मोबाइल की कॉलर ट्यून बता रही बीजेपी से 'डरे' हुए हैं राजस्थान के डिप्टी सीएम सचिन पायलट
कांग्रेस कई कारणों से बीजेपी को कांटे की टक्कर देने की स्थिति में नहीं है. उस पर मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सचिन पायलट के मोबाइल पर कॉल करने वालों को हनुमान चालीसा ही सुनाई पड़ रही है.
नई दिल्ली.:
राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी पिछले दो दशकों से चली आ रही परंपरा को तोड़ सकती है. अभी तक यह परंपरा रही है कि राज्य में सत्तारूढ़ दल ने ही राजस्थान की 25 संसदीय सीटों में से अधिकांश पर कब्जा किया है. यह अलग बात है कि विधानसभा चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस लोकसभा चुनाव में कई कारणों से बीजेपी को कांटे की टक्कर देने की स्थिति में नहीं है. उस पर मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक राज्य के उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के मोबाइल की कॉलर ट्यून को सुनकर भी लोग मान कर चल रहे हैं कि बीजेपी का हौव्वा कांग्रेस को डरा रहा है. इन दिनों सचिन पायलट के मोबाइल पर कॉल करने वालों को हनुमान चालीसा ही सुनाई पड़ रही है.
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गौरतलब है कि 2013 में कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में महज 21 सीटें हासिल की थीं, जबकि बीजेपी ने 163 सीटों पर कब्जा किया था. 2014 के संसदीय चुनाव में तो कांग्रेस का सूपड़ा ही साफ हो गया. हालांकि बीजेपी से सत्ता छीनने के बाद कांग्रेस ने अलवर और अजमेर संसदीय उपचुनाव का परिणाम अपने पक्ष में किया तो मंडलगढ़ की विस सीट भी उपचुनाव में वापस अपने खाते में कर ली.
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इस प्रदर्शन के जारी रहने पर लोकसभा चुनाव में बीजेपी के लिए दिक्कत हो सकती थी, लेकिन विधानसभा चुनाव में हार-जीत का अंतर कम होने के बाद कांग्रेस को धड़ेबंदी ने घेर लिया. इसका परिणाम यह रहा कि विस चुनाव की तुलना में उपचुनाव में बीजेपी-कांग्रेस को मिले मतों का अंतर सिर्फ 0.5 फीसदी ही रहा. स्थिति यह है कि राजस्थान कांग्रेस में विधानसभा चुनाव की जीत के साथ ही अशोक गहलोत और सचिन पायलट में तलवारें खिंच गईं. किसी तरह मामला निपटा तो रही सही कसर संसदीय चुनाव में प्रत्याशियों के चयन में पूरी हो गई.
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इसका फायदा उठाते हुए बीजेपी ने मेवाड़-हड़ोती में अपनी पकड़ मजबूत बनाने का मौका नहीं खोया. यहां 10 सीटें हैं. सीकर, बाड़मेर, जोधपुर, दौसा और करौली में कांग्रेस का अच्छा प्रदर्शन रहा था, लेकिन अब स्थिति उतनी आसान नहीं है. पूर्वी राजस्थान में कांग्रेस जातिगत समीकरणों पर भारी है. हालांकि बीजेपी ने रिसते घावों को भरने के लिए अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी है. बीजेपा जाटों को अपने पक्ष में लुभा रही है, तो वसुंधरा राजे सिंधिया से दूर गए राजपूत वोटरों के लिए भी खास तैयारी कर चुकी है.
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गौरतलब है कि जाट नेता हनुमान बेनीवाल बीजेपी के साथ आ गए हैं, तो दिव्या कुमारी को टिकट देकर बीजेपी ने समीकरणों को संतुलित बनाने का काम किया है. संभवतः इसे भांप कर ही कांग्रेस के उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट खासे सक्रिय हो गए हैं. इसमें शायद ही किसी को कोई शक हो कि राजस्थान में कांग्रेस को जिलाने में सचिन की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.
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सचिन ने बीजेपी खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभाओं को देखते हुए बीजेपी पर हमला तेज कर दिया है. यही नहीं, हनुमान चालीसा को भी उन्होंने अपनी कॉलर ट्यून बना लिया है. यहां यह भूलना नहीं चाहिए कि पीएम मोदी अब तक राजस्थान में चार के लगभग जनसभाएं कर चुके हैं. इसमें भी कोई शक नहीं है कि पीएम मोदी धाराप्रवाह बोलने में माहिर हैं और अपनी इसी वाककला के चलते वह विरोधियों पर भारी पड़ते हैं. ऐसे में कह सकते हैं कि बीजेपी इस बार दो दशक से चली आ रही परंपरा को तोड़ सकते हैं. यानी सत्तारूढ़ दल के आंखों से काजल चुरा सकते हैं.