.

हेमंत सोरेन के बाद अब भाई बसंत की विधायकी पर खतरे के बादल

अब झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के भाई बसंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता पर काले बादल मंडरा रहे हैं. बसंत पर आरोप है कि उन्होंने निर्वाचन आयोग को दिए हलफनामे में खनन फर्म के सह-मालिक होने की जानकारी छिपाई.

News Nation Bureau
| Edited By :
10 Sep 2022, 11:36:29 AM (IST)

highlights

  • बसंत सोरेन पर भी निर्वाचन आयोग से सही जानकारी छिपाने का आरोप
  • हेमंत सोरेन पर सीएम होते हुए लाभ के पद का आरोप सिद्ध हो चुका है

नई दिल्ली:

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के भाई और झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायक बसंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता रद्द् करने की मांग पर निर्वाचन आयोग ने अपनी राय झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस को सौंप दी है. राज्य बीजेपी नेताओं का आरोप है कि बसंत सोरेन ने निर्वाचन आयोग में चुनाव पूर्व दाखिल हलफनामे में खनन फर्म के सह-मालिक होने की बात छिपाई. ऐसे में जन प्रतिनिधित्व कानून 1951 के तहत उनकी विधानसभा सदस्यता रद्द कर देनी चाहिए. इसके पहले हेमंत सोरेन को लाभ के पद लेने का दोषी पाया जा चुका है. इस मसले पर उनकी सरकार पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं. 

बसंत सोरेन पर भी लाभ का पद लेने का आरोप
प्राप्त जानकारी के मुताबिक राज्यपाल के दिशा-निर्देश पर निर्वाचन आयोग ने 29 अगस्त को सुनवाई पूरी कर ली थी. सूत्रों के मुताबिक शुक्रवार को निर्वाचन आयोग ने राज्यपाल बैस को इस मसले पर अपनी राय से अवगत कराती रिपोर्ट सौंप दी. राज्यपाल ने सीएम हेमंत सोरेन के भाई बसंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता रद्द करने की शिकायत पर निर्वाचन आयोग से राय मांगी थी. राज्य बीजेपी नेताओं का आरोप है कि बसंत सोरेन ने चुनाव पूर्व हलफनामे में सही जानकारी नहीं दी. वह एक खनन फर्म के सह-मालिक हैं और जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 के अनुच्छेद 9-ए के तहत निर्वाचित प्रतिनिधियों को सरकार के साथ निजी लाभ के लिए किसी तरह अनुबंध करने और माल की आपूर्ति करने से रोकता है. 

यह भी पढ़ेंः  इन तीन खिलाड़ियों का T20 विश्व कप में खेलना हुआ मुश्किल, Asia Cup है वजह

हेमंत सरकार पर लटक रही तलवार
बसंत सोरेन का मसला उस घटनाक्रम के लगभग दो हफ्ते बाद आया है, जिसके तहत निर्वाचन आयोग ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता रद्द करने की संस्तुति की थी. हेमंत सोरेन पर भी बीते साल खनन कार्य का पट्टा अपने नाम पर लेने का आरोप था. निर्वाचन आयोग की राय के बाद झारखंड सरकार पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं, क्योंकि राज्यपाल ने निर्वाचन आयोग की राय के बावजूद हेमंत सोरेन पर रुख साफ नहीं किया है. निर्वाचन आयोग की राय के बाद संवैधानिक तौर पर हेमंत सोरेन राज्य के मुख्यमंत्री पद पर नहीं बने रह सकते हैं. निर्वाचन आयोग की राय और राज्यपाल की चुप्पी के बीच झामुमो बीजेपी पर सरकार गिराने के लिए विधायकों की खरीद-फरोख्त का आरोप लगा रहा है.