ये है 'वरदा' तूफान और 'लाल गुलाब' के बीच का संबंध
कटरीना, लीजा, लैरी, हिकाका, बुलबुल, हुदहुद , नीलोफर और पैलिन जैसे चक्रवाती तूफानों के बाद तबाही का मंजर मुट्ठी में दबाये दक्षिण भारत में 'वरदा' तूफान ने अपनी दस्तक दे दी है। समूद्री तूफान के कहर का एक लंबा इतिहास रहा है। भारत समेत दुनिया के अनेक देशों में इन तूफानों ने कई जिंदगियां तबाह की हैं।
highlights
- भारत में 'वरदा' को रोनू, कयांत और नाडा के बाद चौथा सबसे खतरनाक तूफान बताया जा रहा है
- चक्रवाती तूफानों के नामकरण की शुरुआत अटलांटिक क्षेत्र में 1953 से शुरू हुई थी
नई दिल्ली:
कटरीना, लीजा, लैरी, हिकाका, बुलबुल, हुदहुद , नीलोफर और पैलिन जैसे चक्रवाती तूफानों के बाद तबाही का मंजर मुट्ठी में दबाये दक्षिण भारत में 'वरदा' तूफान ने अपनी दस्तक दे दी है। समूद्री तूफान के कहर का एक लंबा इतिहास रहा है। भारत समेत दुनिया के अनेक देशों में इन तूफानों ने कई जिंदगियां तबाह की हैं।
भारत में 'वरदा' को रोनू, कयांत और नाडा के बाद चौथा सबसे खतरनाक तूफान बताया जा रहा है। इस तूफान को 'वरदा' नाम पाकिस्तान ने दिया है। यह उर्दू और अरबी भाषा का शब्द है, जिसका मतलब 'रोज' हिंदी में इसका अर्थ 'लाल गुलाब' है। यह बंगाल की खाड़ी से होते हुए अरब सागर की ओर जाएगा।
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तबाही मचाने के लिए कुख्यात इन नामों के पीछे का क्या रहस्य है? इनके नामकरण को लेकर लोगों की उत्सुकता बरकरार है। नामकरण की इस पहल की शुरुआत अटलांटिक क्षेत्र में 1953 में एक संधि के माध्यम से हुई थी।
हिन्द महासागर क्षेत्र के आठ देशों ने भारत की पहल पर 2004 से चक्रवतीय तूफानों को नाम देने की व्यवस्था शुरू की थी। इसके तहत सदस्य देशों द्वारा पहले से सुझाये गए नामों में से इन नामों का चयन किया जाने लगा।
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अटलांटिक क्षेत्र में हरिकेन और चक्रवात का नाम देने की परंपरा 1953 से ही जारी है जो मियामी स्थित नेशनल हरिकेन सेंटर की पहल पर शुरू हुई थी।
तबाही मचाने वाले तूफानों के नामों के पीछे की कहानी भी काफी इंट्रस्टिंग है। हर नाम का एक मतलब है और इसने नामकरण के लिए बाकायदा 8 देशों का संगठन है। 2004 में तूफानों के नाम रखने की शुरुआत हुई थी। हिंद महासागर में आने वाली चक्रवातों के नाम दिये जाते थे। हिंद महासागर के आसपास स्थित 8 देश चक्रवातों को नाम देते हैं।
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भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, मालदीप, म्यांम्यार, ओमान, श्रीलंका और थाइलैंड इनके नाम रखते हैं। इन 8 देशों के प्रतिनिधि की मदद से चक्रवातों के नाम रखे जाते हैं। ये नाम देशों की वर्णमाला के क्रम में होते हैं, जैसे नीलोफर का नाम पाकिस्तान ने दिया था। इससे पहले 2012 में भी पाकिस्तान में नीलम नाम दिया गया था। हर देश 8-8 नाम देता है यानि कुल 64 नाम अभी तक रखे गए हैं।