31 मार्च 1916 को हवलदार जलेश्वर सिंह को सजा-ए-मौत दी गई. हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी के सदस्य मंसा सिंह को 6 अप्रैल 1931 और संपादक अलामन हत्या प्रकरण में शफीक अहमद को 20 मई 1940 को सूली पर चढ़ाया गया. इसके अलावा, शत्रु अभिकर्ता अधिनियम (आईएनए) के अंतर्गत छत्तर सिंह, नजर सिंह, अजायब सिंह, सतेंद्र नाथ मजूमदार, जहूर अहमद और दरोगा मल को वर्ष 1944 फांसी दी गई. केशरीचंद्र शर्मा को 3 मई 1945 को सरेआम फांसी दी गई थी. आज मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज जहां पर स्थित है वह परिसर पहले दिल्ली की पुरानी जेल थी. जेल में हार्डिंग बम कांड के शहीदों का स्मारक बना है. मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज में सभी क्रांतिकारियों को समर्पित एक स्मारक उपस्थित है.