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धारा 377 पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, जज ने कहा- LGBT समुदाय को डर के साथ जीना पड़ता है

सुप्रीम कोर्ट भारतीय दंड संहिता की धारा 377 की संवैधानिक वैधता पर तीसरे दिन भी सुनवाई जारी रही।

News Nation Bureau
| Edited By :
12 Jul 2018, 02:40:33 PM (IST)

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट भारतीय दंड संहिता की धारा 377 की संवैधानिक वैधता पर तीसरे दिन भी सुनवाई जारी रही। अदालत भारतीय दंड संहिता की धारा 377 की संवैधानिक वैधता पर सुनवाई कर रही है जो कि समलैंगिक संबंध को अपराध की श्रेणी में रखती है।

इस मामले की सुनवाई प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरीमन, ए. एम. खानविलकर, डी.वाई.चंद्रचूड़ और इंदु मल्होत्रा की पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ कर रही है।

 सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से शामिल वकील अशोक देसाई ने कहा कि भारतीय संस्कृति में समलैंगिकता नया नहीं है। कई देशों ने इसे स्वीकार कर लिया है।

पांच जजों की बेंच में शामिल जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने कहा कि परिवार और सामाजिक दबावों के कारण, (एलजीबीटी समुदाय) को विपरीत लिंग से शादी करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। इसके कारण उन्हें मानसिक आघात पहुंचता है।

जज चंद्रचूड़ ने कहा कि समाज की सोच की वजह से LGBT समुदाय को डर के साथ जीना पड़ता है।

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केंद्र ने SC पर छोड़ा फैसला

Section 377 matter: Justice Chandrachud said 'there is deep rooted trauma involved in the society, which forces the LGBT community to be in fear'

— ANI (@ANI) July 12, 2018

केंद्र ने बुधवार को  समलैंगिक सेक्स को अपराध की श्रेणी में रखने वाला कानून संवैधानिक रूप से उचित है या नहीं, का फैसला सुप्रीम कोर्ट पर छोड़ दिया।

बुधवार को सुनवाई के दूसरे दिन केंद्र ने अपना पक्ष रखा जिसमें इस धारा का न तो समर्थन किया गया और न ही इसका विरोध किया गया।

केंद्र ने साफ स्टैंड नहीं लेते हुए मामले को अदालत के विवेक पर छोड़ दिया। केंद्र ने हालांकि पीठ से आग्रह किया कि उन्हें इस कानून को चुनौती देने के निर्णय को उसी सीमा में ही रखना चाहिए जिसमें ऐसा स्कोप न हो जो एलजीबीटी समुदाय को संपत्ति के अधिकार, नागरिक अधिकार, विवाह, गोद लेना समेत अन्य नागरिक अधिकारों से जुड़े मुद्दों की मांग के लिए प्रेरित करे।

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