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अफगानिस्तान में होने वाले घटनाक्रम के बेहद महत्वपूर्ण परिणाम होंगे : जयशंकर

अमेरिका और तालिबान के बीच हुए दोहा समझौते के विभिन्न आयामों को लेकर भारत को विश्वास में नहीं लिया गया और अफगानिस्तान के हाल के घटनाक्रम के इस क्षेत्र और उससे आगे ‘बेहद महत्वपूर्ण परिणाम’ होंगे.

News Nation Bureau
| Edited By :
02 Oct 2021, 03:09:17 PM (IST)

highlights

  • अफगानिस्तान में एक समावेशी सरकार भारत की है प्रमुख चिंता
  • अन्य देशों की तरह हमारी समस्या या हमारे अवसर नहीं हो सकते
  • नकारात्मक चर्चा करने की बजाए सकारात्मक सोच रखनी चाहिए

नई दिल्ली:

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा है कि पिछले वर्ष अमेरिका और तालिबान के बीच हुए दोहा समझौते के विभिन्न आयामों को लेकर भारत को विश्वास में नहीं लिया गया और अफगानिस्तान के हाल के घटनाक्रम के इस क्षेत्र और उससे आगे ‘बेहद महत्वपूर्ण परिणाम’ होंगे. विदेश मंत्री ने कहा कि इस समय भारत के लिए प्रमुख चिंताओं में यह शामिल है कि क्या अफगानिस्तान में एक समावेशी सरकार होगी और उस देश की जमीन का इस्तेमाल किसी दूसरे देश या बाकी दुनिया के खिलाफ आतंकवाद के लिये नहीं किया जाए. अमेरिका-भारत सामरिक गठजोड़ मंच के वार्षिक नेतृत्व शिखर सम्मेलन को डिजिटल माध्यम से संबोधित करते हुए जयशंकर ने कहा कि भारत, काबुल में नयी व्यवस्था को मान्यता देने को लेकर चर्चा करने की जल्दबाजी में नहीं है.

अमेरिका के पूर्व राजदूत फ्रैंक बाइजनर के साथ संवाद सत्र के दौरान विदेश मंत्री ने कहा कि भारत, जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया की हिस्सेदारी वाला क्वाड गठबंधन किसी देश के खिलाफ नहीं है और किसी तरह की गुटबंदी और नकारात्मक पहल के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘मैं समझता हूं कि कुछ हद तक हम सभी की चिंता उचित है और जब मैं चिंता के स्तर की बात करता हूं तब आप जानते हैं कि दोहा में तालिबान की ओर से कुछ प्रतिबद्धताएं व्यक्त की गई थीं और अमेरिका को इसके बारे ज्यादा पता है, हमें इसके विभिन्न आयामों के बारे में विश्वास में नहीं लिया गया.’ जयशंकर ने कहा, ‘इसलिये दोहा में जो समझौता हुआ, उसके बारे में मोटे तौर पर समझ है, लेकिन इसके आगे क्या हम समावेशी सरकार देखने जा रहे हैं ? क्या हम महिलाओं, बच्चों, अल्पसंख्यकों के अधिकारों का सम्मान देखने जा रहे हैं ?’

उन्होंने कहा, ‘इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह देखने वाली होगी कि अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल किसी दूसरे देश और दुनिया के अन्य क्षेत्र के खिलाफ आतंकवाद के लिये नहीं हो. मैं समझता हूं कि ये हमारी चिंताएं हैं.’ विदेश मंत्री ने कहा, ‘अफगानिस्तान में जो कुछ हुआ, उसके हम सभी के लिये बेहद महत्वपूर्ण परिणाम होंगे और हम तो इस क्षेत्र के काफी करीब हैं. उन्होंने कहा कि इसके महत्वपूर्ण बिन्दुओं का उल्लेख संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अगस्त के प्रस्ताव में हैं और इन सवालों से कैसे निपटा जायेगा, यह प्रश्न अभी भी बना हुआ है.’

एक सवाल के जवाब में जयशंकर ने कहा कि अफगानिस्तान में हाल के घटनाक्रम से संबंधित कई मुद्दों पर भारत और अमेरिका की सोच एक समान है, जिसमें आतंकवाद के लिए अफगान भूमि के संभावित उपयोग को लेकर चिंताएं भी शामिल हैं. जयशंकर ने यह भी कहा कि कई ऐसे पहलू हैं, जिनपर दोनों के विचार समान नहीं हैं. उन्होंने कहा कि तालिबान शासन को मान्यता देने संबंधी किसी भी प्रश्न का निदान दोहा समझौते में समूह द्वारा की गई प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के आधार पर किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा, 'ऐसे मुद्दे होंगे जिन पर हम अधिक सहमत होंगे, ऐसे मुद्दे भी होंगे जिन पर हम कम सहमत होंगे। हमारे अनुभव कुछ मामलों में आपसे (अमेरिका से) अलग हैं। हम उस क्षेत्र में सीमा पार आतंकवाद के पीड़ित हैं और इसने कई तरह से अफगानिस्तान के कुछ पड़ोसियों के बारे में हमारा दृष्टिकोण तय किया है.’

जयशंकर ने कहा, 'मुझे लगता है कि हम इनमें से कई मुद्दों पर सैद्धांतिक स्तर पर समान सोच रखते हैं.' उन्होंने कहा, ‘अफगान भूमि का आतंकवाद के लिए उपयोग हम दोनों को बहुत दृढ़ता से महसूस होता है और जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रपति जो बाइडन से मुलाकात की थी तो इस पर चर्चा की गई थी.’ चीन और क्वाड के बारे एक सवाल के जवाब में जयशंकर ने कहा कि चार देशों का यह गठबंधन किसी के खिलाफ नहीं है, हमें नकारात्मक चर्चा करने की बजाए सकारात्मक सोच रखनी चाहिए. उन्होंने कहा, ‘कई तरह से द्विपक्षीय विकल्प है और इसके बारे में हम सभी को विचार करना है तथा हममें से सभी के चीन के साथ व्यापक संबंध है। कई तरह से चीन आज प्रमुख देश है.’

उन्होंने कहा, ‘ऐसे में हमारी समस्या या हमारे अवसर वैसे नहीं हो सकते हैं जैसे अमेरिका या ऑस्ट्रेलिया, जापान या इंडोनेशिया या फ्रांस के होंगे.’ जयशंकर ने कहा कि ये हर देश के लिये अलग-अलग होंगे और चीन के विकास का अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था पर बुनियादी प्रभाव पड़ा है. उन्होंने कहा, ‘ऐसे में अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में हमें अपने हितों के अनुरूप मूल्यांकन करना है और प्रतिक्रिया देनी हैं.’