मुठभेड़ से बौखलाए आतंकियों ने जम्मू-कश्मीर में 12 दिनों में की तीन सरपंचों की हत्या
सरकार की लाख कोशिशों के बाद भी जम्मू-कश्मीर में आतंकी वारदात रुकने का नाम नहीं ले रही है. आए दिन भारतीय सेना और आतंकियों के बीच होने वाले मुठभेड़ के बावजूद आतंकी घाटी में लोकतंत्र की जड़ पर प्रहार करने लगे हैं.
highlights
- पंच-सरपंच की सुरक्षा पर उठे सवाल
- हत्या की एनआईए से जांच की मांग
- वारदात से सरपंच और पंचों में खौफ
नई दिल्ली:
सरकार की लाख कोशिशों के बाद भी जम्मू-कश्मीर में आतंकी वारदात रुकने का नाम नहीं ले रही है. आए दिन भारतीय सेना और आतंकियों के बीच होने वाले मुठभेड़ के बावजूद आतंकी घाटी में लोकतंत्र की जड़ पर प्रहार करने लगे हैं. घाटी में लोकतंत्र और भारतीय संविधान के रक्षक समझे जाने वाले पंच और सरपंचों को आतंकी अपना निशाना बनाने लगे हैं. बीते 12 दिनों में कश्मीर में 3 पंचायत प्रतिनिधियों को आतंकी मौत के घाट उतार चुके हैं. घाटी में चुनाव की आहट के साथ ही इस तरह की और भी घटनाएं होने की आशंका जताई जा रही है. गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर में परिसीमन की प्रक्रिया अब समाप्त होने वाली है और यहां चुनावों का ऐलान हो सकता है. संभावना जताई जा रही है कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश के साथ ही जम्मू-कश्मीर में भी चुनाव कराए जा सकते हैं.
समीर अहमद बट 8 मार्च की दोपहर के श्रीनगर से खानमोह अपने घर पहुंचे थे. उसी दिन शाम को उसके पड़ोसी साकिब अपने एक दोस्त के साथ उससे मिलने आया. उनसे मिलने के लिए जैसे ही समीर कमरे से बाहर आंगन में आए, तो साकिब और उसके दोस्त ने उनके सीने में दो गोलियां दाग दी. इसके बाद दोनों आतंकी फरार हो गए है. समीर अपने गांव का सरपंच था. इस घटना के दो दिन बाद ही शुक्रवार की रात को दक्षिण कश्मीर के आडूरा में भी लगभग इसी तरह की एक घटना घटी. यहां सरपंच शब्बीर अहमद की गोली मार कर हत्या कर दी गई. गौरतलब है कि पिछले 12 दिनों के भीतर कश्मीर में तीन पंचायत प्रतिनिधियों को आतंकी मौत के घाट उतार चुके हैं. हालात को भांपते हुए सुरक्षा एजेंसियों ने भी पंचायत प्रतिनिधियों की सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा नए सिरे से शुरू कर दी है. आइजी कश्मीर विजय कुमार ने खुद शनिवार को कुलगाम में एक उच्चस्तरीय बैठक में पंच-सरपंचों के सुरक्षा कवच को मजबूत बनाने की रणनीति तैयार की. पंच-सरपंचों की सुरक्षा के लिहाज से क्या करें और क्या न करें, सभी सावधानियों के साथ उनके लिए एक एसओपी भी जारी कर दी गई है.
पंचों-सरपंचों की हत्या पर उमर अब्दुल्ला उठाए सवाल
जम्मू-कश्मीर में एक के बाद एक पंच और सरपंचों की हो रही हत्या पर पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह ने कड़ी नाराजगी जाहिर की है. उन्होंने कहा कि जब कोई राजनीतिक कार्यकर्ता की हत्या होती है तो हम संवेदना-शोक प्रकट कर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर लेते हैं. इसके चंद दिन बाद दोबारा हत्या होती है और हम अफसोस जताकर रह जाते हैं. लेकिन, यहां हालात में कुछ बदलाव नहीं आता है. उन्होंने कहा कि हिंसा का यह दुष्चक्र घाटी में बीते 32 साल से यूं ही जारी है. जमीनी स्तर पर लोकतंत्र को मजबूत बनाने और भारतीय संविधान की मशाल यही लोग उठाए रखते हैं, लेकिन सबसे ज्यादा उनकी ही सुरक्षा के साथ खिलवाड़ किया जाता है.
चुनाव को विफल करने की है आतंकी साजिश
गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर के आतंकी और अलगाववादी हमेशा से ही लोकतंत्र की मजबूती और चुनावों के खिलाफ रहे हैं. दरअसल, चुनावों में आम लोगों की भागीदारी से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कश्मीर पर भारत के रुख को मजबूती मिलती है. इसके साथ ही कश्मीर के लिए पाकिस्तान की ओर से चलाए जाने वाले तथाकथित आजादी के एजेंडे की पोल खुल जाती है . लिहाजा, जब भी कश्मीर में चुनाव होते हैं तो पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई कश्मीर में सक्रिय आतंकवादियों और अलगाववादियों को पहला फरमान चुनाव बहिष्कार को सुनिश्चित बनाने का सुनाती है. इसके साथ ही आतंकियों द्वारा विभिन्न राजनीतिक दलों से जुड़े नेताओं और कार्यकर्ताओं के अलावा पंच-सरपंचों को निशाना बनाने, उन्हें धमकाने का सिलसिला शुरू हो जाता है. वादी में बीते दो-तीन वर्ष के दौरान लगभग दो दर्जन पंचायत प्रतिनिधियों को आतंकियों ने मौत के घाट उतारा है.
एनआईए को सौंपी जाएगी जांच
एक के बाद एक पंच और सरपंचों की हो रही हत्या के बाद ऑल जम्मू कश्मीर पंचायत कांफ्रेंस के चेयरमैन अनिल शर्मा ने मांग की है कि 2011 से लेकर अब तक हुई पंचायत प्रतिनिधियों की हत्याओं की जांच एनआईए को सौंपी जानी चाहिए. उन्होंने कहा कि पंच-सरपंच सबके सामने कत्ल होते हैं, लेकिन कोई आतंकी नहीं पकड़ा जाता है. पंच-सरपंच और उनके परिवार इन आतंकी हमलों से डरे सहमे रहते हैं. गौरतलब है कि घाटी में पंच-सरपंचों पर बढ़ रही आतंकी घटनाओं को देखते हुए कई पंचायत प्रतिनिधियों पर उनके परिवार वाले इस्तीफा देने का दबाव बना रहे हैं. उन्होंने कहा केंद्र सरकार पर प्रहार करते हुए कहा कि अगर ऐसी ही हालत रही तो जम्मू-कश्मीर में पंचायत चुनावों की सफलता का जो ढोल बजाया जा रहा है, वह पूरी तरह फट जाएगा. उन्होंने कहा कि इसका असर आने वाले वक्त में जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनावों पर भी होगा.