प्रशांत भूषण बोले- SC के फैसले का सम्मान करेंगे, 1 रुपये जुर्माना जमा कराएंगे
सुप्रीम कोर्ट द्वारा अवमानना मामले में फैसला सुनाए जाने के बाद वकील प्रशांत भूषण (Prashant Bhushan) ने सोमवार को प्रेस कांफ्रेंस की.
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट द्वारा अवमानना मामले में फैसला सुनाए जाने के बाद वकील प्रशांत भूषण (Prashant Bhushan) ने सोमवार को प्रेस कांफ्रेंस की. इस दौरान प्रशांत भूषण ने कहा कि पहले ही मैंने बोला था जो भी सुप्रीम कोर्ट मेरे खिलाफ फैसला देगा मैं खुशी-खुशी उसे मान लूंगा. मैं सम्मानपूर्वक जुर्माना चुकाऊंगा. साथ ही रिव्यू भी दायर करेंगे यानि इस फैसले को क़ानूनी तौर पर चुनौती भी देंगे. मेरा जो राइट है, उसे मैं करूंगा. और अगर सुप्रीम कोर्ट का कोई और भी फैसला होता तो मैं जरूर मानता. 37 साल से मेरी सुप्रीम कोर्ट के लिए रिस्पेक्ट हमेशा रही है. मेरी ट्वीट न्यायपालिका की गरिमा को गिराने वाले नहीं थे, बल्कि एक आसतोष का प्रतीक थे.
आपको बता दें कि उच्चतम न्यायालय ने अदालत की अवमानना मामले में वकील प्रशांत भूषण पर सोमवार को एक रुपये का जुर्माना लगाया है, जिसे उन्हें 15 सितंबर तक अदा करना होगा. इस मामले का घटनाक्रम इस प्रकार है.
27 जून : भूषण ने भारत में अघोषित आपातकाल और उच्चतम न्यायालय तथा इसके पिछले चार मुख्य न्यायाधीशों की भूमिका को लेकर ट्वीट किया.
29 जून : भूषण ने कोरोना वायरस प्रकोप के दौरान अपने गृह नगर नागपुर में हार्ले डेविडसन मोटर साइकिल पर बैठे प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस ए बोबडे की तस्वीर साझा करते हुए ट्वीट किया.
22 जुलाई : उच्चतम न्यायालय ने एक वकील की शिकायत पर भूषण को नोटिस जारी कर उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू की.
14 अगस्त : उच्चतम न्यायालय ने भूषण को 'न्यायपालिका के खिलाफ' उनके दो ट्वीट के लिए आपराधिक अवमानना का दोषी करार दिया.
24 अगस्त : सजा पर सुनवाई के दौरान भूषण ने उच्चतम न्यायालय से माफी मांगने से इनकार किया.
25 अगस्त : अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने उच्चतम न्यायालय से भूषण को सजा न देने का अनुरोध किया. उच्चतम न्यायालय ने भूषण से दोबारा माफी मांगने के लिए कहा, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया. उच्चतम न्यायालय ने भूषण की सजा पर फैसला सुरक्षित रखा.
31 अगस्त : उच्चतम न्यायालय ने भूषण पर एक रुपये का जुर्माना लगाया, जिसका उन्हें 15 सितंबर तक भुगतान करना होगा. ऐसा न करने पर उन्हें तीन महीने जेल की सजा हो सकती है और तीन साल तक उच्चतम न्यायालय में प्रैक्टिस करने पर रोक लगाई जा सकती है.