ट्रिपल तलाक का मुद्दा बीजेपी के सत्ता में आने के बाद कैसे बन गया अहम, जानिए
तीन तलाक का मुद्दा बीजेपी ने अपने घोषणा पत्र में शामिल किया था और सरकार बनने के बाद ही वह इस मुद्दे को लगातार उठाती रही।
highlights
- तीन तलाक के मुद्दे पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला आ सकता है
- तीन तलाक का मुद्दा पिछले कई वर्षों से समय-समय पर उठता रहा है
- 2014 में बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए के केंद्र में आने के बाद इसके खिलाप आवाज तेज होने लगी थी
नई दिल्ली:
तीन तलाक के मुद्दे पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला आ सकता है। तीन तलाक का मुद्दा पिछले कई वर्षों से समय-समय पर उठता रहा है। लेकिन 2014 में बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए के केंद्र में आने के बाद से यह मुद्दा और चर्चित हो गया और इस व्यवस्था को खत्म करने की आवाज तेज होने लगी थी।
तीन तलाक का मुद्दा बीजेपी ने अपने घोषणा पत्र में शामिल किया था और सरकार बनने के बाद ही वह इस मुद्दे को लगातार उठाती रही। सरकार की तरफ से कहा गया था, 'ट्रिपल तलाक के प्रावधान को संविधान के तहत दिए गए समानता के अधिकार और भेदभाव के खिलाफ अधिकार के संदर्भ में देखा जाना चाहिए।' साथ ही केंद्र ने कहा, 'लैंगिक समानता और महिलाओं के मान सम्मान के साथ समझौता नहीं हो सकता।'
आईए, जानते हैं 2014 के बाद तीन तलाक का मुद्दा कैसे बड़ा होता गया
- 2014 के बाद दायर हुई कई याचिका
इंदौर की रहने वाली मुस्लिम महिला शायरा बानों ने तीन तलाक के खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
उत्तराखंड के काशीपुर की शायरा बानो ने 2016 सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर कर एकसाथ तीन तलाक कहने और निकाह हलाला के चलन की संवैधानिकता को चुनौती दी थी।
बानो ने साथ ही मुस्लिमों की बहुविवाह प्रथा को भी चुनौती दी थी। शायरा बानों ने डिसलूशन ऑफ मुस्लिम मैरिजेज ऐक्ट को भी यह कहते हुए चुनौती दी कि मुस्लिम महिलाओं को दो शादियों से बचाने में यह विफल रहा है। शायरा की ओर से दाखिल अर्जी में कहा गया कि इस तरह का तीन तलाक उनके संवैधानिक मूल अधिकार का उल्लंघन करता है और आर्टिकल 14 व 15 का उल्लंघन करता है।
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इसके बाद कई अन्य याचिका दायर की गईं। शायरा बानो के मुकदमे का समर्थन करने कई संगठन सामने आए।
मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की पैरवी करने वाले संगठन भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन (बीएमएमए) ने इस मामले में राष्ट्रीय महिला आयोग का सहयोग मांगा।
बीएमएमए ने महिला आयोग की अध्यक्ष ललिता कुमारमंगलम को लिखे पत्र में कहा कि उसने अपने अभियान के पक्ष में 50,000 से अधिक हस्ताक्षर लिए हैं और सहयोग के लिए अलग-अलग प्रांतों के महिला आयोगों को भी लिख रहा हैं।
राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष ललिता कुमारमंगलम ने कहा कि आयोग सुप्रीम कोर्ट में शायरा बानो के मुकदमे का समर्थन करेगा। देहरादून की रहने वाली शायरा ने 'तीन बार तलाक' के चलन को खत्म करने की सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई है।
सहारनपुर की आतिया साबरी
तीन तलाक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने वाली एक और पिड़िता थी सहारनपुर की आतिया साबरी। अतिया की शादी 2012 में पास के जसोद्दरपुर गांव निवासी सईद हसन के बेटे वाजिद से हुई थी।
अतिया के दो बेटी होने के बाद उनके पति ने कागज पर तीन बार तलाक लिखकर उनसे संबंध खत्म कर लिए थे। मदरसा दारुल उलूम देवबंद ने भी इस तलाक को वैध मानकर फतवा जारी किया था।
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गुरुदास मित्रा की याचिका
इसके बाद गुरुदास मित्रा नाम के एक और व्यक्ति ने याचिका दायर की लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने दायर याचिका का निस्तारण करते हुए कहा, 'यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि लंबित याचिकाओं में आने वाला फैसला मौजूदा याचिका पर भी लागू होगा।'
तीन तलाक बीजेपी का उत्तर प्रदेश में रहा बड़ा मुद्दा
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने ‘तीन तलाक’ का मुद्दा बड़े जोर-शोर से उठाया। जानकारों के मुताबिक इसका फायदा बीजेपी को हुआ जब यूपी चुनाव में बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलाओं का वोट मिला।
इकोनॉमिक एंड पोलिटिकल वीकली में प्रकाशित एक लेख के अनुसार, 2012 के विधानसभा चुनावों में जहां 7% मुस्लिमों ने बीजेपी को वोट दिया तो वहीं 2014 के लोकसभा चुनावों में 10% मुस्लिमों ने भाजपा को वोट दिया। यह आंकड़ा सीएसडीएस-लोकनीति के हवाले से दिया गया है।