जानिए क्या है धारा 35-ए, जम्मू-कश्मीर से दिल्ली तक क्यों हो रहा इसका विरोध
6 अगस्त को 35-ए को भंग करने के संदर्भ में दायर जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होने वाली है। वहीं कश्मीर के सभी संगठन इसके संवैधानिक प्रावधान को बनाए रखना चाहते हैं।
नई दिल्ली:
कश्मीर में धारा 35-ए के मुद्दे को लेकर घाटी के 27 व्यापारिक संगठनों ने केंद्र सरकार को गंभीर परिणामों की चेतावनी देते हुए पांच-छह अगस्त के दो दिवसीय कश्मीर बंद के एलान का समर्थन किया है।
बता दें कि 6 अगस्त को 35-ए को भंग करने के संदर्भ में दायर जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होने वाली है। वहीं कश्मीर के सभी संगठन इसके संवैधानिक प्रावधान को बनाए रखना चाहते हैं।
इससे पहले जम्मू एवं कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) के चेयरमैन मुहम्मद यासीन मलिक ने शुक्रवार को धारा 35ए के समर्थन में शांतिपूर्ण प्रदर्शन की अगुवाई की। रेसिडेंसी रोड स्थित मस्जिद में जुमे की नमाज अदा करने के बाद, मलिक ने धारा 35ए के समर्थन में प्रदर्शन मार्च की अगुवाई की।
क्या है 35ए
राष्ट्रपति के आदेश के बाद 14 मई 1954 को धारा 35ए प्रकाश में आया था। धारा 35ए राज्य विधानसभा को यह अधिकार देता है कि वह राज्य के स्थायी निवासियों की घोषणा कर सकती है और उनके लिए विशेष अधिकार निर्धारित कर सकती है।
यह अनुच्छेद 14 मई 1954 से जम्मू-कश्मीर में लागू है। तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के आदेश पर यह अनुच्छेद पारित हुआ था।
सर्वोच्च न्यायालय में इस धारा की वैधता को चुनौती दी गई है। याचिका में धारा को रद्द करने की मांग की गई है, सुप्रीम कोर्ट में इस याचिका पर 6 अगस्त को सुनवाई होगी।
धारा को निरस्त करने की क्यों कर रहे हैं मांग
इस धारा को निरस्त करने की मांग करने वालों का कहना है कि धारा 368 के तहत संविधान संशोधन के लिए नियत प्रक्रिया का पालन करते हुए इसे संविधान में नहीं जोड़ा गया था।
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अनुच्छेद 35A, धारा 370 का ही हिस्सा है। इस धारा की वजह से कोई भी दूसरे राज्य का नागरिक जम्मू-कश्मीर में संपत्ति नहीं खरीद सकता है और ना ही वहां का स्थायी नागरिक बन सकता है।