'मौत से ठन गई!' कहने वाले अटल बिहारी वाजपेयी जिदंगी से हार गए, जानें पूरा जीवन परिचय
एक बार पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी कविता में कहा था कि 'मौत से ठन गई' है।
नई दिल्ली:
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का इस समय दिल्ली के एम्स में इलाज चल रहा है। उनकी हालत गंभीर बनी हई है, लेकिन एक बार उन्होंने अपनी कविता में कहा था कि 'मौत से ठन गई' है। इस कविता में जिन्दगी और मौत के संघर्ष को उन्होंने बाखूबी बयान किया था। उनकी यह कविता आज भी पढ़ने और मनन करने योग्य है। उन्होंने 16 अगस्त 2018 को दिल्ली में अंतिम सांस ली।
'मौत से ठन गई'...
ठन गई!
मौत से ठन गई!
जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,
रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यूं लगा जिंदगी से बड़ी हो गई.
मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
जिंदगी सिलसिला, आज कल की नहीं.
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं,
लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं?
तू दबे पांव, चोरी-छिपे से न आ,
सामने वार कर फिर मुझे आजमा.
मौत से बेखबर, जिंदगी का सफ़र,
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर.
बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं,
दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं।
प्यार इतना परायों से मुझको मिला,
न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला.
हर चुनौती से दो हाथ मैंने किए,
आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए.
आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है,
नाव भंवरों की बांहों में मेहमान है.
पार पाने का क़ायम मगर हौसला,
देख तेवर तूफ़ां का, तेवरी तन गई.
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जन्म से पीएम तक बनने का सफार
जन्म 25 दिसम्बर 1924 को ग्वालियर में
उन्होंने 16 अगस्त 2018 को दिल्ली में अंतिम सांस ली।
पिता का नाम कृष्णा बिहारी वाजपेयी
माता का नाम कृष्णा देवी
ग्वालियर के बारा गोरखी में गवर्नमेंट हायरसेकण्ड्री स्कूल से शिक्षा ली
कानपूर के दयानंद एंग्लो-वैदिक कॉलेज से पोलिटिकल साइंस में एम.ए किया
आर्य कुमार सभा के 1944 में जनरल सेक्रेटरी बने।
1939 में स्वयंसेवक के रूप में आरएसएस से जुडे।
राष्ट्रधर्म (हिंदी मासिक ), पंचजन्य (हिंदी साप्ताहिक) और दैनिक स्वदेश के अलावा वीर अर्जुन जैसे अख़बार में काम किया।
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प्रधानमंत्री पद का सफर
1. पहली बार 1996 में प्रधानमंत्री बने।
2. दूसरी बार 1998–1999 तक प्रधानमंत्री रहे।
3. तीसरी बार 1999–2004 के बीच रहे प्रधानमंत्री।
कई तरह के मिले सम्मान
1992 : पद्म विभूषण
1993 : डी.लिट (डॉक्टरेट इन लिटरेचर), कानपुर यूनिवर्सिटी
1994 : लोकमान्य तिलक पुरस्कार
1994 : बेस्ट सांसद का पुरस्कार
1994 : भारत रत्न पंडित गोविन्द वल्लभ पन्त अवार्ड
2015 : भारत रत्न
2015 : लिबरेशन वॉर अवार्ड (बांग्लादेश मुक्तिजुद्धो संमनोना)