यूपी में निस्तेज हुआ कमल, मोदी-योगी पर भारी पड़ी माया-अखिलेश की जोड़ी - अपने ही घर में घिरे योगी
उत्तर प्रदेश की दो लोकसभा सीटों पर हुए उप-चुनाव को अगर अगले लोकसभा चुनाव का ट्रेलर माना जाए तो भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को बड़ा झटका लगा है।
highlights
- उत्तर प्रदेश की दो लोकसभा सीटों पर हुए उप-चुनाव को अगर अगले लोकसभा चुनाव का ट्रेलर माना जाए तो बीजेपी को बड़ा झटका लगा है
- उत्तर प्रदेश की दो लोकसभा सीटों गोरखपुर और फूलपुर पर हुए उप-चुनाव में मोदी-योगी की जोड़ी पर भारी पड़ी माया-अखिलेश की जोड़ी
नई दिल्ली:
उत्तर प्रदेश की दो लोकसभा सीटों पर हुए उप-चुनाव को अगर अगले लोकसभा चुनाव का ट्रेलर माना जाए तो भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को बड़ा झटका लगा है।
उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) सुप्रीमो मायावती और समाजवादी पार्टी (सपा) सुप्रीमो अखिलेश यादव की सियासी जोड़ी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ की जुगलबंदी पर भारी पड़ी है।
फूलपुर लोकसभा सीट पर सपा और बसपा के गठबंधन की जीत की अटकलें लगाई जा रही थी लेकिन योगी आदित्यानाथ के गढ़ गोरखपुर में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) उम्मीदवार उपेंद्र दत्त शुक्ला की लगभग तय माने जाने वाली हार ने अगले आम चुनाव की तैयारियों में जुटी बीजेपी को जोर का झटका दिया है।
योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद गोरखपुर लोकसभा सीट खाली हुई थी जबकि केशव प्रसाद मौर्य के राज्य का उप-मुख्यमंत्री बनने के बाद फूलपुर लोकसभा सीट खाली हुई थी।
यूपी की इन दोनों लोकसभा सीटों पर होने वाले उप-चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी और बसपा ने हाथ मिलाया। फूलपुर से जहां समाजवादी पार्टी ने नागेंद्र प्रताप सिंह पटेल को उम्मीदवार बनाया वहीं बीजेपी ने कौशलेंद्र सिंह पटेल को टिकट दिया।
जबकि योगी का गढ़ माने जाने वाले गोरखपुर लोकसभा सीट से सपा ने जहां प्रवीण कुमार निषाद को उम्मीदवार बनाया वहीं बीजेपी ने उपेंद्र दत्त शुक्ला को टिकट दिया।
बीजेपी ने हालांकि इसे 'स्वार्थ का गठबंधन' बताकर इसके सियासी प्रभाव को कमतर बताने की कोशिश की, लेकिन उसे इसमें कामयाबी नहीं मिल पाई।
इसका अंदाजा राज्य के उप-मुख्यमंत्री और फूलपुर के पूर्व सांसद केशव प्रसाद मौर्य के इस बयान से लगाया जा सकता है। मौर्य ने कहा, 'हमें इस बात का अंदाजा नहीं था कि बीएसपी का वोट, समाजवादी पार्टी को ऐसे ट्रांसफर हो जाएगा।'
उन्होंने कहा, 'हम परिणाम आने के बाद इसका विश्लेषण करेंगे और भविष्य में बीएसपी, एसपी और कांग्रेस के साथ आने की संभावित स्थिति को ध्यान में रखते हुए अपनी रणनीति बनाएंगे।'
दरअसल 2014 के लोकसभा चुनाव में यूपी की कुल 80 सीटों में से कुल 75 सीटों पर एनडीए के कब्जे के बाद बीजेपी को विधानसभा चुनाव में भी जबरदस्त जीत मिली।
विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया लेकिन उसे उम्मीद के मुताबिक कामयाबी नहीं मिल पाई।
इस चुनाव में सपा और कांग्रेस के गठबंधन के साथ बसपा को भी साथ लाने की कोशिश की गई, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया।
लेकिन मौजूदा उप-चुनावों के दौरान अखिलेश को इस दिशा में कामयाबी मिली और बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने साथ आने को मंजूरी दे दी लेकिन इस बार कांग्रेस ने खुद को इस गठबंधन से अलग कर लिया।
कांग्रेस ने जहां फूलपुर से मनीष मिश्रा को अपना उम्मीदवार बनाया तो वहीं गोरखपुर से पार्टी ने सुरहिता करीम को टिकट दिया।
बीएसपी साफ कह चुकी है कि इस उप-चुनावों को लेकर किया जाने वाला गठबंधन महज इस चुनाव तक ही सीमित है।
गौरतलब है कि विश्लेषकों को सपा और बसपा के साथ आने के फायदे का अंदाजा था लेकिन गोरखपुर सीट पर इस गठबंधन को लेकर आशंकाएं थी। लेकिन चुनावी नतीजों ने इस गठबंधन की चुनावी स्वीकार्यता और वोटों की गोलबंदी पर मुहर लगाई है।
साथ ही इन दोनों चुनावों के नतीजों ने अगले लोकसभा चुनाव को लेकर समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच होने वाले गठबंधन की संभावनाओं के दरवाजे खोल दिए हैं।
भविष्य में बनने वाले इस गठबंधन को लेकर अभी सुगबुगाहट ही शुरू हुई है। ऐसे में यूपी चुनाव के नतीजे बीजेपी के खिलाफ विपक्ष की गोलबंदी और एकजुटता की जमीन तैयार करेंगे, जिसके केंद्र में यूपी और यहां की राजनीति होगी।
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