नागरिकता संशोधन बिल पारित हुआ तो देश छोड़ने पर करेंगे विचार: अखिल गोगोई
असम में इस बिल का विरोध करने वाले आरटीआई कार्यकर्ता अखिल गोगोई के अलावा प्रोफेसर हीरेन गोहैन और पत्रकार मंजीत महंता के खिलाफ देशद्रोह का भी केस दर्ज हो चुका है.
गुवाहाटी:
असम के प्रसिद्ध आरटीआई कार्यकर्ता और कृषक मुक्ति संग्राम समिति (केएमएसएस) के अध्यक्ष अखिल गोगोई ने रविवार को कहा कि अगर असम के लोगों को उचित सम्मान नहीं दिया जाता है और नागरिकता संशोधन बिल पारित हो जाता है तो हमें सरकार को यह कहने का साहस दिखाना चाहिए कि हम भारत में नहीं रहने पर विचार कर सकते हैं. रविवार को असम के तिनसुकिया जिले के पानीटोला में एक प्रदर्शन रैली को संबोधित करते हुए गोगोई ने कहा, 'अगर सरकार हमें सम्मान देती है तो हम देश के साथ हैं लेकिन अगर असम के स्थानीय लोगों के भावनाओं की उपेक्षा की जाती है और बिल पारित होता है तो हर असमवासी को यह कहने का साहस होना चाहिए कि वह भारत का हिस्सा नहीं होंगे.'
नागरिकता संशोधन बिल के खिलाफ असम, मणिपुर, मेघालय और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में पिछले कई महीनों से एक बड़ा तबका प्रदर्शन कर रहा है. कृषक मुक्ति संग्राम समिति (केएमएसएस) की अगुआई में 70 अन्य संगठन राज्य के विभिन्न हिस्सों में नागरिकता संशोधन बिल का विरोध कर रहे हैं.
कई जगहों पर इस विरोध प्रदर्शन की अगुआई कर रहे गोगोई ने कहा, 'हम साफ कर देना चाहते हैं कि अगर जरूरत और स्थिति पैदा होती है असम को यह कहना चाहिए कि वे भारत के साथ रहने को तैयार नहीं हैं. अगर सरकार हमारा सम्मान करती है तो भारत के साथ रहेंगे नहीं तो हम साथ छोड़ देंगे.'
7 जनवरी को बिल के विरोध में राज्य भर में 'काला दिवस' मनाया गया था. इनका कहना है कि यह विधेयक 1985 के असम समझौते को अमान्य करेगा जिसके तहत 1971 के बाद राज्य में प्रवेश करने वाले किसी भी विदेशी नागरिक को निर्वासित करने की बात कही गई थी, भले ही उसका धर्म कोई भी हो.
असम में इस बिल का विरोध करने वाले आरटीआई कार्यकर्ता अखिल गोगोई के अलावा प्रोफेसर हीरेन गोहैन और पत्रकार मंजीत महंता के खिलाफ देशद्रोह का भी केस दर्ज हो चुका है. गोहैन गुवाहाटी विश्वविद्यालय के रिटायर्ड प्रोफेसर और मशहूर साहित्यकार हैं वहीं महंता असम के एक दैनिक अखबार के पूर्व एक्जिक्युटिव एडिटर और स्तंभकार हैं.
राजनीतिक पार्टियों का भी जारी है विरोध
इस विधेयक को लोकसभा में पारित किया जा चुका है लेकिन राजनीतिक दलों के विरोध की वजह से राज्यसभा में इसे पारित नहीं किया जा सका था. कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, माकपा समेत कुछ अन्य पार्टियां भी लगातार इस विधेयक का विरोध कर रही हैं. उनका दावा है कि धर्म के आधार पर नागरिकता नहीं दी जा सकती है क्योंकि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है.
असम में बीजेपी की सहयोगी एजीपी (असम गण परिषद) इसी मुद्दे पर राज्य में समर्थन वापस ले लिया था और सरकार से बाहर हो गई थी. वहीं अब बिहार में बीजेपी की सहयोगी जनता दल (यूनाइटेड) ने भी राज्यसभा में इस विधेयक का विरोध करने की बात कही है.
और पढ़ें : सपने दिखाने वाले नेता अगर इसे पूरा नहीं करते तो जनता उनकी पिटाई भी करती है: नितिन गडकरी
हालांकि अभी हाल ही में गृह मंत्रालय ने कहा था कि बिल के पारित होने के बाद किसी भी विदेशी को राज्य सरकार की सहमति के बाद ही नागरिकता मंजूर की जाएगी. गृह मंत्रालय के प्रवक्ता अशोक प्रसाद ने कहा कि भारतीय नागरिकता के लिए सभी आवेदन की जांच उपायुक्त या जिलाधिकारी के द्वारा होगी जो बाकी कामों को पूरा करने के बाद इसे राज्य सरकार को सौंपेंगे.
क्या है नागरिकता संशोधन बिल
लोकसभा में पारित हो चुका यह विधेयक हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी व ईसाइयों को, जो पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश से बिना वैध यात्रा दस्तावेजों के भारत पलायन कर आए हैं, या जिनके वैध दस्तावेजों की समय सीमा हाल के सालों में खत्म हो गई है, उन्हें भारतीय नागरिकता प्राप्त करने के लिए सक्षम बनाता है.
और पढ़ें : सबरीमाला मुद्दे ने दिखाया कैसे लेफ्ट सरकार ने केरल की संस्कृति का अपमान किया : पीएम मोदी
नया विधेयक नागरिकता कानून 1955 में संशोधन के लिए लाया गया है. यह विधेयक कानून बनने के बाद, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के मानने वाले अल्पसंख्यक समुदाय को 12 साल के बजाय छह साल भारत में गुजारने पर और बिना उचित दस्तावेजों के भी भारतीय नागरिकता प्रदान करेगा.